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    दिल्ली की सरकार बनने पर फैसला जल्द, अब जंग के पाले में गेंद

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    Updated: Sat, 30 Aug 2014 01:23 PM (IST)

    दिल्ली की सियासी किस्मत को लेकर अटकलों का दौर अब ज्यादा लंबा नहीं चलने वाला। आगामी नौ सितंबर को इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में होने वाली सुनवाई के मद्देनजर इस बात की प्रबल संभावना है कि अगले कुछ दिनों में सूबे में नई सरकार के गठन अथवा विधानसभा को भंग करने के मामले में पर अंतिम निर्णय लिया जा सकता है। अदालती सुनवाई

    नई दिल्ली। दिल्ली की सियासी किस्मत को लेकर अटकलों का दौर अब ज्यादा लंबा नहीं चलने वाला। आगामी नौ सितंबर को इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में होने वाली सुनवाई के मद्देनजर इस बात की प्रबल संभावना है कि अगले कुछ दिनों में सूबे में नई सरकार के गठन अथवा विधानसभा को भंग करने के मामले में पर अंतिम निर्णय लिया जा सकता है। अदालती सुनवाई के मद्देनजर ही राजधानी में इन दिनों में सरकार बनाने के अलग-अलग विकल्पों पर चर्चा चल रही है।

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    उच्चपदस्थ सूत्रों का कहना है कि राजधानी की राजनीतिक अनिश्चितता को लेकर केंद्रीय गृह मंत्रालय व राजनिवास के बीच लगातार संपर्क बना हुआ है और उपराज्यपाल जल्दी ही कोई निर्णय कर सकते हैं। संविधान के जानकारों का कहना है कि इस पूरे मामले में उपराज्यपाल को पूरे अधिकार हैं और सुप्रीम कोर्ट ने भी पहले कहा है कि उपराज्यपाल अपने विवेक से निर्णय लेने को स्वतंत्र हैं। सूबे के सियासी गलियारों में सरकार बनाने के विकल्पों को लेकर अलग-अलग विचार सामने आ रहे हैं।

    कहा जा रहा है कि सबसे बड़ा राजनीतिक दल होने के नाते उपराच्यपाल जंग भाजपा को सरकार बनाने का निमंत्रण भेज सकते हैं। यदि पार्टी सरकार बनाने को तैयार होती है तो मुख्यमंत्री व मंत्रिमंडल को शपथ दिलाकर मुख्यमंत्री को सदन में बहुमत साबित करने का समय दे सकते हैं। दूसरी ओर गुप्त मतदान से भी सदन के नेता के चुनाव करने का विकल्प भी सुझाया जा रहा है।

    लोकसभा व दिल्ली विधानसभा के पूर्व सचिव सुदर्शन शर्मा ने कहा कि संविधान की धारा 175 के तहत राच्यों में राज्यपालों को तथा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र कानून में उपराज्यपाल को यह अधिकार प्राप्त है कि वह विधानसभा अध्यक्ष के माध्यम से सदन को संदेश भेज सकते हैं। उन्होंने उत्तर प्रदेश का उदाहरण दिया, जहां अदालत के आदेश से विधायकों ने गुप्त मतदान से बहुमत व सदन के नेता का फैसला किया।

    आपको बता दें कि वर्ष 1998 की फरवरी में उत्तर प्रदेश के राज्यपाल रोमेश भंडारी ने तत्कालीन कल्याण सिंह सरकार को बर्खास्त कर जगदम्बिका पाल को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी थी। इसके खिलाफ कल्याण सिंह इलाहाबाद हाईकोर्ट चले गए। अदालत ने आदेश दिया कि सदन के नेता का चुनाव सदन में ही किया जाए। तब सदन में अध्यक्ष के आसन के एक ओर कल्याण सिंह बैठे थे और दूसरी ओर जगदम्बिका पाल।

    विधायकों ने गुप्त मतदान किया और मतों की गिनती में कल्याण सिंह ने बाजी मार ली। हालांकि दिल्ली में सरकार बनाने के मुद्दे पर आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के तीखे तेवरों को देखते हुए उपराच्यपाल द्वारा इस विकल्प पर अमल किए जाने में संदेह है। दोनों दलों ने उपराज्यपाल को आगाह किया है कि वे कोई भी ऐसा निर्णय नहीं करें जो संविधान व संसदीय परम्पराओं के प्रतिकूल हो।

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