देवभूमि पर जंग: हिमाचल प्रदेश में हमेशा नदारद रही है तीसरे दल की भूमिका
हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में तीसरे दल की भूमिका न के बराबर ही रही है। हालांकि इसमें हिमाचल विकास कांग्रेस (हिविकां) और जनता दल अपवाद है।
नई दिल्ली (स्पेशल डेस्क)। हिमाचल प्रदेश में चुनाव प्रचार अपने पूरे चरम पर पहुंचा चुका है। 9 अक्टूबर को होने वाले मतदान के लिए यहां पर 7 अक्टूबर को प्रचार पूरी तरह से थम जाएगा। भाजपा की तरफ से यहां पर पीएम नरेंद्र मोदी समेत पार्टी अध्यक्ष अमित शाह और दूसरे बड़े नेता कई रैलियों को अंजाम दे चुके हैं। वहीं दूसरी तरफ यदि बात की जाए कांग्रेस की तो यहां पर राहुल गांधी ने भी रैली की है। बहरहाल, हिमाचल प्रदेश में गिनी-चुनी बार की बात न की जाए तो यहां पर हर बार जनता ने राज्य की कमान दूसरी पार्टी को सौंपी है। 1985 में जरूर यहां पर जनता ने सत्तारूढ़ पार्टी को जीत दिलाई थी। इसके बावजूद कभी ऐसा नहीं हुआ कि इन दोनों पार्टियों से इतर कोई तीसरा दल या गठबंधन एक विकल्प के तौर पर सामने आया हो।
तीसरे दल की भूमिका न के बराबर
हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में तीसरे दल की भूमिका न के बराबर ही रही है। हालांकि इसमें हिमाचल विकास कांग्रेस (हिविकां) और जनता दल अपवाद है। भाजपा ने 1998 में हिविकां के साथ मिलकर हिमाचल की सत्ता हासिल की थी। वर्ष 1990 में जनता दल ने भाजपा के साथ गठजोड़ किया था और जनता दल के 11 विधायक जीते थे।
तीसरे दल के रूप में बसपा भी रही फेल
2007 में बसपा ने हिमाचल में एक सीट पर जीत दर्ज की थी, लेकिन बाद में बसपा के विधायक ने भाजपा का दामन थाम लिया था। तीसरे दल के रूप में बसपा लगातार कोशिश कर रही है, पर उसे सफलता नहीं मिल पाई है। इस बार भी बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने प्रदेश की 68 सीटों में से 42 पर प्रत्याशी उतारे हैं। हालांकि 1990 से बसपा का हाथी पहाड़ चढऩे का प्रयास कर रहा है, लेकिन असफल ही रहा है।
जमानत नहीं बचा सके बसपा प्रत्याशी
छह विधानसभा चुनावों के दौरान बसपा का एक ही प्रत्याशी विधानसभा की चौखट लांघ पाया था। इसके अलावा अभी तक बसपा के हाथी पर सवार हो चुके प्रत्याशी अपनी जमानत भी नहीं बचा पाए। प्रदेश के मतदान प्रतिशत पर यदि नजर डाली जाए तो बसपा भी तीसरे विकल्प देने का सपना पाले अन्य राष्ट्रीय और राज्य स्तर के राजनीतिक दलों की तरह छटपटाती हुई नजर आती है। अभी तक बसपा को 2007 के विधानसभा चुनाव के दौरान सात फीसद सबसे अधिक वोट मिले। इसके बाद और इससे पहले के विधानसभा चुनावों में एक से दो फीसद वोट के आंकड़ों में उलझ कर रह गई है।
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