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    ऐसे भी होती है तरक्की, झारखंड की महिलाओं ने पेश की नजीर

    By Kamal VermaEdited By:
    Updated: Tue, 07 Nov 2017 06:09 PM (IST)

    झारखंड में महिलाएं काबिले तारीफ काम कर रही हैं। यह महिलाएं न सिर्फ खुद समृद्धि की राह पर हैं बल्कि इन्होंने दूसरी महिलाओं को भी आत्मननिर्भर बनाया है।

    ऐसे भी होती है तरक्की, झारखंड की महिलाओं ने पेश की नजीर

    जेएनएन, रांची। झारखंड में ग्रामीण महिलाएं आर्थिक समृद्धि की राह पर लगातार आगे बढ़ रही हैं। ये महिलाएं समूह बनाकर खुद आत्‍मनिर्भर तो हो ही रही हैं दूसरों को भी रोजगार देकर उन्‍हें स्‍वावलंबन की राह दिखा रही हैं। यह देशभर की उन ग्रामीण महिलाओं के लिए भी संदेश दे रही हैं कि महिलाएं अगर ठान लें तो गरीबी को मात दी जा सकती है। जमशेदपुर के हुरलुंग गांव की महिलाओं ने समूह बनाकर खुद के घर को कारखाने में तब्दील कर दिया। उन कारखानों में दस प्रकार के ईको हर्बल साबुन का निर्माण होता है। इनका कारोबार इस कदर बढ़ गया है कि ये महिलाएं फ्लाइट से सफर करती हैं। इसी तरह की तस्वीर राज्‍य के दूसरे जिलों में भी है।

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    कोडरमा में महिलाओं को अपना बैंक, अपना उद्यम

    कोडरमा जिले के जयनगर क्षेत्र में ग्रामीण महिलाओं का अपना बैंक और अपना उद्यम है। ग्रामीण महिलाओं द्वारा संचालित टोला बैंक महिला स्वावलंबन की दिशा में काफी कारगर साबित हो रहा है। करीब दस वर्ष पूर्व प्रदान संस्था द्वारा संचालित दामोदर महिला मंडल के द्वारा यहां कुछ महिला समूहों के साथ टोला बैंक की शुरुआत की गई थी। आज पूरे इलाके में ऐसे करीब 50 से ज्यादा टोला बैंक संचालित हैं, जो महिलाओं की आर्थिक जरूरतों को पूरा करने के साथ-साथ उन्हें स्वावलंबी बनाने में भी कारगर सिद्ध हो रहे हैं। दामोदर महिला मंडल के इस प्रयास का अनुकरण कर कई और महिला मंडल भी इस तरह का समूह बनाकर बैंक का संचालन कर रही हैं। इस टोला बैंक में हर सप्ताह या फिर हर माह समूह की महिलाओं के द्वारा एक निश्चित राशि जमा की जाती है।

    रात 12 बजे भी राशि निकाल सकती हैं महिलाएं
    आज इन महिला समूहों के बक्से में लाखों रुपये हैं। यह टोला अथवा बक्सा बैंक 24 घंटे 7 दिन की तर्ज पर काम करता है। यानी समूह की महिलाएं आवश्यकता पड़ऩे पर किसी भी दिन रात 12 बजे भी इस टोला बैंक से राशि निकाल सकती है। बदले में इन्हें प्रतिमाह 2 फीसद की दर से ब्याज देने पड़ते हैं, जिसकी राशि समूह की सभी महिलाओं के बीच मुनाफे के रूप में एक निश्चित अवधि के बाद बंटती है। एक ग्रुप में कम से कम 20 सदस्य होते हैं। यदि ग्रुप से बाहर की कोई महिला टोला बैंक या बक्सा बैंक से ऋण लेना चाहे तो उसे ग्रुप की ही किसी सदस्य की गारंटी पर 3 फीसद ब्याज की दर से ऋण दिया जाता है। प्रखंड में ऐसे कई महिला मंडल जैसे पूजा महिला मंडल, गीता महिला मंडल, स्वच्छ महिला मंडल, सुरभि महिला मंडल आदि हैं जिनकी राशि जमा है।

    टोला बैंक से जुड़ कई महिलाएं बनीं स्‍वावलंबी

    गांव की गीता देवी की माने तो इस टोला बैंक के सहयोग से ही सिलाई-कढ़ाई सीखकर स्वरोजगार से जुड़ी और स्वावलंबी बनी, साथ ही अपने बच्चे को बेहतर बोर्डिंग स्कूल में शिक्षा दे रही हैं। वह अपनी सभी छोटी-छोटी जरूरतों को आज पूरा कर रही हैं। इसी तरह पूजा देवी बताती है कि टोला बैंक के सहयोग से ही वह अपने पुत्र को रांची में इंजीनियरिंग की शिक्षा दिला रही हैं और दो बेटियों को बेहतर स्कूल में पढ़ा रही हैं। कविता देवी की मानें तो टोला बैंक से ऋण लेकर उसके पति ने पॉल्ट्री फार्म खोला और आज वह खुद स्वरोजगार से जुड़ गईं। गीता बताती है कि अगर टोला बैंक न होता तो शायद वह अपने बेटे का इलाज वेलोर में नहीं करा पाती। इस बैंक का बक्सा एक समूह की महिला के पास रहता है तो दूसरे के पास लेनदेन का खाता और तीसरे के पास उस बक्से का चाबी। किसी को आवश्यकता पडने पड़ तीनों सदस्य मिलकर बैंक से राशि निकालकर जरूरतमंद महिला को देती हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि लेनदेन में ईमानदारी ऐसी है कि ऋण लेकर पैसा नहीं चुकाने या विवाद का एक भी मामला पिछले दस वर्षों में सामने नहीं आया।

