कितना असरदार होगा इमाम का पैगाम
सूबे की ऐतिहासिक जामा मस्जिद के शाही इमाम अहमद बुखारी इन दिनों सुर्खियों में हैं। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से उनकी मुलाकात और उसके बाद कांग्रेस के पक्ष में मतदान करने संबंधी उनके पैगाम को लेकर सियासी महाभारत छिड़ी हुई है। शहर के राजनीतिक गलियारों में चर्चा छिड़ी है कि दिल्ली की सात सीटों के लिए ह
[अजय पांडेय], नई दिल्ली। सूबे की ऐतिहासिक जामा मस्जिद के शाही इमाम अहमद बुखारी इन दिनों सुर्खियों में हैं। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से उनकी मुलाकात और उसके बाद कांग्रेस के पक्ष में मतदान करने संबंधी उनके पैगाम को लेकर सियासी महाभारत छिड़ी हुई है। शहर के राजनीतिक गलियारों में चर्चा छिड़ी है कि दिल्ली की सात सीटों के लिए हो रहे चुनाव पर उनके पैगाम का कितना कितना असर होगा।
सूबे के सियासी पंडितों की मानें तो यह कोई पहला मौका नहीं जब उन्होंने ऐसा पैगाम अपने समर्थकों को दिया है। लेकिन इस चुनाव में इसकी खास अहमियत जरूर है। वजह यह है कि दिल्ली के मुस्लिम मतदाताओं के समक्ष अब तक मुख्य रूप से भाजपा और कांग्रेस का विकल्प था। इन दोनों दलों में वे अपनी पसंद की पार्टी को मतदान करते आए हैं। लेकिन इस बार मैदान में आम आदमी पार्टी भी है।
आपको बता दें कि दिल्ली के करीब सवा करोड़ मतदाताओं में करीब 13 फीसद मतदाता मुस्लिम समुदाय से आते हैं। इसमें दो राय नहीं कि उनके एकतरफा मतदान से किसी दल का ग्राफ ऊपर-नीचे हो सकता है। शहर की कम से कम तीन लोकसभा सीटों पर-उत्तर पूर्वी दिल्ली, पूर्वी दिल्ली तथा चांदनी चौक-में मुस्लिम मतददाताओं की बड़ी संख्या है। जबकि उत्तर-पश्चिम दिल्ली की सीट पर भी उनकी अच्छी मौजूदगी है। दरअसल, यह मुस्लिम मतदाता थे जिनके दम पर विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की थोड़ी-बहुत लाज बच गई और पार्टी आठ सीटें जीत सकी। इनमें भी चार विधायक मुस्लिम हैं। शायद यही वजह है कि पार्टी ने हारून यूसुफ को विधायक दल का नेता बनाकर इस हकीकत को स्वीकार किया। इसीलिए चर्चा यह भी है कि यदि शाही इमाम का पैगाम नहीं भी आया होता, तो मतों के ध्रुवीकरण पर शायद बहुत असर नहीं पड़ता। इस चुनाव में तय केवल इतना होना है कि मुस्लिम मतदाता आप के पक्ष में मतदान करते हैं अथवा नहीं।
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