क्यों गुजरात चुनाव में हार्दिक पटेल के आगे घुटने टेकने को मजबूर है कांग्रेस
पाटीदार आरक्षण आंदोलन समिति और कांग्रेस के बीच चर्चा के बाद हार्दिक ने तीन नवंबर को राहुल की सभा का विरोध नहीं करने का एलान किया है।
नई दिल्ली, [स्पेशल डेस्क]। दो चरणों में होने जा रहे गुजरात विधानसभा चुनाव को लेकर दो प्रमुख पार्टियां कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी आमने-सामने हैं। गुजरात क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का गृह राज्य है ऐसे में भाजपा वहां किसी भी कीमत पर चुनाव नहीं हारना चाहेगी, जबकि दूसरी तरफ कांग्रेस की पुरजोर कोशिश भाजपा के गढ़ में सेंध लगाने की है। लेकिन कांग्रेस को गुजरात में सत्ता का स्वाद चखे दो दशक से ज्यादा का वक्त बीत चुका है। यही वजह है कि कांग्रेस अपने किले को मजबूत करने के लिए लगातार उन सारी तिकड़मों की जोर आजमाइश करनी पड़ रही है, जिससे वह सत्ताधारी दल को पटखनी दे सके।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मीम अफजल ने दैनिक जागरण से खास बातचीत में यह दावा किया कि इस बार गुजरात के चुनाव में उनके पार्टी की जिस तरह की रणनीति है उसको देखते हुए ऐसा लगता है कांग्रेस इस बार भारी तादाद में सीटें जीतकर सत्ता में वापसी करेगी। आइये जानने का प्रयास करते हैं हार्दिक पटेल की वो कौन सी मांगें हैं जिसे कांग्रेस मानने को हुई मजबूर और भाजपा के गढ़ में घेरने को कांग्रेस के पास हैं वो कौन-कौन से तीर?
हार्दिक की मांगें मानने को मजबूर कांग्रेस
कांग्रेस ने पाटीदार नेता हार्दिक पटेल की पांच में से चार मांगों पर सहमति जताई है। लेकिन, पाटीदारों को आरक्षण देने के फार्मुले पर सात नवंबर तक का वक्त मांगा है। हार्दिक ने कहा कि सूरत में अब कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की सभा का विरोध नहीं करेंगे। सिर कटा लेंगे पर भाजपा का समर्थन भी नहीं करेंगे।
पाटीदार आरक्षण आंदोलन समिति और कांग्रेस के बीच चर्चा के बाद हार्दिक ने तीन नवंबर को राहुल की सभा का विरोध नहीं करने का एलान किया है। उन्होंने कहा कि भाजपा ने पाटीदार समाज का दमन किया। घरों में घुसकर महिलाओं का अपमान किया तथा युवाओं पर गोलियां चलाईं। इसलिए सिर कटा लेंगे, लेकिन भाजपा का समर्थन नहीं करेंगे। हार्दिक ने कहा कि कांग्रेस से भी उन्हें कोई प्रेम नहीं है। लेकिन, विपक्षी दल होने के नाते वही भाजपा को हराने में सक्षम है। इसीलिए पाटीदार आरक्षण और अन्य मुद्दों पर कांग्रेस से चर्चा कर रहे हैं।
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संवैधानिक-कानूनी पहलू देखते हुए होगी ओबसी कोटे पर बात
दैनिक जागरण से खास बातचीत में कांग्रेस नेता मीम अफजल ने बताया कि पाटीदारों को आरक्षण देने के फार्मूले पर जो बात हार्दिक पटेल के साथ हुई है उसके संवैधानिक और कानूनी पहलुओं को देखते हुए आगे की बातचीत की जाएगी। उन्होंने बताया कि यही वजह है कि पहले ये चार नवंबर की तारीख बातचीत के लिए रखी गई थी लेकिन उसे बढ़ाकर अब 7 नवंबर की गई है। मीम अफजल ने आगे बताया कि चूंकि कोटे को किसी भी सूरत में पचास फीसदी से ज्यादा नहीं बढ़ाया जा सकता है ऐसी स्थिति में इस पर विस्तार से बात कर आगे के बारे में फैसला करने की जरुरत है। जिसके लिए पार्टी को अभी वक्त चाहिए।
मीम अफजल की मानें तो गुजरात के चुनाव में इस वक्त जो सबसे बड़ा मुद्दा है वह है नौजवानों को रोजगार। यही वजह है कि जातिवाद की राजनीति से ऊपर उठते हुए कांग्रेस ने नौजवानों पर ध्यान केन्द्रित किया है और उनको ध्यान में रखकर पार्टी आगे की अपनी रणनीति बना रही है और लोगों को पार्टी से जोड़ रही है।
महारैली के दौरान बल प्रयोग पर कांग्रेस बिठाएगी एसआईटी
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सिद्वार्थ पटेल ने बैठक के बाद कहा कि कांग्रेस 25 अगस्त, 2015 को अहमदाबाद में हुई पाटीदार महारैली में पुलिस बल प्रयोग, युवाओं और महिलाओं के दमन की एसआइटी से जांच कराएगी। आंदोलन के दौरान मारे गए युवकों के परिजनों को 35-35 लाख रुपये और आश्रितों को योग्यतानुसार सरकारी नौकरी दी जाएगी। हार्दिक और अन्य पर लगाए गए राजद्रोह के मुकदमे वापस ले लिए जाएंगे। कांग्रेस ने भाजपा की ओर से गठित आयोग पर सवाल उठाते हुए कहा कि कांगेस आयोग का गठन वैधानिक तरीके से करेगी।
7 नवंबर तक कांग्रेस ने मांगा हार्दिक से वक्त
पाटीदार नेता और आरक्षण आंदोलन समिति के प्रवक्ता दिनेश बामणिया, अल्पेश कथीरिया, ललित वसोया और अतुल पटेल की प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भरतसिंह सोलंकी, पूर्व अध्यक्ष अर्जुन मोढवाडिया और सिद्धार्थ पटेल से चर्चा के बाद चार मांगों पर सहमति बन गई। आरक्षण के फार्मुले के लिए कांग्रेस ने सात नवंबर तक का वक्त मांगा है। हार्दिक और कांग्रेस ने मैच फिक्सिंग के भाजपा के आरोपों को नकारते हुए कहा कि भाजपा फिक्सिंग का खेल कर रही है। लेकिन इस बार उसकी चाल कामयाब नहीं होगी।
इस चुनाव की अहमियत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद गुजरात विधानसभा का जहां ये पहला चुनाव है तो वहीं दूसरी तरफ साल 1998 से भारतीय जनता पार्टी वहां पर लगातार सत्ता में बनी हुई है। ऐसे में इस बार का मुकाबला वहां पर बेहद दिलचस्प है।
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