केजरीवाल का साथ छोड़ चुके पुराने साथियों को आज अफसोस जरूर होगा
मतगणना के शुरुआती रुझान इशारा कर रहे हैं कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी को बहुमत मिल रहा है। ऐसे में केजरीवाल के पुराने साथी जो आज उनके प्रतिद्वंद्वी हैं जरूर अपने फैसले पर सोचने को मजबूर हो रहे होंगे। एक समय था जब अन्ना हजारे के आंदोलन 'इंडिया अगेंस्ट
नई दिल्ली। मतगणना के शुरुआती रुझान इशारा कर रहे हैं कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी को बहुमत मिल रहा है। ऐसे में केजरीवाल के पुराने साथी जो आज उनके प्रतिद्वंद्वी हैं जरूर अपने फैसले पर सोचने को मजबूर हो रहे होंगे। एक समय था जब अन्ना हजारे के आंदोलन 'इंडिया अगेंस्ट करप्शन' में अरविंद केजरीवाल, किरण बेदी, शाजिया इल्मी, विनोद कुमार बिन्नी, जनरल वीके सिंह और कैप्टन गोपीनाथ साथ-साथ थे। लेकिन आज इनकी राहें जुदा हो चुकी हैं। कुछ ने अरविंद केजरीवाल का साथ आम आदमी पार्टी के गठन के समय छोड़ दिया था, तो कुछ ने केजरीवाल के मुख्यमंत्री पद छोड़ने के बाद उनका साथ छोड़ दिया।
दरअसल, जब केरीवाल ने सिर्फ 49 दिनों के बाद मुख्यमंत्री पद छोड़ा, तो उनकी काफी आलोचना हुई। विपक्षी पार्टियों ने केजरीवाल को भगोड़ा कहना शुरू कर दिया। ऐसे में कुछ लोगों को लगने लगा था कि केजरीवाल की 'आप' अब पतन की ओर जा रही है। लेकिन ऐसा था नहीं, यह दिल्ली विधानसभा चुनाव के बाद आए एग्जिट पोल ने साफ कर दिया। लेकिन आम आदमी पार्टी के ही कुछ लोगों का विश्वास केजरीवाल से उठ गया था, इसलिए उन्होंने पार्टी को छोड़ने में ही फायदा समझा। हालांकि आज वे अपने फैसले पर चिंतन कर रहे होंगे।
भाजपा की मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार किरण बेदी ने यह कहकर केजरीवाल का साथ छोड़ दिया था कि वह राजनीति में नहीं जाना चाहतीं। केरीवाल ने बेदी को मुख्यमंत्री पद भी ऑफर किया था, लेकिन वह नहीं मानीं। लेकिन दिल्ली चुनाव के कुछ दिनों पहले वह भाजपा में शामिल हो गईं, और जल्द ही उन्हें मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार भी घोषित कर दिया गया। अब केजरीवाल और किरण बेदी आमने-सामने थे। मतदान बाद के एग्जिट पोल में किरण बेदी को अरविंद से पिछड़ता हुआ दिखाया जा रहा है। अब मतगणना के रुझान भी इसी ओर इशारा कर रहे हैं। क्या अब किरण बेदी अपने फैसले पर अफसोस नहीं कर रही होंगी।
शाज़िया इल्मी ने दिल्ली के पिछले विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी की टिकट से चुनाव लड़ा था। लेकिन शाज़िया के सितारे चुनावी समर में कभी भी चमक नहीं पाए। शाजिया दिसंबर 2013 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में महज 326 वोटों से चुनाव हार गईं। उनकी हार का सिलसिला लोकसभा चुनाव में भी जारी रहा और वे गाज़ियाबाद से जनरल वीके सिंह के खिलाफ़ चुनाव लड़ीं और हार गईं। ऐसे में वह आम आदमी पार्टी को छोड़ भाजपा में शामिल हो गईं। शायद शाजिया को लगा था कि अब भाजपा में रहकर ही वो आगे बढ़ सकती हैं। शाज़िया का 'आप' से अलग हो कर बीजेपी में शामिल होना अरविंद के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा था। लेकिन आम आदमी पार्टी को मिल रहे रुझानों से शाजिया इल्मी को भी अपने फैसले पर निराशा हो रही होगी।
आम आदमी पार्टी के विधायक विनोद कुमार बिन्नी ने भी गर्दिश में अरविंद केजरीवाल का साथ छोड़ दिया। बिन्नी भी भाजपा में शामिल हो गए। वह इस बार भाजपा के झंडे तले पटपड़गंज से मनीष सिसोदिया के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं। लेकिन वे सिसोदिया से पीछे चल रहे हैं। ऐसे में बिन्नी को अफसोस जरूर हो रहा होगा, वे सोच रहे होंगे कि काश वे केजरीवाल का साथ न छोड़ते।
कामयाब कारोबारी कैप्टन गोपीनाथ को भारत में कम कीमत वाली उड़ान सेवा की शुरुआत का श्रेय दिया जाता है। आम आदमी पार्टी के साथ उनके जुड़ने को उद्योग जगत का 'आप' को लेकर एक सकारात्मक प्रतिक्रिया के तौर पर देखा गया था। लेकिन बाद में उन्हें लगा कि 'आप' अपने उद्देश्यों से भटक गई है और 2014 में उन्होंने पार्टी छोड़ दी। दिल्ली में अब आम आदमी पार्टी की सरकार बनने जा रही है, ऐसे में गोपीनाथ भी केजरीवाल का साथ छोड़ने के फैसले से निराश जरूर होंगे।
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