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    अगर आप वोट नहीं डालते तो सरकार पर तोहमत क्यों मढ़ रहे

    By Gunateet OjhaEdited By:
    Updated: Sun, 05 Feb 2017 10:03 PM (IST)

    अतिक्रमण हटाने की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने वादी को लिया आड़े हाथ.. ...और पढ़ें

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    अगर आप वोट नहीं डालते तो सरकार पर तोहमत क्यों मढ़ रहे

    नई दिल्ली, प्रेट्र। अगर आप वोट नहीं देते तो आपको किसी काम के लिए सरकार पर तोहमत मढ़ने का अधिकार भी नहीं है। यह बात सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जेएस केहर ने एक मामले की सुनवाई के दौरान वादी से कही है। वादी ने देश भर के अतिक्रमणों को हटाए जाने के लिए आदेश देने की मांग की थी। यह भी बताया कि सरकारी व्यवस्था से क्षुब्ध होकर वह चुनाव में वोट नहीं डालता है।

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    मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली इस पीठ में जस्टिस एनवी रामन्ना और जस्टिस डीवाइ चंद्रचूड़ भी हैं। याचिका की सुनवाई करते हुए पीठ ने देश भर के अतिक्रमणों को हटाए जाने का कोई आदेश देने से साफ इन्कार कर दिया। कहा कि दिल्ली में बैठकर यह कैसे जाना जा सकता है कि किस शहर में कहां पर अतिक्रमण है।

    इसलिए याचिकाकर्ता सड़कों के किनारों और अन्य सार्वजनिक स्थलों पर अतिक्रमणों को देखकर उन्हें हटाए जाने की मांग वाली याचिका संबंधित हाई कोर्ट में दायर करे तथा उनसे आदेश पारित करने की मांग करे। सामाजिक कार्यकर्ता धनेश ईशधन ने दिल्ली की गैर सरकारी संस्था वॉयस ऑफ इंडिया की तरफ से याचिका दायर की थी। याचिका में कहा गया था कि सरकार अतिक्रमण हटाने के लिए कुछ नहीं करती। इसलिए सुप्रीम कोर्ट पूरे देश में लागू होने वाला आदेश जारी करके केंद्र व राज्य सरकारों से अतिक्रमण हटाने के लिए कहे।

    सुनवाई के दौरान पीठ ने धनेश से पूछा कि चुनाव में वह मतदान करता है या नहीं। जवाब में याचिकाकर्ता ने कहा, उसने अपने जीवन में कभी वोट नहीं डाला। इस पीठ ने उसे आड़े हाथ लेते हुए कहा कि जब तुमने सरकार को चुनने के लिए वोट ही नहीं डाला तो तुम्हें सरकार से सवाल पूछने या उस पर काम न करने की तोहमत मढ़ने का क्या अधिकार?

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा, हमारे पास ऐसा अधिकार नहीं है कि हम पूरे देश में अतिक्रमण हटाने का एकतरफा आदेश दे दें। अगर आप अपनी मांग को लेकर हाई कोर्ट नहीं जाते तो मान लिया जाएगा कि सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने का मकसद केवल प्रचार पाना था, इससे ज्यादा कुछ नहीं। इस तरह की याचिका और इस पर दिए आदेश से कोई मकसद पूरा नहीं हो सकता। इससे पहले 26 अगस्त को मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वह राम राज्य की मान्यताओं को स्थापित करने का आदेश देने में सक्षम नहीं है। वह अपनी भूमिका को सीमाओं के भीतर मानती है।

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