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कब तक अदालतों में हक की लड़ाई लड़ेगी हिंदी

प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को चुनाव में हराने वाले राजनारायण सुप्रीम कोर्ट में आकर अंग्रेजी से हार गए थे। अदालत ने राजनारायण की याचिका इसलिए खारिज कर दी थी, क्योंकि वे हिंदी में बहस करना चाहते थे और सुप्रीम कोर्ट की भाषा अंग्रेजी है। शायद यह पहला मौका था जब अदालत

By Rajesh NiranjanEdited By: Published: Mon, 14 Sep 2015 12:34 AM (IST)Updated: Mon, 14 Sep 2015 06:30 AM (IST)
कब तक अदालतों में हक की लड़ाई लड़ेगी हिंदी

नई दिल्ली, [माला दीक्षित]। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को चुनाव में हराने वाले राजनारायण सुप्रीम कोर्ट में आकर अंग्रेजी से हार गए थे। अदालत ने राजनारायण की याचिका इसलिए खारिज कर दी थी, क्योंकि वे हिंदी में बहस करना चाहते थे और सुप्रीम कोर्ट की भाषा अंग्रेजी है। शायद यह पहला मौका था जब अदालत में हिंदी को आधिकारिक तौर पर शिकस्त मिली थी। राजभाषा होने के बावजूद इसे आज तक अदालतों में पैठ नहीं मिली है। हिंदी को अदालतों की भाषा बनाने का मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। दूसरी ओर हिंदी में मांगी गई आरटीआइ की जानकारी सुप्रीम कोर्ट इसी भाषा में दे, यह मामला सीआइसी के समक्ष विचाराधीन है। सुप्रीम कोर्ट ने हिंदी में सूचना देने से इन्कार कर दिया था।

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यह हिंदी का दुर्भाग्य है कि उसे राजभाषा का दर्जा देने वाला देश 'हिंदी दिवस' और 'हिंदी पखवाड़ा' मना कर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लेता है। हिंदी पखवाड़े के दौरान इसके प्रचार-प्रसार की कसमें खाने वाले लोग अन्य दिनों की लड़ाई में इसके साथ खड़े नहीं दिखते।

वकील शिव सागर तिवारी ने सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों की कार्यवाही हिंदी में किए जाने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर रखी है। उनकी याचिका के जवाब में हिंदी भाषा विभाग की ओर से दिए गए हलफनामे में कहा गया है कि यह भाषा किसी पर थोपी नहीं जा सकती। तिवारी के अनुसार, हिंदी के लिए अब तक किए गए कामों का ब्योरा भी उसमें दिया गया है, लेकिन हिंदी भाषा विभाग ऐसा कैसे कह सकता है? वे कहते हैं कि उन्होंने इस बारे में गृह मंत्री राजनाथ सिंह को पत्र लिखा है, लेकिन अभी तक जवाब नहीं आया है। कानून मंत्रालय ने तो आज तक जवाब ही नहीं दिया है। एक साल से ज्यादा हो गया है। 27 अक्टूबर को मामले की अंतिम बहस होनी है। तिवारी की याचिका में संविधान के अनुच्छेद 348 में संशोधन मांगा गया है, जो कि सुप्रीम कोर्ट और सभी उच्च न्यायालयों की कार्यवाही अंग्रेजी भाषा में होने की बात करता है। संविधान के मुताबिक 15 साल बाद राष्ट्रपति के अनुमोदन से सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट की आधिकारिक भाषा हिंदी की जानी थी, लेकिन आज तक ऐसा नहीं हुआ।

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दूसरा मामला 17 सितंबर को मुख्य सूचना आयोग में सुनवाई के लिए लगा है। इसमें सुप्रीम कोर्ट ने आरटीआइ कानून के तहत हिंदी में मांगी गई सूचना का जवाब अंग्रेजी में दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने हिंदी में जवाब देने से यह कहते हुए मना कर दिया कि उसकी आधिकारिक भाषा अंग्रेजी है। सूचना मांगने वाले पंडित विकास शर्मा इस पर सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ सूचना आयोग पहुंचे हैं। उनका कहना है कि सूचना का अधिकार कानून कहता है कि सूचना जिस भाषा में मांगी गई, हो जवाब उसी भाषा में दिया जाना चाहिए। यह बात सुप्रीम कोर्ट पर भी लागू होती है।

हिंदी जितनी उपेक्षित आजादी के समय थी, उतनी ही आज है। आजादी के तुरंत बाद जब हिंदी में कार की नंबर प्लेट होने के कारण सांसद सेठ गोविंददास के खिलाफ दिल्ली पुलिस ने कार्रवाई की, तो उन्होंने संविधान सभा में यह मामला उठाया। उन्होंने आजादी के बाद भी राष्ट्रीय भाषा के इस्तेमाल पर कार्रवाई को शर्मनाक और आश्चर्यजनक बताया था। इसके बाद संविधान में न सिर्फ हिंदी को सरकार की आधिकारिक भाषा का दर्जा दिया गया, बल्कि सरकार पर इसके प्रचार-प्रसार की जिम्मेदारी भी डाली गई। इसके लिए हर साल पहली से 15 सितंबर तक हिंदी पखवाड़ा मनाया जाता है। इस बीच हिंदी काफी आगे बढ़ी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट टस से मस नहीं हुआ। हिंदी के प्रति उसका जो रुख पहले था, वही आज है।

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