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    वेस्ट यूपी में हाईकोर्ट बेंच मुद्दे पर चुनाव में चुप्पी

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    Updated: Wed, 26 Feb 2014 01:54 PM (IST)

    मेरठ (संजीव जैन)। पश्चिम उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव की गरमाहट महसूस होने के साथ ही वादों व आश्वासनों की लहर है। किसान, गन्ना बकाया और अलग प्रदेश जै ...और पढ़ें

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    मेरठ (संजीव जैन)। पश्चिम उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव की गरमाहट महसूस होने के साथ ही वादों व आश्वासनों की लहर है। किसान, गन्ना बकाया और अलग प्रदेश जैसे मुद्दे नेताओं की जबान पर चढ़ने लगे हैं, लेकिन वेस्ट यूपी के हितों से सबसे ज्यादा जुड़े मुद्दे हाइकोर्ट बेंच की स्थापना पर फिर चुप्पी साध ली जाएगी। कोई भी सियासी दल सैद्धांतिक तौर पर मेरठ में हाईकोर्ट बेंच की स्थापना से सहमति जताएगा, लेकिन जब बात इसे पूरे प्रदेश के चुनावी समर में लाने की होती है तो समाजवादी पार्टी , बहुजन समाज पार्टी (बसपा), कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) समेत सभी दल चुप्पी साध जाते हैं। अलग हरित प्रदेश के मुद्दे को उठाने वाले राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) के चुनावी एजेंडे मे भी बेंच को जगह नहीं मिलती।

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    वेस्ट के ज्यादा मामले:

    हाईकोर्ट बेंच स्थापना की केंद्रीय संघर्ष समिति पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष उदयवीर सिंह राणा, संयोजक मुकेश वालिया व वरिष्ठ अधिवक्ता अनिल बक्शी के अनुसार, हाईकोर्ट में लंबित करीब 14.9 लाख वादों में से 8.5 लाख मामले वेस्ट यूपी के हैं।

    इलाहाबाद से नजदीक लाहौर:

    इलाहाबाद स्थित हाईकोर्ट जाने के लिए सहारनपुर की जनता को 752, जबकि मेरठ की जनता को 607 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है। अनिल बक्शी ने बताया कि इन दोनों शहरों की जनता को पाकिस्तान के लाहौर स्थित हाईकोर्ट पहुंचने के लिए क्रमश: 380 और 500 किलोमीटर की यात्रा करनी पड़ेगी।

    प्रस्ताव की प्रक्रिया:

    वकील मुकेश वालिया के अनुसार, वेस्ट यूपी में बेंच की स्थापना के लिए राज्य सरकार के प्रस्ताव के बाद केंद्र सरकार इसे इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायमूर्ति को सहमति के लिए भेजती है। केंद्र सरकार एडवोकेट जनरल की विधिक राय पर प्रस्ताव बनाकर संसद से पास करा सकती है।

    पूरब की फांस:

    दशकों पुरानी इस मांग में जब भी वकीलों का आंदोलन कुछ तेजी पकड़ता है, तब इलाहाबाद हाइकोर्ट के वकील इसका विरोध शुरू कर देते हैं। सपा, बसपा, कांग्रेस व भाजपा पूरब के चुनावी समीकरण साधने के चक्कर में इस पर चुप्पी साध जाते हैं, लेकिन वेस्ट यूपी में ही जनाधार रखने वाली रालोद भी चुनाव में इसे लेकर कभी गंभीर नहीं दिखी। जबकि रालोद के प्रमुख मुद्दे अलग हरित प्रदेश की मांग की हाइकोर्ट बेंच स्थापना प्राथमिक कड़ी है।

    पश्चिम में मतभेद:

    राजनीतिक समर्थन के अभाव व वकीलों की आधी-अधूरी रणनीति के चलते वेस्ट यूपी में हाईकोर्ट बेंच की मांग सिर्फ कुछ वकीलों की लड़ाई बन कर रह जाता है। बेंच आंदोलन के जोर पकड़ते ही यह विवाद भी जोर पकड़ लेता है कि इसे मेरठ में बनना चाहिए या आगरा में। आगरा के वकील बेंच की मांग से ज्यादा मेरठ में बेंच स्थापना का विरोध करने लगते हैं। मुरादाबाद व बरेली से जुड़े जिलों की जनता लखनऊ से अच्छी कनेक्टिविटी के चलते इस मसले को लेकर कोई खास उत्साह नहीं दिखाती हैं।

    अब तक के प्रयास:

    -सन 1955 में उप्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री ने मेरठ में हाईकोर्ट बेंच की स्थापना की संस्तुति की थी।

    -1981 से हर शनिवार को मेरठ वकील हड़ताल पर रहते हैं।

    -पिछले साल केंद्रीय मंत्री अजित सिंह के साथ वकीलों ने तत्कालीन विधि मंत्री से मुलाकात कर मांग रखी। विधि मंत्री ने प्रदेश सरकार से इस बाबत प्रस्ताव मांगा, जो नहीं भेजा गया।