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    भूमि विधेयक के खिलाफ सड़क पर उतरीं सोनिया

    By Rajesh NiranjanEdited By:
    Updated: Wed, 18 Mar 2015 08:00 AM (IST)

    भूमि अधिग्रहण विधेयक पर सरकार को घेरने सड़क पर उतरी कांग्रेस उत्साहित है। मोदी सरकार के गठन के साथ ही विपक्ष को एकीकृत कर नेतृत्व करने के प्रयास में लगी कांग्रेस को आशा है कि वह कामयाब होगी। संसद से राष्ट्रपति भवन तक विपक्षी दलों की मार्च का नेतृत्व कर

    जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। भूमि अधिग्रहण विधेयक पर सरकार को घेरने सड़क पर उतरी कांग्रेस उत्साहित है। मोदी सरकार के गठन के साथ ही विपक्ष को एकीकृत कर नेतृत्व करने के प्रयास में लगी कांग्रेस को आशा है कि वह कामयाब होगी। संसद से राष्ट्रपति भवन तक विपक्षी दलों की मार्च का नेतृत्व कर रहीं कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने बिल के मौजूदा स्वरूप को पास न होने देने की बात कही है।

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    मंगलवार की शाम सोनिया के नेतृत्व में राष्ट्रपति को ज्ञापन देने के लिए समूचा विपक्ष सड़कों पर उतरा। 14 राजनीतिक पार्टियों के नेताओं ने इसमें शिरकत की। संसद भवन से पैदल मार्च का नेतृत्व कर रहीं सोनिया ने राष्ट्रपति को ज्ञापन देने के बाद बिल को किसान विरोधी बताते हुए राज्य सभा में इसे पास न होने देने की बात दोहराई।

    कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि हम एकजुट होकर भूमि अधिग्रहण विधेयक में पारदर्शिता लाने और किसानों को उचित मुआवजा दिए जाने की मांग करते हैं। सभी प्रगतिशील, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक शक्तियां मोदी सरकार की सामाजिक असहिष्णुता और बंटवारे की नीति को रोकने के लिए एक साथ खड़ी हैं।

    सोनिया के साथ पार्टी सांसदों के अलावा जदयू नेता शरद यादव, जदएस अध्यक्ष एचडी देवेगौड़ा, माकपा नेता सीताराम येचुरी, भाकपा नेता डी राजा, तृणमूल कांग्रेस के दिनेश त्रिवेदी, सपा नेता रामगोपाल यादव, द्रमुक से कनिमोरी, इनेलो नेता दुष्यंत चौटाला व राजद नेता जयप्रकाश इस मार्च में शामिल थे। जबकि, बसपा ने अलग से विधेयक का विरोध किया। कांग्रेस का उत्साह यह है कि आखिरकार वह विपक्ष का नेतृत्व कर रही है।

    लोकसभा से पास होने के बाद भूमि अधिग्रहण विधेयक को राज्यसभा में पेश किया जाना है। राज्यसभा में बहुमत न होने व वापस न लिए जाने के कारण एक बिल राज्यसभा में पहले से मौजूद है। ऐसे में सरकार मौजूदा सत्र को बढ़ाकर आमराय बनाने की कोशिश कर सकती है। बुधवार को प्रस्तावित संसदीय मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति में सत्र को बढ़ाने को लेकर फैसला हो सकता है।

    सरकार के वरिष्ठ प्रतिनिधियों को यूं तो भरोसा है कि विपक्ष भी देर सबेर विधेयक पर राजी होगा। लिहाजा वह कोई जल्दबाजी भी नहीं दिखाना चाहती है। सूत्रों के अनुसार जरूरत हुई तो दोबारा अध्यादेश लाने का रास्ता भी खुला हुआ है।

    इसके लिए दोनों सदनों को या किसी एक सदन की कार्यवाही को समाप्त कर दोबारा उसकी बैठक बुलाई जा सकती है। जबकि जरूरत पड़ने पर संयुक्त सत्र का रास्ता भी खुला है।

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