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    सुरक्षा और जनहित में पनबिजली परियोजनाओं की होनी चाहिए पुनर्समीक्षा

    By Manish NegiEdited By:
    Updated: Wed, 22 Jun 2016 01:56 AM (IST)

    उत्तराखंड में अलकनंदा और भागीरथी पर पनबिजली परियोजना पर सरकार का सख्त रवैया बरकरार है। ...और पढ़ें

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    नई दिल्ली, (माला दीक्षित)। उत्तराखंड में अलकनंदा और भागीरथी पर तीन साल से रुकी पड़ी पनबिजली परियोजनाओं की राह और मुश्किल होती नजर आ रही है। जल संसाधन और गंगा संरक्षण मंत्रालय नदी पर किसी भी तरह की नई पनबिजली परियोजना के पक्ष मे नहीं दिखाई देता। नदी में अविरल प्रवाह की वकालत करते हुए मंत्रालय ने इन परियोजनाओं को पर्यावरण, जैवविविधता और नदी की सेहत के लिए खतरनाक बताया है।

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    मंत्रालय ने लोगों की सुरक्षा और जनहित की दुहाई देते हुए इन परियोजनाओं की पुनर्समीक्षा किये जाने की जरूरत बताई है। मंत्रालय ने ये बात सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपने ताजा हलफनामे में कही है। उत्तराखंड में जून 2013 को आए जल प्रलय के बाद कोर्ट ने उत्तराखंड में अलकनंदा और भागीरथी नदी पर प्रस्तावित और निर्माणाधीन 24 पनबिजली परियोजनाओं पर रोक लगा दी थी। अब कंपनियों ने रोक हटाने की मांग की है। इन परियोजनाओं में छह परियोजनाएं सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की हैं। हालांकि पर्यावरण मंत्रालय ने कुछ शर्तो के साथ सार्वजनिक उपक्रमों की तीन परियोजनाओं को सशर्त मंजूरी की हामी भरी थी।

    दाखिल हलफनामे में जल संसाधन मंत्रालय ने गंगा को संरक्षित करने और उसे प्रदूषण मुक्त बनाने की सरकार की प्रतिबद्धता जताते हुए गंगा नदी के धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व का भी बखान किया है। गंगा जल की खूबियां गिनाते हुए कहा गया है कि दुनिया भर के लोगों का विश्वास है कि गंगा जल में कुछ ऐसे खास तत्व हैं जो किसी और नदी में नहीं है। इसके जल में बीमारियों से लड़ने की क्षमता है। मुगल भी गंगा जल की इस खासियत को मानते थे। यही नहीं सम्राट अकबर या तो शुद्ध गंगा जल पीते थे या फिर अपने पानी में गंगा जल मिलाकर पीते थे। गंगा नदी भारत की पहचान है। ये करीब 50 करोड़ लोगों के विश्वास और रोजीरोटी कमाने का साधन है। हलफनामें में विभिन्न रिपोर्टो का हवाला देते हुए पनबिजली परियोजनाओं को नदी की सेहत के लिए नुकसानदेह और पर्यावरण के लिए खतरनाक बताया गया है। यहां तक कि 2012 और 2013 की उत्तराखंड बाढ़ को भी इसी से जोड़ा गया है।

    नदी के जीवन के लिए उसमें अबाधित अविरल प्रवाह बनाए रखने की जरूरत पर बल देते हुए कहा गया है कि ये प्रवाह सिर्फ देवप्रयाग के नीचे के हिस्से में ही नहीं बल्कि देव प्रयाग से ऊपर के हिमालय के हिस्से में भी रहना चाहिए ताकि पानी अपने पूरे वेग से नीचे नदी में आये और साल भर नदी में अविरल प्रवाह बना रहे। गंगा मंत्रालय का कहना है कि लंबित पनबिजली परियोजनाओं को मंजूरी उत्तराखंड त्रासदी से पहले दी गई थी। अब बदले हालात में परियोजनाओं के प्रभाव का फिर से समग्र आंकलन किये जाने की जरूरत है। इन परियोजनाओं से मिलने वाली बिजली की तुलना परियोजनाओं से होने वाले नुकसान के साथ आंके जाने की जरूरत है। गंगा में अविरल प्रवाह बनाए रखने के लिए जरूरी है कि तीनों नदियों अलकनंदा, भागीरथी और मंदाकिनी तथा गंगा में देव प्रयाग से लेकर गंगा सागर तक अविरल प्रवाह कायम रहे। गंगा को बाधित या उसमें रुकावट न पैदा की जाए उसे वर्तमान स्थिति में बना रहने दिया जाए।

    अपने ही घर में अकेले पड़ी अलकनंदा