OBOR पर चीन को भारत का स्पष्ट संदेश, नहीं बनेंगे पिछलग्गू
हाल के वर्षों में जिस तरह से भारत ने चीन और पाकिस्तान को लेकर अपनी नीति बनाई है, उससे साफ है कि अब वो किसी का पिछलग्गू बन कर नहीं रहेगा।
नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क] । 15 अगस्त 1947 को आजादी मिलने के साथ ही पडो़सी मुल्क पाकिस्तान ने भारत को अस्थिर करने की साजिश शुरू कर दी। पाकिस्तान की इस कोशिश में चीन लगातार साथ देता है ये सर्वविदित सच भी है। पंचशील सिद्धांत के जरिए जिस चीन ने भारत के साथ पारस्परिक संबंधों को मजबूत करने पर जोर दिया उसे चीन ने 1962 की लड़ाई में तार तार कर दिया। चीन ने 1965 और 1971 की लड़ाई में पाकिस्तान का साथ दिया। ऐसे में सवाल उठता रहा है कि क्या भारत एक कमजोर इच्छाशक्ति वाला देश है। लेकिन समय के साथ अब बहुत कुछ बदलता हुआ नजर आ रहा है। भारत पहले चीन को स्पष्ट संदेश नहीं देता अब उसने साफ कर दिया कि चीन की एकाधिकारवादी नीति बर्दाश्त नहीं करेंगे।
चीन को स्पष्ट संदेश
पारंपरिक तौर पर चीन के मुद्दे पर भारत कड़ी प्रतिक्रिया नहीं व्यक्त करता था। लेकिन पिछले तीन वर्षों में सीपीइसी और वन बेल्ट, वन रोड के मुद्दे पर भारत ने खुलकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी बात रखी। इसके अलावा सर्जिकल स्ट्राइक के जरिए पूरी दुनिया को दिखा दिया कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में वो अपने स्तर पर आतंकियों के खिलाफ अभियान छेड़ने में समर्थ है। वन बेल्ट, वन रोड के मुद्दे पर भारत ने साफ कर दिया कि चीन की किसी भी योजना में वो सहभागी नहीं हो सकता जो भारत की संप्रभुता के खिलाफ हो।
ओबीओआर की संकल्पना में दोष
भारत का मानना है कि ओबीओआर की संकल्पना में ही दोष है। ये न केवल विस्फोटक परिस्थितियों को जन्म देगा बल्कि पारदर्शिता में कमी की वजह से इसकी उपयोगिता भी सवालों के घेरे में है। जिस तरह से वन बेल्ट, वन रोड के जरिए चीन अलग अलग देशों में निवेश की योजना बना रहा है उससे न केवल वो देश कर्जे के बोझ में दब जाएंगे। बल्कि एक औपनिवेशिक युग की शुरूआत होगी जिसका नेता चीन बन जाएगा। इस तरह की तस्वीर 21 सदी में जहां दुनिया के मुल्क लोकतांत्रिक परंपराओं को मजबूत बनाने के लिए उसे स्वीकार नहीं किया जा सकता है। इसके अलावा चीन के महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट से पर्यावरण को भी बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचेगा।
जानकार की राय
Jagran.com से खास बातचीत में रक्षा मामलों के जानकार अनिल कौल ने बताया कि ओबीओआर पर मोदी सरकार ने जिस तरह से प्रतक्रिया दी वो काबिलेतारीफ है। चीन अपनी विस्तारवादी नीति के जरिए छोटे छोटे मुल्कों को नियोजित तरीके से निशाना बना रहा है। ओबीओआर को लेकर भारत की चिंता जायज है। चीन के प्रभाव को कम करने के लिए भारत को अपने पडो़सी मुल्कों के साथ सहयोग को और बढ़ाना चाहिए।
'ओबोर है अव्यवहारिक'