    अगरबत्‍ती बना स्‍वावलंबन की राह पर गिरिडीह की महिलाएं

    गिरिडीह : जिला मुख्‍यालय से दूर गांडेय प्रखंड के कई गांव की महिलाएं अब स्वावलंबी बन गई हैं। इनके जीवन में नाबार्ड ने रंग भरे हैं। वर्ष 2016-17 में नाबार्ड की सूक्ष्म उद्यमिता विकास योजना के तहत स्वयंसेवी संस्था ग्रामीण विकास समिति ने स्वयं सहायता समूहों की महिलाओं को 15 दिनों का अगरबत्ती बनाने का प्रशिक्षण दिया। दासडीह, महेशमुंडा, कुंडलोहारी, बुधूडीह, कुसुंभा गांव की कई महिलाओं ने प्रशिक्षण लिया। प्रशिक्षण पाकर 60 महिलाएं अगरबत्ती बनाने के काम में लगीं हैं। कच्चे माल और तैयार अगरबत्ती बेचने की व्यवस्था संस्था ही करती है। अगरबत्ती बनाने पर प्रति किलो 20 रुपये की दर से मेहनताना मिलता है। एक महिला रोज 5 किलो अगरबत्ती रोज बनाती हैं। इससे प्रतिदिन 100 रुपये की आय होती है। कुंडलोहारी की संगीता देवी कहती हैं कि कई बार तो मुसीबत के समय यही पैसे परिवार के काम आए। बुधूडीह की सोनी देवी ने बताया कि हमारे घरवाले इस काम को पसंद नहीं करते थे। उनको मनाकर प्रशिक्षण लिया। अब हमारे खाली समय का सदुपयोग हो रहा है और पैसों की किल्‍लत भी नहीं रही।

    खेती से आत्‍मनिर्भर बन गिरिडीह की महिलाओं ने गरीबी को दी मात

    जामताड़ा : दुलाडीह गांव की गरीब चंपा आज मेहनत की बदौलत आत्मनिर्भर बन गई। उसके पास खेती के लिए एक छोटी सी बंजर जमीन का टुकड़ा मात्र था, जिसे उसने मेहनत से उर्वर बना लिया है। सातवीं पास चंपा के पति पढ़े-लिखे नहीं हैं। इसलिए घर की अधिसंख्य जिम्मेदारी वही निभाती है। चौतरफा विपन्नता के बावजूद चंपा देवी ने हार नहीं मानी। महिला स्वयं सहायता समूह से जुड़कर दो वर्ष पहले मनरेगा कूप लिया। इसी कूप के पानी से खुद की मेहनत के बूते दो बीघा बंजर भूमि को संवार दिया। खेत में गेंहू, सरसों, टमाटर, प्याज की फसल लगा उसने अपने घर को संपन्न बनाया। सब्जी की फसल से उसने चायना मॉडल का पंप सेट भी ले लिया। एक मौसम में करीब 35,000 रुपये कमा लेती हैं। चंपा देवी तो बानगी भर हैं। अनिता देवी, सुषमा देवी समेत इस प्रखंड की दर्जनों महिलाएं हैं जरे महिलर स्‍वयं सहायता समूह बना खेती के जरिये आर्थिक समृद्धि की राह पर आगे बढ़ रही हैं।

    पहले खुद बनी आत्‍मनिर्भर फिर दूसरी महिलाओं को बनाया स्‍वावलंबी

    जिले के सुदूरवर्ती प्रखंड कांडी के बलियारी गांव की रहनेवाली महिला सातवीं पास ललिता देवी ने अपने बल पर स्वरोजगार अपनाया और उससे पहले खुद आत्मनिर्भर बनी। इसके बाद गांव की दो दर्जन से अधिक महिलाओं को आत्‍मनिर्भर बनने के लिए प्रेरित किया। इसके लिए उसने सिलाई कटाई को ही स्वरोजगार का साधन चुना। उनकी इस क्षमता को देख यूनाइटेड बैंक ने ऋण के रूप में उन्‍हें 50 हजार रुपए उपलब्ध कराया। ऋण की राशि से ललिता ने मशीन खरीदी। साथ ही किराना दुकान भी खोल लिया। धीरे-धीरे उसका व्यवसाय आगे बढऩे लगा। वह आर्थिक रूप से सबल हो गई। बच्चों की पढ़ाई लिखाई की जवाबदेही स्वयं उठा रही हैं। इतना ही नहीं ललिता ने अपने आसपास की दो दर्जन महिलाओं को सिलाई कटाई का प्रशिक्षण दिया। उनकी प्रेरणा से दो दर्जन से अधिक महिलाएं आत्मनिर्भर बनकर अपने परिवार का भरण पोषण कर रही हैं। ललिता अपने आसपास रहने वाली महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए काम कर रही है। वह कहती है कि महिलाएं आर्थिक रूप से सशक्त होकर आत्मनिर्भर हो सकती हैं तथा पैसे के लिए उसे किसी अन्य पर निर्भर नहीं होना पड़ेगा। आसपास की महिलाएं ललिता को अपना आदर्श मानती हैं।

