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    लश्कर आतंकी मसूद अजहर पर चीन को घेरने की अब होगी नई कोशिश

    By Rajesh KumarEdited By:
    Updated: Fri, 06 Jan 2017 09:58 PM (IST)

    चीन की दीवार तोड़ने के लिए भारत ब्रिटेन, अमेरिका के साथ रूस को भी अपने इस प्रस्ताव के साथ मजबूती से खड़े होने के लिए तैयार करेगा।

    जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। पाकिस्तान में रह कर भारत को आतंकी वारदातों से लहूलुहान करने की साजिश रच रहे आतंकी मौलाना मसूद अजहर पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध लगाने का मंसूबा भारत ने अभी छोड़ा नहीं है। चीन की वजह से अभी तक अपने इस मंसूबे में कामयाब नहीं होने के बावजूद भारत इसके लिए नए सिरे से कूटनीतिक दांव पेंच शुरु करेगा। इस बार चीन की दीवार तोड़ने के लिए भारत ब्रिटेन, अमेरिका के साथ रूस को भी अपने इस प्रस्ताव के साथ मजबूती से खड़े होने के लिए तैयार करेगा।

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    विदेश मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक 'मसूद अजहर पर हर विकल्प को खुला रखा गया है। दूसरे देशों के साथ विचार विमर्श भी हो रहा है ताकि संयुक्त तौर पर प्रस्ताव लाया जा सके।' हालांकि यह प्रस्ताव कब भारत की तरफ से संयुक्त राष्ट्र में पेश किया जाएगा, इसको लेकर सूत्र कुछ नहीं बता रहे। माना जा रहा है कि भारत इस बारे में कोई भी कमी नहीं रहने देना चाहता है। चीन को मसूद अजहर पर रवैया बदलने के लिए भारत उसके साथ द्विपक्षीय स्तर पर वार्ता भी जारी रखेगा और साथ ही अन्य सहयोगी देशों के साथ भी उसे मनाने की कोशिश होगी।

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    मसूद अजहर पर भारत की तरफ से संयुक्त राष्ट्र का प्रतिबंध लगाने की कोशिशों को दो बार चीन धत्ता बता चुका है। सबसे पहले वर्ष 2009 में चीन और ब्रिटेन ने तकनीकी वजहों से भारतीय प्रस्ताव को गिरा दिया था। पिछले वर्ष भारत ने जो प्रस्ताव लाया उसके पक्ष में सुरक्षा परिषद के 15 देशों में से 14 देशों ने समर्थन किया लेकिन चीन ने फिर तकनीकी वजहों का पेंच फंसा दिया।

    इस पर भारत लगातार कड़ी प्रतिक्रिया जता रहा है। दो दिन पहले विदेश राज्य मंत्री एम जे अकबर ने चीन की तरफ से स्पष्ट संकेत करते हुए कहा था कि किसी भी देश को आतंकवाद को समर्थन देने की गलती नहीं करनी चाहिए। इसके जवाब में चीन के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि वह पेशेवर तरीके से इस मुद्दे पर कदम बढ़ा रहा है। चीन पहले भी कहता रहा है कि मसूद अजहर को लेकर जो मुद्दा है उसे भारत व पाकिस्तान को मिल जुल कर सुलझा लेना चाहिए। उधर, पाकिस्तान ने मसूद अजहर पर भारत को संयुक्त राष्ट्र में मिली असफलता को अपनी एक बड़ी कूटनीतिक जीत के तौर पर प्रचारित कर रहा है।

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