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    हिंदी के संयुक्त राष्ट्र की भाषा बनने पर खर्च होंगे 82 करोड़

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    Updated: Thu, 29 May 2014 08:22 PM (IST)

    भारत ने हिंदी को संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा बनाने के लिए प्रस्ताव नहीं किया है क्योंकि ऐसा होने पर सरकार पर

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    नई दिल्ली। भारत ने हिंदी को संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा बनाने के लिए प्रस्ताव नहीं किया है क्योंकि ऐसा होने पर सरकार पर 82 करोड़ रुपये से अधिक का वार्षिक खर्च आएगा।

    लखनऊ की 12 वर्षीय लड़की ऐश्वर्या पाराशर द्वारा सूचना के अधिकार [आरटीआइ] के तहत मांगी गई जानकारी पर विदेश मंत्रालय ने यह जवाब दिया है। ऐश्वर्या ने जानना चाहा था कि हिंदी को संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा बनाने के लिए प्रस्ताव क्यों नहीं दिया गया है। अपने जवाब में विदेश मंत्रालय के केंद्रीय जनसूचना अधिकारी एस गोपालकृष्णन ने कहा, 'संयुक्त राष्ट्र में हिंदी को एक आधिकारिक भाषा के रूप में शामिल किए जाने के कई वित्तीय और प्रक्रिया संबंधी निहितार्थ हैं। इस बारे में औपचारिक प्रस्ताव रखे जाने से पहले इन निहितार्थों को पूरा करने की जरूरत है।' उन्होंने कहा कि प्रस्ताव करने वाले देश यानि भारत को संयुक्त राष्ट्र को पर्याप्त वित्तीय संसाधन प्रदान करने होंगे ताकि व्याख्या, अनुवाद, प्रिंटिंग और दस्तावेजों के प्रतिलिपिकरण पर होने वाले अतिरिक्त खर्च तथा इससे संबंधित बुनियादी खर्च का प्रबंध किया जा सके।

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    एक अनुमान के मुताबिक इस पर प्रति वर्ष करीब 82.6 करोड़ रुपये का खर्च आएगा। यह अनुमान अरबी को 1973 में संयुक्त राष्ट्र महासभा की आधिकारिक भाषा बनाने के निर्णय पर आधारित है। गोपालकृष्णन के मुताबिक वास्तविक खर्च इससे भी अधिक हो सकता है क्योंकि अतिरिक्त इंटरप्रेटर बूथ के लिए सभी कांफ्रेंस हॉल की आधारभूत संरचना में बदलाव करने की जरूरत होगी।

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