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सुशासन बाबू के नए मंत्रिमंडल में 75 फीसद दागी, कैसे रुकेगा बिहार में अपराध

भ्रष्टाचार के मुद्दे पर महागठबंधन से अलग होने वाले नीतीश कुमार के मंत्रिमंडल में 75 फीसद चेहरे दागी हैं और उन पर आपराधिक केस दर्ज हैं।

By Rajesh KumarEdited By: Published: Wed, 02 Aug 2017 02:42 PM (IST)Updated: Wed, 02 Aug 2017 08:07 PM (IST)
सुशासन बाबू के नए मंत्रिमंडल में 75 फीसद दागी, कैसे रुकेगा बिहार में अपराध
सुशासन बाबू के नए मंत्रिमंडल में 75 फीसद दागी, कैसे रुकेगा बिहार में अपराध

नई दिल्ली, [स्पेशल डेस्क]। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपनी सरकार के काम के दम पर बिहार में सुशासन और विकास पुरुष की छवि बनाई है। उन्होंने जिस पिछड़े बिहार को भारत के बीमारू प्रदेश से हटाकर शानदार विकास किया, उसके चलते उनकी देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनियाभर में तारीफ की गई। यही वजह थी कि पिछले विधानसभा चुनाव में पूरे देश में मोदी लहर के बावजूद नीतीश कुमार की छवि के चलते महागठबंधन बिहार में भारतीय जनता पार्टी के विजयी रथ को रोकने में कामयाब हो पाए।

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लेकिन, सवाल ये उठ रहा है कि क्या नीतीश कुमार का सुशासन अब आगे बरकरार रहेगा? क्या वह बिहार को महागठबंधन से अलग होने के बाद फिर से उसी तरह का भयमुक्त वातावरण दे पाएंगे, जैसे उन्होंने भाजपा के साथ गठबंधन कर बिहार में आठ साल के दौरान दिया था? ये सवाल इस वक्त उठना लाजिमी है, क्योंकि नीतीश कुमार के मंत्रिमंडल में 75 फीसद दागी हैं।

भ्रष्टाचार के मुद्दे परे नीतीश का महागठबंधन सरकार से इस्तीफा

नीतीश कुमार ने तेजस्वी यादव पर भ्रष्टाचार में संलिप्तता को लेकर 26 जुलाई को बिहार की महागठबंधन सरकार से अपना इस्तीफा दे दिया और उसके अगले ही दिन उन्होंने भारतीय जनता पार्टी की मदद से नई सरकार की शपथ ली। 29 जुलाई को उन्होंने विधानसभा में अपना बहुमत भी साबित कर दिया। नीतीश कुमार मुख्यमंत्री तो भाजपा के वरिष्ठ नेता सुशील मोदी बिहार के उप-मुख्यमंत्री बने।

सुशासन बाबू के मंत्रिमंडल में 75 फीसद दागी

नीतीश कुमार के नए मंत्रिमंडल में करीब तीन चौथाई मंत्री दागी है, यानि इन सभी के ऊपर आपराधिक मामले चल रहे हैं। जिनमें से कुछ के खिलाफ तो काफी संगीन धाराओं के तहत मामले लंबित हैं। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) के मुताबिक, महागठबंधन सरकार के दौरान नीतीश मंत्रिमंडल में जितने दागी थे उससे भी ज्यादा सुशासन बाबू के नए मंत्रिमंडल में हैं। एडीआर रिपोर्ट के अनुसार नीतीश कुमार की नई सरकार में जिन 29 चेहरों को मंत्री पद की शपथ दिलाई गई है, उनमें से 22 मंत्रियों के खिलाफ आपराधिक केस चल रहे हैं। जबकि, महागठबंधन की बात करें तो उस वक्त 28 चेहरों में से 19 के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज थे।

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नीतीश सरकार में शामिल 9 मंत्रियों पर संगीन मामले
एडीआर ने यह रिपोर्ट मुख्यमंत्री नीतीश कुमार समेत 29 मंत्रियों की तरफ से नामांकन के वक्त दिए गए स्वैच्छिक हलफनामें का विश्लेषण कर बिहार इलेक्शन वॉच और एडीआर की तरफ से तैयार की है। रिपोर्ट में कहा गया है कि जिन 22 मंत्रियों ने अपने खिलाफ आपराधिक मामलों की घोषणा की है उनमें से 9 मंत्रियों के खिलाफ बेहद संगीन धाराओं के तहत केस दर्ज हैं।

नीतीश कुमार मंत्रिमंडल के दो मंत्रियों के खिलाफ हत्या की कोशिश के आरोप में भारतीय दंड संहिता की धारा 307 के अंतर्गत केस दर्ज हैं। जबकि, कई अन्य मंत्री डकैती, चोरी, फर्जीवाड़ा और अत्याचार जैसे संगीन मामले हैं।

9 मंत्रियों की पढ़ाई सिर्फ 12वीं तक
अगर इन मंत्रियों की शिक्षा की बात करें तो इस मामले में भी स्थिति ज्यादा बेहतर नजर नहीं आ रही है। एडीआर ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि नीतीश मंत्रिमंडल में शामिल 29 में से 9 मंत्रियों ने सिर्फ 8वीं से 12वीं के बीच ही पढ़ाई की है। यानि वे अंडरग्रेजुएट हैं। जबकि, 18 मंत्री या तो ग्रेजुएट हैं या फिर उच्च डिग्री हासिल की है। इसके अलावा, मौजूदा नीतीश कैबिनेट में सिर्फ एक महिला मंत्री हैं, जबकि महागठबंधन वक्त पिछली सरकार में दो महिलाएं थीं।

करोड़पति मंत्री में कमी
नीतीश की पिछली सरकार के मुकाबले करोड़पति मंत्री की संख्या में एक की कमी देखने को मिल रही है। मौजूदा समय में नीतीश कैबिनेटे में 21 मंत्री करोड़पति हैं जबकि महागबंधन के वक्त उनकी सरकार में 22 मंत्री करोड़पति थे। रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि इन 29 मंत्रियों की औसत संपत्ति 2.46 करोड़ के आसपास है।

यूपी में 45 फीसद मंत्री दागी
ऐसा नहीं है कि दागी मंत्री सिर्फ बिहार में हैं, बल्कि सभी राज्यों के मंत्रिमंडल में यह दागी चेहरे हैं। अगर उत्तर प्रदेश की योगी सरकार की बात करें तो उनके मंत्रिमंडल के 45 फीसद लोगों पर आपराधिक मामले चल रहे हैं। इनमें सबसे आगे है उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य, जिनके खिलाफ ग्यारह मामले दर्ज हैं। यूपी इलेक्शन वाच और एसोसिएशन फोर डेमोक्रेटिक रिफार्म्स (एडीआर) ने राज्य के 47 में से 44 मंत्रियों के हलफनामे का विश्लेषण किया है। आंकड़ा नहीं रहने के कारण तीन मंत्रियों दिनेश शर्मा, स्वतंत्र देव सिंह और मोहसिन रजा के बारे में पता नहीं चल सका। दिनेश शर्मा लखनऊ के मेयर थे, जबकि दो अन्य फिलहाल उत्तर प्रदेश विधानसभा अथवा विधान परिषद में से किसी के सदस्य नहीं हैं।

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