जाधव पर 18 साल बाद अंतर्राष्ट्रीय अदालत में आमने-सामने भारत-पाक
साल 1999 में पाकिस्तान ने अपने नौसेना के विमान मार गिराए जाने को लेकर भारत के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय अदालत से इंसाफ की गुहार लगाई थी।
नई दिल्ली, [स्पेशल डेस्क]। पाकिस्तान करीब अठारह साल पहले भारत के खिलाफ इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (आईसीजे) में गया था। उस वक्त पाकिस्तान ने अपने नौसेना के विमान मार गिराए जाने को लेकर भारत के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय अदालत में इंसाफ की गुहार लगाई थी।
सोमवार से आईसीजे जो कि संयुक्त राष्ट्र का प्रमुख न्यायिक अंग है वह कुलभूषण जाधव मामले की नीदरलैंड के हेग स्थित ग्रेट हॉल ऑफ जस्टिस में सार्वजनिक रूप से सुनवाई सोमवार से शुरू हो चुकी है। यहां पर दोनों पक्ष जाधव मामले पर उत्पन्न विवाद को लेकर अपने-अपने तथ्य पेश कर रहे हैं।
46 वर्षीय पूर्व नेवी ऑफिसर कुलभूषण जाधव मामले पर भारत ने 8 मई को संयुक्त राष्ट्र की न्यायिक ईकाई में याचिका दायर कर हस्तक्षेप की मांग की है। याचिका में भारत ने पाकिस्तान की तरफ से 16 बार कांसुलर एक्सेस को खारिज करने विएना संधि का उल्लंघन करार दिया है।
पिछले महीने पाकिस्तान की सैन्य अदालत ने जासूसी और विध्वंसकारी गतिविधियों के आरोप में कुलभूषण को फांसी की सज़ा सुनाई है। जाधव परिवार की तरफ से वीज़ा के लिए दिए आवेदन का भी पाकिस्तान ने कोई जवाब नहीं दिया। जाधव को पिछले साल 3 मार्च को गिरफ्तार किया गया था।
1999 में भारतीय वायुसेना ने मार गिराए पाक टोही विमान
इससे पहले 10 अगस्त 1999 को जब भारतीय वायुसेना ने कच्छ में एक पाकिस्तानी समुद्री टोही विमान अटलांटिक को सीमा में घुसकर निरीक्षण करते समय मार गिराया था। इस विमान शूटिंग में पाकिस्तान के 16 नौसैनिक मारे गए थे। जिसके बाद पाकिस्तान ने दावा करते हुए कहा कि उनके विमान को उनकी ही सीमा के अंदर मार गिराया गया और भारत से इसके लिए हर्जाने के तौर पर 60 मिलीयन डॉलर की भरपाई करने को कहा।
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आईसीजे से पाक को मिला था झटका
अंतर्राष्ट्रीय अदालत की सोलह सदस्यीय न्यायिक पीठ ने साल 2000 की 21 मई को 14-2 मतों से पाकिस्तान के दावे को खारिज कर दिया। यह फैसला न्यायिक पीठ की अध्यक्षता कर रहे फ्रांस के गिलबर्ट गुईल्लेम ने भरे सभा में सुनाया। यह फैसला कोर्ट का अंतिम आदेश था जिसके खिलाफ फिर से अपील करने का कोई भी प्रावधान नहीं था। पाकिस्तान की तरफ से 21 सितंबर 1999 को दाखिल किए गए केस में आईसीजे ने यह पाया कि वह मामले उनके न्यायिक सुनवाई के अधिकार में नहीं आता है।
'Aerial incident of August 10, 1999 (Pakistan vs India)' नाम से शुरु हुई केस की सुनवाई मात्र चार दिन बाद ही 6 अप्रैल 2000 को खत्म हो गई। कोर्ट में पूरी जिरह इस केस की मैरिट पर केन्द्रित रही की जिस पर 16 सदस्यी न्यायाधीशों की पीठ को फैसला लेना था। अटलांटिक केस को अंतर्राष्ट्रीय अदालत ने न्यायिक अधिकार के मुद्दे पर खारिज किया ना कि केस की योग्यता को लेकर। दोनों पक्षों ने इस बात पर सहमति जताई थी कि न्यायिक अधिकार पर सबसे पहले फैसला किया जाएगा उसके बाद ही उस केस की मैरिट का मुद्दा उठाया जाएगा।
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ICJ से पाक ने की थी जल्द सुनावाई की मांग
पाकिस्तान की तरफ से आईसीजे में याचिका दायर करने और नई दिल्ली की तरफ तत्कालीन अटॉर्नी जनरल सोली सोराबजी की तरफ से उठाई गई आपत्ति के बाद गुईल्लेम ने कहा था कि सबसे पहले अदालत यह फैसला करेगी यह केस उनके न्यायिक अधिकार में आता है या नहीं।
पहले दौर में पाकिस्तान ने सबसे पहले मौखिक रूप से जिरह की शुरूआत की और भारत ने उसका जवाब दिया। और उसके बाद फिर दूसरे दौर में पाकिस्तान ने फिर से अपना पक्षा रखा जिसका भारत ने भी उत्तर दिया। सोराबजी ने कोर्ट से कहा कि पाकिस्तान पूरी तरह से खुद इसके लिए 'जिम्मेवार' है और 'इस्लामाबाद को इस घटना का खामियाजा' भुगतना चाहिए।
पाकिस्तान के तत्कालीन अटॉर्नी जनरल अजीज मुंशी याचिका पर जल्द सुनवाई की मांग करते हुए कहा था कि उनके आवेदन पर जल्द निष्कर्ष निकाला जाना चाहिए ताकि भारत और पाकिस्तान के संबंधों के बीच खटास पैदा करनेवाली चीज नहीं रहनी चाहिए। पाकिस्तान ने इस केस के बहाने कश्मीर मुद्दा, करगिल विवाद, भारत-पाक संबंध और इस शूटिंग के पीछे की मंशा पर का हवाला देकर खूब राजनीति करने की कोशिशें की थी।
पाकिस्तान यह चाहता था कि पूरे मामले पर आईसीजे हस्तक्षेप करे लेकिन भारत ने इस्लामाबाद की तरफ से लगाए गए आवेदन पर न्यायिक अधिकार का मामला उठा उसका विरोध किया था। पाकिस्तान ने अंतर्राष्ट्रीय कोर्ट से अपील करते हुए कहा था कि “वह भारत की तरफ से उठाई गई आपत्तियों को खारिज करे और इस पर न्यायाधिकार को स्वीकार करे।”
भारत ने कहा कि पाकिस्तान की कोई भी दलील पर्याप्त नहीं है और वह केस को लेकर कोर्ट के न्यायाधिकार के आधार को साबित नहीं करता है। सोराबजी ने कोर्ट के फैसले पर खुशी जताते हुए कहा- हम काफी खुश है। कोर्ट ने हमारे सभी तर्कों को माना।
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