जानें- आखिर क्या है WMCC जिसमें पहली बार उठा डोकलाम विवाद का मुद्दा
डोकलाम विवाद कोई इसी वर्ष पहली बार सामने नहीं आया था बल्कि यह काफी पुराना विवाद है। भारत-चीन सीमा पर शांति बनाए रखने के उद्देश्य WMCC की स्थापना की गई थी
नई दिल्ली (स्पेशल डेस्क)। डोकलाम विवाद को अभी महज ढाई माह ही गुजरा है। आज यह मामला भले ही शांत हो गया हो लेकिन एक हकीकत यह भी है कि चीन की आंख आज भी इस विवादित इलाके से हटी नही है। जिस वजह से इस इलाके में विवाद शुरू हुआ था वह काम चीन आज भी जारी किए हुए है। हालांकि हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि यह विवाद कोई इसी वर्ष पहली बार सामने नहीं आया था बल्कि यह काफी पुराना विवाद है। भारत-चीन सीमा पर शांति बनाए रखने के उद्देश्य से ही संपर्क एवं समन्वय के लिए संस्थागत तंत्र के रूप में 2012 में वर्किंग मैकेनिज्म फॉर कंसलटेशन एंड कॉर्डिनेशन (Working Mechanism for Consultation and Coordination, WMCC) की स्थापना की गई थी। इसको सीमा पर बार-बार अतिक्रमण से उपजने वाले तनाव से निपटने के लिए स्थापित किया गया था। सीमा सुरक्षाकर्मियों के बीच संवाद और सहयोग को मजबूत रखने के विचार को भी ध्यान इसमें रखा गया था।
कैसे हुई थी डोकलाम विवाद की शुरुआत
यहां पर हम आपको याद दिला दें कि इस वर्ष डोकलाम विवाद की शुरुआत 18 जून, 2017 को उस वक्त हुई, जब कुछ भारतीय सैनिकों ने दो बुलडोजर्स के साथ पीएलए के सैनिकों को इस इलाके में सड़क निर्माण करने से रोक दिया था। इसके बाद 9 अगस्त, 2017 को चीन ने दावा किया कि उसके कुछ सैनिक और कुछ चीजें ही विवादित इलाके में हैं। इस विवाद पर लगातार बयानबाजी होती रही। चीन के बयानों को दरकिनार करते हुए भारत ने दावा किया था कि वहां पर चीन के करीब 300 से 400 जवान मौजूद हैं। ब्रिक्स सम्मेलन से पहले इस विवाद को सुलझाने की कवायद तेज हुई जिसके बाद यह हुआ कि 28 अगसत 2017 को दोनों देशों की सेनाओं ने पीछे हटने का निर्णायक फैसला लिया। यह विवाद 72 दिनों तक बरकरार रहा था। इस दौरान चीन की तरफ से काफी तीखी बयानबाजी तक की गई थी। इतना ही नहीं चीन ने सीमा पर अपने जवानों तक की संख्या में इजाफ कर लिया था। इसका ही नतीजा था कि भारत को अपनी सीमा पर चौकसी के लिए अतिरिक्त जवानों को तैनात करना पड़ा था।
ब्रिक्स सम्मेलन में जाने से पीएम का इंकार
इसके पीछे वजह थी कि ब्रिक्स सम्मेलन में भारतीय पीएम नरेंद्र मोदी ने विवाद के बाद जाने से इंकार कर दिया था। लिहाजा चीन के लिए इस विवाद को सुलझाना बड़ी चुनौती बन गई थी। वहीं इसको लेकर जापान और अमेरिका ने भी भारत का साथ दिया था। हालांकि इसके बाद मीडिया में यह भी रिपोर्ट आई थी कि चीन ने एक बार फिर से इस इलाके में सड़क निर्माण का काम शुरू कर दिया है।
WMCC की बैठक में पहली बार उठा डोकलाम विवाद
इस विवाद के करीब ढाई माह बाद बीजिंग में हुई डब्ल्यूएमसीसी की बैठक में पहली बार भारत और चीन ने इस मुद्दे पर बातचीत की है। भारत की तरफ से इस बैठक में विदेश मंत्रालय में संयुक्त सचिव (पूर्व एशिया) प्रणय वर्मा ने भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया। वहीं चीन की ओर से एशियाई मामलों के विभाग के महानिदेशक शिआओ किआन ने नेतृत्व किया।
इन मुद्दों पर हुई दोनों देशों में बात
इस दौरान दोनों देशों ने अपनी सीमा के सभी सेक्टरों में स्थिति की समीक्षा की। इसके आपसी विश्वास बढ़ाने और सैन्य संपर्क बढ़ाने पर भी जोर दिया। बैठक के बाद भारतीय दूतावास की ओर से एक प्रेस विज्ञप्ति भी जारी की गई जिसमें इस बैठक को लेकर जानकारी दी गई थी। इस विज्ञप्ति में बैठक को रचनात्मक और सकारात्मक बताया गया है। दोनों पक्षों ने भारत-चीन सीमा पर सभी सेक्टरों में स्थिति की समीक्षा की और सीमा क्षेत्र में शांति बनाए रखने पर सहमत हुए। यह द्विपक्षीय संबंधों के स्थायी विकास के लिए महत्वपूर्ण है।
अरुणाचल पर भी है चीन की आंख
गौरतलब है कि भारत-चीन सीमा विवाद में 3,488 किलोमीटर वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) शामिल है। अरुणाचल प्रदेश को चीन दक्षिणी तिब्बत बताते हुए दावा करता है। बदले में भारत अक्साई चीन पर दावा करता है। 1962 के युद्ध में चीन ने इस क्षेत्र पर कब्जा कर लिया था। यहां पर यह बात भी ध्यान रखने वाली है कि चीन भारत के पूर्वोत्तर राज्य अरुणाचल प्रदेश को भी अपना हिस्सा बताते हुए इस पर अपना हक जताता रहा है। डोकलाम विवाद के दौरान ही जब बोद्ध धर्म गुरू तवांग पहुंचे थे तब भी चीन ने इसको लेकर काफी बयानबाजी की थी। अपने बयानों में चीन की तरफ से यहां तक कहा गया था कि वह अपने इलाकों की रक्षा करने के लिए पूरी तरह से स्वतंत्र है और किसी भी सीमा तक जा सकता है।
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