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    पाकिस्तान से ऐसे कब्जे में लिया था टाइगिर हिल, इन जवानों ने निभाई थी अहम भूमिका

    By Manish NegiEdited By:
    Updated: Thu, 21 Jul 2016 10:12 AM (IST)

    करगिल युद्ध के दौरान भारत की जीत में वायुसेना के जवानों ने अहम भूमिका निभाई थी।

    नई दिल्ली। करीब 17 साल पहले साल 1999 के करगिल युद्ध में भारत ने पाकिस्तान को पटखनी देकर इतिहास रचा था। पाकिस्तान के साथ इस लड़ाई में भारतीय सेना के जवानों ने अदम्य साहस का परिचय दिया था। इस लड़ाई में भारतीय वायुसेना के एक समूह ने भी अहम भूमिका निभाई थी।

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    करगिल युद्ध के दौरान वायुसेना ने 17,400 फीट से भी ज्यादा की उंचाई में टाइगर हिल पर स्थित पाकिस्तानी चौकी को लेजर नियंत्रित बमों के जरिये ध्वस्त किया था। पाकिस्तान के लिए ये चौकी बहुत महत्वपूर्ण थी क्योंकि, पाकिस्तानी सैनिक इसके जरिए श्रीनगर और लेह को जोड़ने वाली नेशनल हाइवे 1ए और द्रास शहर को सीधा निशाना बना सकते थे।

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    पाकिस्तान से दो-दो हाथ का मौका नहीं मिला

    भारतीय वायुसेना में शामिल ये पायलट काफी युवा थे। इनमें स्क्वाड्रन लीडर्स के अलावा शामिल कुछ फ्लाइट लेफ्टिनेंट्स की उम्र तो महज 20 के आसपास थी। सभी पायलटों में इस बात को लेकर काफी निराशा थी कि उन्हें पाकिस्तानी वायुसेना से दो-दो हाथ करने का मौका कभी नहीं मिल पाएगा। तब फ्लाइट लेफ्टिनेंट रहे श्रीपद टोकेकर ने एनडीटीवी के साथ बातचीत में बताया कि 'हम जानते थे कि पाकिस्तान की वायु सेना आस-पास हैं, क्योंकि हमारे विमानों के रडार उनकी गतिविधियां पकड़ रहे थे। हालांकि हमें कभी मुठभेड़ का मौका नहीं मिला। मैं मानता हूं कि यह बेहद निराशाजनक अनुभव था।'

    पटनायक ने किया था पहला हमला

    17 जून, 1999 का वो दिन, जब करगिल युद्ध अपने चरम पर था। उस वक्त स्क्वाड्रन लीडर रहे डीके पटनायक मुंथो ढालो पर स्थित महत्वपूर्ण पाकिस्तानी चौकी का पता लगाने और उस पर हमला करने वाले पहले पायलट थे। लद्दाख के बटालिक सेक्टर में भारतीय सरजमीं पर घुसपैठ करने वाली पाकिस्तानी सेना के लिए यह चौकी उनकी प्रशासनिक और लॉजिस्टिक बेस थी।

    करगिल युद्ध के दौरान पूरी पाकिस्तानी सेना के लिए यह चौकी रीढ़ के समान थी। लेकिन, स्क्वाड्रन लीडर पटनायक जैसे वायुसेना अधिकारियों ने काफी ऊंचाई से सीधा गोता लगाया और पाकिस्तानी सेना की वार मशीनरी की कमर तोड़ दी।

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    स्टिंगर का निशाना बनने का था खतरा

    ग्रुप कैप्टन टोकेकर और एयर वाइस मार्शल पटनायक ने बताया कि किस तरह करगिल अभियान उस वक्त मुश्किल था। उस समय पाकिस्तान सैनिकों के पास जमीन से हवा में मार करने वाली अमेरिका निर्मित स्टिंगर थी। उन्होंने बताया कि कंधे पर रख कर चलाई जाने वाली स्टिंगर मिसाइलों का निशाना बनने का खतरा हमेशा ही बना रहता था।

    युद्ध के दौरान पाकिस्तान ने भारतीय वायुसेना के दो विमानों, एक MiG-21 और एक Mi-17 हेलीकॉप्टर को मार गिराया था। इस हमले में पांच पायलट और वायुसैनिक शहीद हो गए थे। टोकेकर बताते हैं, 'मैं पक्के तौर पर नहीं कह सकता कि मेरे विमान पर क्या दागा गया, क्योंकि जमीन से दिख रही हर चीज को वे निशाना बना रहे थे। जैसे ही वे जेट की आवाज सुनते ही वे गोलियों की झड़ी लगा देते। अब जमीन से उठते धुंए के धुंध को देख सकते थे। आप कभी यह नहीं जा पाते कि उनमें से कौन सी आपके लिए थी।'

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    एयर मार्शल पटनायक ने बताया कि 'हमें इस बात का भी ध्यान रखना होता था कि कोई भारतीय सैनिक हमारी ही गोलियों का शिकार ना बन जाए। क्योंकि हमारे सैनिक पाकिस्तान के उन ठिकानों के बेहद करीब थी, जिन्हें वायुसेना निशाना बना रही थी, और ऐसे में इसकी आशंका बेहद ज्यादा थी।'

    करगिल युद्ध के बाद वायुसेना की ताकत काफी बढ़ी है। अब लेजर गाइडेड बम और बिल्कुल सटीक हमला करने वाले हथियार स्क्वाड्रन के शस्त्रागार का हिस्सा है। करगिल युद्ध में बेहद अहम भूमिका निभाने वाली मिराज-2000 विमान भी अब नए सेंसर्स, नए कॉकपिट और नए हथियारों से लैस है, जो कि इसे पहले से ज्यादा मारक बनाते हैं।

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