    कैंटीन व कैटरिंग के जरिए स्‍वावलंबन की राह पर सिमडेगा की महिलाएं

    सिमडेगा जिले के ठेठईटांगर प्रखंड की महिलाएं कैंटीन व कैटरिंग के जरिए स्‍वावलंबन की राह पर आगे बढ़ चली हैं। कमल स्वयं सहायता समूह की दर्जनों महिलाएं अपने हाथों के हुनर का लोहा मनवा रही है। पिछले साल दिसंबर में केरल में आयोजित फूड फेस्टिवल में भाग लेकर इन महिलाओं ने लगभग डेढ़ लाख रुपए की कमाई की थी। केरल में लोगों को झारखंड के सिमडेगा जैसे इलाकों का पकवान खूब भाया। यही कारण रहा कि महिला समूह को लगभग 25 दिनों में डेढ़ लाख रुपए की आय हुई। फिलहाल, इस ग्रुप की महिलाएं सिमडेगा सदर अस्पताल में कैंटीन का संचालन कर रही है और सिमडेगा में होनेवाले कार्यक्रमों में भी ये महिलाएं भोजन उपलब्ध कराती हैं। इससे भी महिला समूह की अच्छी आमदनी हो जाती है। इन पैसों से महिलाओं ने कैटरिंग की सारी सामग्री खरीद ली। कमल ग्रुप की अध्यक्ष ओलेंग लकड़ा ने बताया कि सामूहिक रूप से शुरू की गई इस संस्‍था के कार्य दिनों दिन बढ़ रहे हैं, जिससे सदस्यों को काफी लाभ मिल रहा है। बताया कि ग्रुप में जुड़ी सदस्य सलोमी डुंगडुंग इतनी गरीब थी कि पूर्व में ही वह अपनी जमीन आदि गिरवी रखकर अपने परिवार का जैसे तैसे भरण पोषण करने को विवश थी। अब संस्था को हुए लाभ से उसने अपनी गिरवी रखी जमीन को भी छुड़ा लिया है। इस महिला समूह की सभी सदस्‍य स्‍वरोजगार से जुड़ आर्थिक समृद्धि की राह पर लगातार आगे बढ़ रही हैं। इस कारण इस ग्रुप से लगातार महिलाएं जुड़ रही हैं। उन्होंने बताया कि प्रत्येक रविवार को गिरिजाघर के समीप चबूतरा पर सदस्यों के साथ बैठक की जाती है, जिसमें हर विषय पर विस्तृत चर्चा तथा सामूहिक निर्णय लिए जाते हैं।

    सोलर लैंप बनाकर आत्मनिर्भर बन रही लोहरदगा की महिलाएं

    भंडरा प्रखंड की दर्जनों महिलाएं इन दिनों सोलर लैंप बना अपनी-अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत कर रही हैं। महिलाओं ने इसे आत्मनिर्भरता का माध्यम बनाया है। सोलर लाइट निर्माण के माध्यम से महिलाएं आज बड़े आराम से आठ से दस हजार रुपए प्रतिमाह की कमाई कर रही हैं। भंडरा निवासी रेखा कुमारी, स्वाती उरांव, बुधमनियां उरांव, शहनाज खातून, ललिता उरांव, अनिता उरांव, शीला कुमारी आदि महिलाएं सोलर लैंप बनाकर अपनी आर्थिक स्थिति सुधार रही हैं। इसमें महिलाओं का सहयोग किया है महिला आजीविका मिशन संस्था ने। इस संस्था ने महिलाओं को सोलर लैंप बनाने का प्रशिक्षण दिया। साथ ही कच्चे माल और बाजार उपलब्ध कराने में भी सहयोग किया। अब यहां की महिलाएं गांवों में महिला समूह के माध्यम से सरकारी विद्यालयों में अनुदानित दर पर सोलर लाइट उपलब्ध करा रही हैं। सोलर लैंप बनाने में जुटी रेखा कुमारी, वीणा कुमारी, स्वाति उरांव का कहना है कि सोलर लैंप बनाने में पंचायत की फिलहाल 12 महिलाएं जुटी हैं। रोजाना महिला समूहों द्वारा 350-400 सोलर लैंप का निर्माण किया जाता है। सोलर लैंप बनाने से हर माह 8-10 हजार की कमाई हो रही है। एक सोलर लाइट बनाने पर उन्हें 12 रुपए की मजदूरी मिलती है। एक महिला बड़े आराम से एक दिन में तीन-चार सौ रुपए का काम कर लेती हैं।

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