तीखे सवालों का सामना कर रहे उर्जित को मिली मनमोहन की आड़
मनमोहन ने सांसदों को समझाया कि संस्था के तौर पर रिजर्व बैंक (आरबीआइ) का सम्मान किया जाना चाहिए।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। नोटबंदी के मसले पर रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल को वित्तीय मामलों संबंधी संबंधी संसदीय समिति की बैठक में सदस्यों के सवाल झेलने पड़े। हालांकि ऐसे वक्त में खुद पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने उनका बचाव किया, जब बेहद तीखे सवाल पूछे जा रहे थे। दिग्विजय सिंह जैसे कांग्रेसी सांसद नकदी निकासी की सीमा हटाने के संबंध में पटेल से स्पष्ट जवाब चाहते थे। वे लगातार कड़े प्रश्न पूछ रहे थे, तभी मनमोहन ने उन्हें रोका।
सूत्रों के मुताबिक मनमोहन ने सांसदों को समझाया कि संस्था के तौर पर रिजर्व बैंक (आरबीआइ) का सम्मान किया जाना चाहिए। यही नहीं, उन्होंने उर्जित को ऐसे सवाल का जवाब देने से रोका, जिससे केंद्रीय बैंक की स्वायत्तता पर आंच आए। आरबीआइ गवर्नर रह चुके मनमोहन भी कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एम वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता वाली वित्त मामलों संबंधी समिति के सदस्य हैं। समिति ने नोटबंदी के मसले पर गवर्नर और वित्त मंत्रालय के अफसरों को तलब किया था।
एम्स ने 14 डॉक्टरों को कहा, क्यों न आपको बर्खास्त कर दिया जाए
संसदीय समिति के सदस्यों ने जब पटेल से पूछा कि नोटबंदी के फैसले के बाद हालात कब तक सामान्य हो जाएंगे, तो वह संतोषजनक जवाब नहीं दे पाए। गवर्नर यह भी नहीं बता पाए कि हालात सामान्य होने में अभी कितना वक्त लगेगा। हालांकि उन्होंने इतना जरूर बताया कि पांच सौ और हजार रुपये के पुराने नोट बंद होने के बाद अब तक 9.2 लाख करोड़ रुपये की करेंसी सिस्टम में डाल दी गई है। ये नए नोट बंद कर दी गई करेंसी का लगभग 60 फीसद हैं।
बुधवार को समिति की बैठक में पटेल के साथ-साथ आरबीआइ के डिप्टी गवर्नर आर गांधी और एसएस मूंदड़ा भी पहुंचे। वित्त मंत्रालय के अधिकारी भी मौजूद थे। इसके अलावा आइसीआइसीआइ बैंक की चंदा कोचर और पंजाब नेशनल बैंक की ऊषा अनंतसुब्रह्मण्यम भी समिति के समक्ष उपस्थित हुईं। आरबीआइ गवर्नर 20 जनवरी को संसद की लोक लेखा समिति ने भी तलब किया है।
आरबीआइ गवर्नर से पूछा गया कि बंद किए गए पुराने नोट में से कितने वापस आ चुके हैं, तो इसकी भी निश्चित संख्या वह नहीं दे पाए। उन्होंने अपने जवाब में बस इतना कहा कि आरबीआइ अब भी इसकी गणना कर रहा है। हालांकि उन्होंने बताया कि 500 रुपये और 1000 रुपये के पुराने नोट बंद करने के संबंध में आरबीआइ और सरकार 2016 के शुरू से ही विचार-विमर्श कर रहे थे। केंद्रीय बैंक पुराने नोट बंद करने संबंधी सरकार के फैसले के लक्ष्य को लेकर सहमत था।
सूत्रों ने कहा कि नोटबंदी के मुद्दे पर समिति के सभी सदस्य अपने सवाल पूरे नहीं कर सके। इसलिए आम बजट के बाद एक बार फिर आरबीआइ गवर्नर और वित्त मंत्रालय के अधिकारियों को बुलाने का फैसला किया गया है। बैठक के बाद एक सदस्य ने कहा कि आरबीआइ अधिकारी नोटबंदी पर बचाव की मुद्रा में दिखे। खुद गवर्नर मुख्य सवालों के जवाब नहीं दे सके।
कुछ सदस्यों ने इस तरह के सवाल भी किए कि नोटबंदी का फैसला सरकार ने किया या आरबीआइ ने। इसके अलावा केंद्रीय बैंक की स्वायत्तता के बारे में भी प्रश्न पूछे गए। यह भी पूछा गया कि नोटबंदी के बाद पहले कालेधन की चर्चा की गई, उसके बाद आतंकी फंडिंग, फिर जाली मुद्रा और बाद में डिजिटल पेमेंट को बढ़ावा देने की बात कही गई, ऐसा क्यों हुआ। वित्त मंत्रालय के आर्थिक कार्य विभाग के सचिव शक्तिकांत दास ने समिति के समक्ष एक प्रजेंटेशन दिया। कुछ सदस्यों ने दास के साथ-साथ राजस्व सचिव हसमुख अढिया और बैंकिंग सचिव अंजुली चिब दुग्गल से भी सवाल पूछे।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।