जानलेवा हो रही हैं हमारी सड़कें, साल-दर-साल बढ़ रहा है मौत का आंकड़ा
सड़कों पर हादसों के साथ-साथ इनमें मरने वालों की तादाद भी साल दर साल बढ़ रही है। इन हादसों को रोक पाने में प्रशासन नाकाम साबित होता दिखाई दे रहा है।
नई दिल्ली (स्पेशल डेस्क)। हमारे देश की सड़कें लगातार जानलेवा साबित हो रही हैं। बात सिर्फ छोटे शहरों की बड़ी सड़कों की ही नहीं है बल्कि हमारे राष्ट्रीय राजमार्ग और राज्य के राजमार्ग भी इससे अछूते नहीं रहे हैं। इन सड़कों पर लगातार न सिर्फ हादसों की संख्या बढ़ रही है बल्कि साल-दर-साल मौतों का आंकड़ा भी बढ़ रहा है। इन हादसों को रोक पाने में देश और राज्य की सरकारें नाकाम साबित होती दिखाई दे रही हैं। इसके पीछे एक वजह यह भी हो सकती है कि हादसों को रोकने की कोशिशें सिर्फ कागजों तक सिमट कर रह गई हैं। ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि हाल ही में बने यमुना-आगरा एक्सप्रेस वे पर हादसों को रोकने के लिए जो कमेटी बनाई गई थी उसकी रिपोर्ट आज तक धूल फांक रही है।
कोहरे में मुश्किल वाहन चलाना
उत्तर भारत की ही यदि यहां पर बात करें तो अक्टूबर से लेकर फरवरी तक होने वाली धुंध से यहां की कई सड़कों पर गाड़ी चलाना बेहद मुश्किल होता है। ऐसे में हादसों की संख्या में भी इजाफा होता है, क्योंकि खुली सड़कों पर धुंध में ज्यादा दूर तक दिखाई नहीं देता है। इसका एक नमूना 8 नवंबर को यमुना-आगरा एक्सप्रेस वे पर देखने को मिला था जहां करीब 18 गाड़ियां धुंध की वजह से आपस में भिड़ गई थीं। वहीं प्रदूषणकारी धुंध के कारण हुए भयानक हादसों ने पिछले दिनों उत्तर प्रदेश और पंजाब में कई निर्दोष जिंदगियों को लील लिया। जानलेवा प्रदूषण रोकने के लिए तो सरकार और अदालतों ने सक्रियता दिखाई, लेकिन सालाना संकट के बावजूद धुंध से होने वाली सड़क दुर्घटनाओं की रोकथाम को लेकर कहीं कोई सुगबुगाहट नहीं दिखाई देती है।
.jpg)
चौंकाने वाले हैं आंकड़े
इस बाबत सामने आने वाले आंकड़े बेहद चौंकाने वाले हैं। पिछले वर्ष ही यानी वर्ष 2016 में देश भर में करीब 480652 सड़क हादसे हुए थे। जिसमें करीब 150785 लोगों की मौत हुई थी। इन हादसों में करीब 494624 लोग घायल हुए थे। यह आंकड़े इसलिए भी चौंकाने वाले हैं क्योंकि इस दौरान हुए सड़क हादसों में मारे गए लोगों में 18-35 आयु वर्ग के करीब 46.3 फीसद हैं। वर्ष 2016 में जितने सड़क हादसे हुए हैं उनमें करीब 29.6 फीसद हादसे सिर्फ राष्ट्रीय राजमार्गों पर हुए थे। जिसमें 34.5 फीसद लोगों की मौत हुई थी। इसके अलावा यदि राज्य पर नजर डालें तो राजमार्गों पर इस वर्ष करीब 25.3 फीसद सड़क हादसे हुए थे जिसमें 27.9 फीसद लोगों की मौत हुई थी। इसका सीधा अर्थ यह है कि देश में राष्ट्रीय राजमार्ग और राज्यों के राजमार्ग की हालत अच्छी नहीं है।
हादसों पर चिंतित कोर्ट लेकिन नहीं बनी बात
लगातार खराब हो रही सड़कों और इन पर होने वाले हादसों को कम करने को लेकर कई बार सवाल भी खड़े हुए हैं, लेकिन इनका नतीजा कुछ नहीं निकला। इस बात को आगरा डेवलेपमेंट फाउंडेशन के सचिव केसी जैन ने भी इलाहाबाद हाईकोर्ट में दायर एक जनहित याचिका में उठाया था। हालांक उन्होंने यह याचिका यमुना-आगरा एक्सप्रेस वे पर होने वाले हादसों पर ध्यान खींचने और इन्हें रोकने के मकसद से लगाई थी। दैनिक जागरण को उन्होंने बताया कि इस बाबत कोर्ट ने एक हाईलेवल कमेटी बनाकर हादसे रोकने के बाबत सुझाव मांगे थे। लेकिन इन सुझावों पर कभी कोई अमल नहीं हुआ है। इस दौरान उन्होंने बताया कि इस एक्सप्रेस वे पर हादसों की दो बड़ी वजहें थीं। इनमें से एक वाहनों की तेज स्पीड और दूसरी टायरों का फटना थी।
.jpg)
दोपहिया वाहन हादसों की बड़ी वजह
