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    अनट्रेंड ड्राइवर और अनफिट वाहन सड़कों पर बांट रहे मौत

    By Manish NegiEdited By:
    Updated: Tue, 21 Nov 2017 11:57 AM (IST)

    ड्राइविंग लाइसेंस बनाने की प्रक्रिया के आनलाइन होने के बावजूद दलालों का दखल पूरी तरह समाप्त नहीं हुआ है। ...और पढ़ें

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    अनट्रेंड ड्राइवर और अनफिट वाहन सड़कों पर बांट रहे मौत

    संजय सिंह, नई दिल्ली। कंप्यूटरीकरण और नेटवर्किंग के बावजूद आरटीओ में भ्रष्टाचार अभी भी सरकार के लिए सिरदर्द बना हुआ है। वाहन और सारथी पोर्टल भी इस समस्या का समाधान करने में विफल साबित हुए हैं। ड्राइविंग लाइसेंस बनाने की प्रक्रिया के आनलाइन होने के बावजूद दलालों का दखल पूरी तरह समाप्त नहीं हुआ है। पहले वे कागजों के जरिए काम करते थे। जबकि अब कंप्यूटर पर बैठकर लोगों को ड्राइविंग टेस्ट में पास करा रहे हैं।

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    इसमें कोई दो राय नहीं है कि सड़क सुरक्षा को लेकर केंद्र सरकार ने पिछले तीन सालों में काफी काम किया है। न केवल संशोधित मोटर वाहन विधेयक संसद में पेश किया गया है, बल्कि राजमार्गों पर ब्लैक स्पॉट्स की पहचान कर उन्हें दुरुस्त करने का राष्ट्रव्यापी अभियान भी छेड़ा गया है। यही नहीं, सड़कों के डिजाइन को पहली मर्तबा सड़क सुरक्षा के साथ जोड़ा गया है।

    सड़क सुरक्षा पर पांच वर्षो में 11 हजार करोड़ रुपये खर्च करने की सरकार की घोषणा भी उसकी मंशा को दर्शाती है। लेकिन, आरटीओ का भ्रष्टाचार पर अभी भी पूरी तरह नकेल नहीं लग पाई है। जिसके कारण डीएल और आरसी जारी करने की प्रक्रिया आनलाइन होने के बावजूद दलालों की घुसपैठ जारी है। बस इसका स्वरूप बदल गया है। पहले दलाल पैसे लेकर सब कुछ करवाने का ठेका लेते थे। अब वे केवल टेस्ट दिलाने का ठेका लेते हैं।

    तमाम दावों व इरादों के बावजूद अभी भी देश में अच्छे किस्म के ड्राइविंग ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट की भारी कमी है। पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप में ड्राइविंग ट्रेंनिंग इंस्टीट्यूट खोलने की सरकार की योजना राज्यों की उदासीनता का शिकार होकर रह गई है। हालांकि सड़क मंत्रालय ने स्किल डेवलपमेंट मंत्रालय के साथ देश में 100 ड्राइवर ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट खोलने का समझौता किया है। लेकिन उसमें अभी समय लगेगा। फिलहाल ज्यादातर वाहन चालक गली-मोहल्लों खुले में डग्गामार ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट्स से ही काम चला रहे हैं।

    जहां तक वाहनों की फिटनेस का सवाल है तो इस मामले में स्थिति और भी ज्यादा दयनीय है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि ज्यादातर राज्यों में आरटीओ के पास अपने टेस्ट ट्रैक तक नहीं हैं। यहां तक कि उत्तर प्रदेश जैसे महत्वपूर्ण राज्य में भी अभी तक केवल दो टेस्ट ट्रैक बने हैं। बाकी जगहों पर टेस्ट ट्रैक या तो बने ही नहीं हैं या अब भी बनने की प्रक्रिया में हैं। हालांकि सरकार ने फिटनेस टेस्ट के नियमों और प्रक्रियाओं का काफी कुछ सरलीकरण कर दिया है। लेकिन, हकीकत के मोर्चे पर अभी भी फर्जीवाड़ा बंद नहीं हुआ है और ज्यादातर फिटनेस सर्टिफिकेट बगैर समुचित टेस्ट के खानापूरी करके जारी किए जा रहे हैं।

    कई आरटीओ के पास फिटनेस जांचों का कोई रिकार्ड तक नहीं है। इस साल की शुरुआत में मुंबई-अहमदाबाद हाईवे पर एक टूरिस्ट बस के पेट्रोलियम टैंकर से टकराने का भयानक हादसा हुआ था। इसकी जांच में पता चला कि हादसा बस के ब्रेक फेल होने की वजह से हुआ था और बस को बिना समुचित जांच के फिटनेस सर्टिफिकेट दे दिया गया था।

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