एबॉर्शन पर SC से HIV पीड़ित गर्भवती महिला को मिली बड़ी राहत, जानिए पूरा मामला
यौन उत्पीड़न के बाद से 35 वर्षीय महिला पटना के एक रिहैबिलिटेशन सेंटर में रह रही है। काफी समय बाद उसे गर्भवती होने के बारे में पता चला और उसने एबॉर्शन की इच्छा जताई।
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने यौन उत्पीड़न के बाद गर्भवती हुई एक एचआईवी-पॉजीटिव महिला को बड़ी राहत दी है। गर्भावस्था के 26वें हफ्ते में दिक्कतों के कारण वो एबॉर्शन कराना चाह रही है। कोर्ट ने इसमें मदद करते हुए महिला का एम्स में इलाज कराये जाने का आदेश दिया है। टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार, जस्टिस दीपक मिश्रा, एएम खानवीलकर और एम एम शांतानागौदर की पीठ ने इस मामले में सुनवाई की और केंद्र सरकार से पीड़त महिला की एम्स में जांच कराये जाने को लेकर सभी व्यवस्थाएं कराने का निर्देश दिया।
यह है पूरा मामला
यौन उत्पीड़न के बाद से 35 वर्षीय महिला पटना के एक रिहैबिलिटेशन सेंटर में रह रही है। काफी समय बाद उसे गर्भवती होने के बारे में पता चला और उसने एबॉर्शन की इच्छा जताई। ऐसे में पीडि़त महिला के समर्थन में पटना के एक एनजीओ के साथ टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज के कुछ रिसर्च स्कॉलर्स आगे आए और उसके लिए आवाज उठाई।
उन्होंने कई बीमारियों का हवाला देकर महिला को एबॉर्शन की इजाजत दिए जाने की मांग की, जबकि कानून के मुताबिक, गर्भावस्था के 20 हफ्ते के भीतर ही एबॉर्शन कराने की अनुमति है। सिर्फ कुछ विशेष परिस्थितियों में ही मां की जान को खतरे में देखते हुए कोर्ट इसकी इजाजत दे सकता है।
महिला एबॉर्शन करा सकती है या नहीं, पता लगाए एम्स
सबसे पहले पटना हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया, मगर यह कहते हुए एबॉर्शन की इजाजत नहीं दी कि पीडि़त महिला के मेडिकल रिपोर्ट में एबॉर्शन कराने पर जान का खतरा बताया गया है। हाई कोर्ट ने कहा था कि ये राज्य की ड्यूटी है कि वो बच्चे को जिंदा रखे। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट का रुख किया, जहां उसे और अधिक पीड़ा ना सहने व एम्स में जांच कराए जाने का आदेश दिया। वहीं कोर्ट ने एम्स को छह मई तक एक मेडिकल बोर्ड कर यह जांचने को कहा कि महिला एबॉर्शन करा सकती है या नहीं।
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