जैन की इस बात की तसदीक कहीं न कहीं आंकड़े भी करते हैं। आंकड़े बताते हैं कि सड़क हादसों में ज्यादातर शिकार होने वालों में दोपहिया वाहन ही हैं। यह करीब 38 फीसद हैं। वहीं दूसरे नंबर पर कार, जीप और टैक्सी हैं, जो करीब 23.6 फीसद है। तीसरे नंबर पर ट्रक, ट्रैक्टर ओर टेंपो हैं जो करीब 21 फीसद है। इनके बाद ऑटो रिक्शा, बस और अन्य वाहन आते हैं, जो कुल 21 फीसद हैं।
आंकडे बयां करते हैं कड़वी सच्चाई
| वर्ष | हादसे | मौत | घायल |
| 2016 | 4,80,652 | 1,50,785 | 4,94,624 |
| 2015 | 5,01,423 | 1,46,133 | 5,00,279 |
| 2014 | 4,89,400 | 1,39,671 | 4,93,474 |
| 2013 | 4,86,476 | 1,37,423 | 4,69,900 |
| 2012 | 4,90,383 | 1,39,091 | 4,69,900 |
यूएन जता चुका है चिंता
भारत में लगातार बढ़ रहे सड़क हादसों पर संयुक्त राष्ट्र तक चिंता जता चुका है। इतना ही नहीं सरकार को संयुक्त राष्ट्र से वादा करना पड़ा है कि वह 2020 तक दुर्घटनाओं में 50 फीसद कमी लाएगी। इस दिशा में काम भी शुरू हो गया है जिसके परिणामस्वरूप 2017 में दुर्घटनाओं में मामूली कमी के संकेत मिले हैं।

हमारी गलतियों का नतीजा
आंकड़ों से एक बात यह भी निकलकर आई है कि सड़कों पर जो हादसे होते हैं वह सिर्फ सड़कों की खराबी की वजह से ही नहीं बल्कि हमारी अपनी गलतियों का भी नतीजा होते हैं। आंकड़ों में यह बात निकलकर सामने आई है कि इस दौरान हुए सड़क हादसों में 14894 हादसे नशा कर वाहन चलाने की वजह से हुए थे जिसमें 6131 लोगों की मौत हुई थी। इसके अलावा गाड़ी चलाते समय हुए हादसों की संख्या 4976 थी जिसमें 2138 लोगों की मौत हुई थी। इसके अलावा ओवललोडेड वाहनों की वजह से 61325 हादसे हुए जिसमें 21302 लोगों की मौत हुई थी।
हाईवे और एक्सप्रेस वे पर नदारद साइन बोर्ड
सड़कों पर लगातार बढ़ रहे हादसे सरकार और प्रशासन की कमी का ही नतीजा हैं। दरअसल, सड़कों पर दौड़ते वाहनों को सही जानकारी देने वाले साइन बोर्ड की कमी सड़कों पर साफतौर पर दिखाई देती है। कहीं कहीं तो इन साइन बोर्ड पर निजी पोस्टर कब्जा किए हुई भी आसानी से दिखाई दे जाते हैं, जिनको लेकर प्रशासन चुप्पी थामे रहता है। वहीं इस बात को भी नकारा नहीं जा सकता है कि हमारे यहां सड़क निर्माण के मुकाबले सड़क सुरक्षा उपायों पर बहुत कम राशि खर्च की जाती है। यही कारण है कि ज्यादातर सड़कों पर साइन बोर्ड गलत जगहों पर लगाए गए हैं। उन पर लिखी इबारत इतनी छोटी है कि उसे दूर से पढऩा संभव नहीं होता। इसके अलावा घुमाओं और तीखे मोड़ों पर मार्गदर्शक फ्लोरिसेंट तीरों की कमी स्पष्ट रूप से नजर आती है।
.jpg)
हाईवे पर लेन को फॉलो नहीं करते वाहन
इस बात को केसी जैन भी स्वीकार करते हैं। उनका कहना है कि यमुना-आगरा एक्सप्रेस वे पर चलने वाले वाहन लेन को फॉलो नहीं करते हैं। हालांकि उन्होने यह भी माना कि मानक गति से तेज वाहनों और लेन फॉलो न करने वाले वाहनों का चालान किया जाता है लेकिन ऐसे वाहनों की गिनती बेहद कम है। उनके मुताबिक इस वर्ष अब तक करीब 18 लाख वाहन इस एक्सप्रेस वे से गुजरे जिनमें से महज पांच हजार वाहनों का ही चालान किया गया।
सुनिश्चित नहीं लेन
इसको देश का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि देश के किसी भी हिस्से में अब तक राजमार्गो अथवा एक्सप्रेसवे पर लेन ड्राइविंग को सुनिश्चित नहीं किया जा सका है। जबकि विदेशों में हर लेन के लिए अलग स्पीड तय होती है और बिना उचित संकेत दिए लेन बदलने की अनुमति नहीं होती। संसद में प्रस्तुत नए सड़क सुरक्षा विधेयक में भी इसका कोई प्रावधान नहीं किया गया है।
यह भी पढ़ें: 13 हजार करोड़ की लागत से बना है हादसों का यमुना-आगरा ‘एक्सप्रेस वे’
यह भी पढ़ें: अमेरिका-उत्तर कोरिया के युद्ध में सियोल-टोक्यो में ही मारे जाएंगे 20 लाख लोग
यह भी पढ़ें: संयुक्त राष्ट्र में स्थायी सदस्यता के नाम पर ये देश कर रहे हैं भारत के साथ धोखा
इस मुस्लिम बहुल देश की करेंसी पर शान से अंकित हैं हिंदुओं के पूजनीय ‘गणपति’

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।