दक्षिण चीन सागर पर भारत-जापान आए साथ, चाबहार पर चर्चा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जापान के दौरे पर हैं। जहां उन्होंने कई मुद्दों पर चर्चा की। इसमें चीन के लिए अहम माने जाने वाले दक्षिण चीन सागर का मुद्दा भी शामिल है।
नर्इ दिल्ली (जेएनएन)। भारत और जापान को चीन की ओर से दी गयी चेतावनी के बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व जापानी प्रधानमंत्री शिंजो अबे की बैठक में दक्षिण चीन सागर मुद्दा को चर्चा में शामिल किया गया। चर्चा में इससे जुड़े विवाद को हल करने के लिए इसे संयुक्त राष्ट्र सम्मलेन में उठाने पर जोर दिया।
चाबहार बंदरगाह पर भारत के साथ जापान
साथ ही प्रधानमंत्री मोदी ने इस मुद्दे को अपने साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस में भी शामिल किया। इसके अलावा उन्होंने चीन के विरोध के बावजूद जापानी प्रधानमंत्री के साथ इरान में चाबहार बंदरगाह पर एक साथ काम करने की संभावना पर भी चर्चा की जिससे बंदरगाह के जरिए भारत का पाकिस्तान से हटकर अफगानिस्तान और केंद्रीय एशिया तक आना-जाना सुविधाजनक हो जाएगा। यह बंदरगाह पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में बनाए गए चीन के ग्वादर बंदरगाह के समकक्ष होगा।
शांतिपूर्ण ढंग से निकालें हल
लगातार दूसरे साल भारत और जापान ने दक्षिण चीन सागर के मुद्दे पर चर्चा की और इसे अपने संयुक्त बयान में शामिल किया। इसी साल जुलाई में दक्षिण चीन सागर पर चीन के 'ऐतिहासिक' अधिकार को अंतराष्ट्रीय ट्रिब्यूनल ने प्रत्यक्ष तौर पर खारिज कर दिया था। भारत और जापान के संयुक्त बयान में दक्षिण चीन सागर के मुद्दे पर बयान जारी किया गया। जिसमें दोनों प्रधानमंत्रियों ने इसको लेकर हो रहे विवाद का शांतिपूर्ण ढंग से हल निकालने पर जोर दिया। इसमें अंतरराष्ट्रीय कानून के नियमों के आधार पर इसे निपटाया जाना चाहिए।
चीन की चेतावनी
आपको बता दें कि चीन के ग्लोबल टाइम्स ने दक्षिण चीन सागर के मुद्दे पर धमकी भरे लहजे में भारत को चेताते हुए व्यापार और कारोबार में नुकसान की बात कही थी। फिलहाल भारत और जापान ने अधिकारियों को चाबहार पोर्ट के लिए आपसी सहयोग के साथ काम करने का निर्देश दिया है। इस साल 15 मई को और फिर 8 सितंबर को खबर मिली थी कि चाबहार बंदरगाह प्रोजेक्ट पर भारत के साथ काम करने के लिए जापान इच्छुक है।
भारत-जापान दिसंबर 2015 के संयुक्त बयान के अनुसार, दोनों देशों ने संबंध को विकसित करने और विश्वसनीय, टिकाऊ इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने का निर्णय लिया था जिससे भारत के भीतर और भारत और इस क्षेत्र के अन्य देशों के बीच संपर्क बढ़ सके।
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