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    हर तरफ बस सवाल, मदद किसी ने नहीं की

    By Rajesh NiranjanEdited By:
    Updated: Thu, 06 Aug 2015 09:08 AM (IST)

    कैंट स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर आठ पर बुधवार की रात 12 बजे हरदा में दुर्घटनाग्रस्त कामायनी एक्सप्रेस पहुंची तो हर तरफ भागम-भाग मच गई। इंजन के बाद लगे एसी कोच से जैसे ही घायल 55 वर्षीय उर्मिला (कछवां, मीरजापुर निवासी) उतरीं दौड़कर उनसे उनकी बेटी सविता लिपट गई। दोनों दहाड़े

    वाराणसी, [राकेश पाण्डेय]। कैंट स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर आठ पर बुधवार की रात 12 बजे हरदा में दुर्घटनाग्रस्त कामायनी एक्सप्रेस पहुंची तो हर तरफ भागम-भाग मच गई। इंजन के बाद लगे एसी कोच से जैसे ही घायल 55 वर्षीय उर्मिला (कछवां, मीरजापुर निवासी) उतरीं दौड़कर उनसे उनकी बेटी सविता लिपट गई। दोनों दहाड़े मारकर रो रहीं थीं। उर्मिला के साथ ही उतरा आठ वर्ष का उनका नाती शिवा। चादर में लिपटा, कांपता, दहशत भरी आंखों से सबको देखता हुआ।

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    उसी वक्त रेलवे कर्मचारियों से लेकर मीडिया तक ने सवालों की झड़ी लगा दी। कुछ-कुछ जवाब देते हुए जब अधेड़ का सब्र टूटा तो बिलखते हुए बिफर पड़ीं। बोली इटारसी से लेकर यहां तक हर स्टेशन पर बस सवाल ही सवाल पूछे जा रहे हैं। मदद किसी ने नहीं की। मेरा नाती शिवा बह गया था। भगवान का शुक्र है कि वह मिल गया वरना मैं बेटी को मुंह क्या दिखाती। देखिए वह सिर्फ चादर लपेटे है, किसी ने रास्ते में कपड़ा तक नहीं दिया। उसके कपड़े मिट्टी से सन गए थे। मैं भी डिब्बे में घुस आए मटमैले पानी में डूब रही थी। किसी तरह से जान बची। देखिए, ये देखिए बालों में मिट्टी सनी है। क्या बताऊं आपको बताते हुए शर्म आ रही है कि मैंने सिर्फ साड़ी पहन रखी है। पेटीकोट बह गया था। पूरे रास्ते सवाल करने वालों ने एक पेटीकोट की मदद नहीं की। हट जाइए आप सब, रास्ता दीजिए, हमें घर जाना है।

    यह पूरा वाकया बताने के दौरान उर्मिला के आंसू थमे नहीं। कंधे में गंभीर चोट आई थी जिस पर प्राथमिक उपचार के नाम पर पट्टी लपेटी गई थी। भीषण दर्द भी हो रहा था। मुंबई से वह अपने बेटे आनंद तिवारी के साथ बनारस आ रही थीं। बताया कि जब हादसा हुआ तो हम सब सोए थे। जब तक कुछ समझते बोगी में पानी भर चुका था। घुप अंधेरे में हर तरफ सिर्फ बचाओ-बचाओ की आवाज आ रही थी। हम तो बच गए, न जाने कितने लापता हैं या मर गए। शिवा देर तक लापता था। मिला तो पूरी तरह से कीचड़ से सना था। बस यह बच गया वरना तो हमारे जिंदा होने के कोई मायने नहीं थे। आनंद ने बताया कि करीब घटना करीब रात साढ़े ग्यारह की रही होगी और बचाव के लिए पहला दल आते-आते तीन बज गया। मुझे मेरे बहनोई का सेलफोन नंबर मुंहजुबानी याद था। दूसरे के मोबाइल फोन से उन्हें फोन हम सभी के सुरक्षित होने की जानकारी दी।

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