भारत में कुछ लोग ओबीओआर को देश के लिए व्यवहारिक और कम दर्द भरा बताते रहे हैं। लेकिन मोदी सरकार की प्रतिक्रिया बिल्कुल स्पष्ट रही है कि वो पाक अधिकृत कश्मीर में चीन और पाकिस्तान की गतिविधियों को किसी भी रूप में स्वीकार नहीं कर सकता है। भारत की सोच के पीछे श्रीलंका का वो उदाहरण है जिसमें उसे चीनी निवेश का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। श्रीलंका के ऊपर चीनी कर्ज का दबाव इस कदर बढ़ गया है कि अब चीन श्रीलंका से हम्बनटोटा बंदरगाह को 90 साल के लीज पर देने की बात कह रहा है। इन सब हालात में भारत का मानना है कि चीन अपने कर्जदारों को उपनिवेश बनाना चाहता है।
जब यूरोपीय देशों ने कहा ना
चीन की वन बेल्ट, वन रोड समिट में यूरोप के कई देश शामिल हुए। लेकिन उन देशों ने व्यापार संबंधी विषयों पर साझा बयान जारी करने से इन्कार कर दिया। चीन के साथ भारतीय संबंधों का एक और पहलू ये है कि हाल के वर्षों में दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंधों में नरमी देखने को मिल रही है। लेकिन चीन की तरफ से विदेशी निवेश में बढ़ोतरी हुई है। एफडीआई के मुद्दे पर चीन एक बड़ा देश बनकर उभरा है। एफडीआई निवेश के मामले में 2011 में चीन 35 वें नंबर पर था जबकि 2014 में 28वें और 2016 में 17वें नंबर पर रहा।
एनएसजी और मसूद राह के रोड़ा
एनएसजी और जैश के आतंकी सरगना मसूद अजहर पर प्रतिबंध के सिलसिले में चीनी रुख पर भारत शुरू से ही ऐतराज जताता रहा है। इस साल के शुरुआत में विदेश सचिव एस जयशंकर ने साफ लफ्जों में कहा कि भारत से बेहतर संबंध बनाने की दिशा में चीन को ज्यादा सोचने की जरूरत है। यही नहीं संबंधों को पटरी पर लाने के लिए भारत आगे बढ़कर काम करेगा लेकिन चीन की सोच साफ होनी चाहिए।
पडो़सी देशों के जरिए चीन होगा अलग-थलग
2014 में जब चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग जब भारत दौरे पर आए तो पीएम मोदी ने एक संदेश दिया कि अब समय आ गया है कि जब दुनिया के दोनों देश बिना किसी पूर्वाग्रह के आगे बढ़ सकते हैं। लेकिन चीन की कुछ नीतियों के बाद दोनों देशों के संबंधों में एक नरमी सी आ गई। भारत अपने पड़ोसी मुल्कों के साथ हमेशा सहयोग की मुद्रा में रहा है। चाहे बांग्लादेश हो या श्रीलंका या पाकिस्तान। इन मुल्कों के विकास के लिए भारत की तरफ से पारदर्शी मदद की पहल की गई।
भारत ने बांग्लादेश के विकास के लिए 20 प्रोजेक्ट में मदद कर रहा है। इसके अलावा एलओसी पर मदद के जरिए 4.5 बिलियन डॉलर की मदद करेगा। ठीक वैसे ही पीएम मोदी की श्रीलंका की दूसरी यात्रा में देखने को मिल सकता है। सॉर्क के जरिए भारत पाकिस्तान के साथ बेहतर संबंधों को आगे बढ़ाने की चाहत रखता है लेकिन पाकिस्तान की सोच संबंधों को पटरी पर लाने से रोक रही है।
2016 में गोवा में ब्रिक्स समिट में बिम्सटेक की वापसी करना अपने आप में महत्वपूर्ण कामयाबी की तौर पर देखा गया। इस महीने की शुरुआत में दक्षिण एशिया सेटेलाइट के जरिए भारत ने पडोसी मुल्कों से सहयोग की दिशा में एक नई शुरुआत की। इसके अलावा मोदी सरकार जिस अंदाज में लुक वेस्ट पॉलिसी पर काम कर रही है उसे एक्ट ईस्ट के दर्पण के तौर पर देखा जा रहा है। जुलाई में पीएम की प्रस्तावित इजरायली दौरे के साथ यूएई, कतर, सऊदी अरब और इरान के साथ संबंधों को एक बड़ी कामयाबी के तौर पर देखा जा रहा है।
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