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    दक्षिण चीन सागरः फैसले पर चीन से ज्यादा भारत की है नजर

    By Lalit RaiEdited By:
    Updated: Wed, 13 Jul 2016 08:11 AM (IST)

    दक्षिण चीन सागर पर अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के फैसले के बाद चीन से ज्यादा भारत की नजर इस पर बनीं हुई है।

    नई दिल्ली। हेग की अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ने दक्षिणी चीन सागर पर चीन के दावे को खारिज कर दिया है। इस पर चीन से ज्यादा भारत की नजर है।

    भारत का 55 फीसदी समुद्री कारोबार इस इलाके से गुजरता है। भारत ने दक्षिण चीन सागर विवाद पर संयुक्त राष्ट्र समर्थित न्यायाधिकरण के फैसले को लेकर सभी संबंधित पक्षों से कहा कि वे बिना किसी धमकी या बल प्रयोग के शांतिपूर्ण ढंग से विवाद का निपटारा करें तथा इस फैसले के प्रति पूरा सम्मान दिखाएं।

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    विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि भारत अंतरराष्ट्रीय कानून के सिद्धांतों के आधार पर नौवहन तथा निर्बाध वाणिज्य की स्वतंत्रता का समर्थन करता है। भारत का मानना है कि संबंधित देशों को धमकी या बल प्रयोग किए बिना शांतिपूर्ण ढंग से विवादों को निवारण करना चाहिए तथा ऐसी गतिविधियां करने में संयम बरतना चाहिए जिससे विवाद जटिल हो अथवा बढ़े।

    असल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाल के अमेरिका दौरे में जो साझा बयान जारी हुआ उसमें दक्षिण चीन सागर का कोई जिक्र नहीं था। लेकिन उसके पहले के दो बयानों में इसका साफ ज़िक्र था। हाल में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने सामुद्रिक विवादों पर बयान देते हुए कहा था कि इसे देश आपस में ही सुलझाएं। साफ है इसके पीछे एनएसजी में सदस्यता की उम्मीदें रही होंगी। लेकिन इस फैसले के बाद तनाव बढ़ने की ही आशंका है, घटने की उम्मीद नहीं।

    इस मामले में चीन का कहना है कि इस दावे का कोई ऐतिहासिक आधार नहीं बनता। लेकिन चीन ने इसे वाशिंगटन के इशारे पर किया गया फैसला बताते हुए इसे मानने से इनकार कर दिया है।

    एक तरफ जहां फिलीपींस कह रहा है कि वो इस फैसले को ध्यान से पढ़ रहा है और पक्षों से संयम और शालीनता बरतने की उम्मीद करता है, वहीं दूसरी तरफ चीन कह रहा है कि उसकी सेना देश की संप्रभुता और कारोबार की मुस्तैदी से रक्षा करेगी।

    असल में हेग की अदालत में अर्जी फिलीपींस की ही थी और चीन ने पूरी कार्यवाई में शामिल होने से इनकार कर दिया था और ये भी कहा था कि इस अदालत को इस मुद्दे पर सुनवाई का अधिकार नहीं। लेकिन सुनवाई हुई और अपने फैसले में द हेग की अदालत ने दक्षिणी चीन समंदर पर चीनी दावे को नकार दिया है। अदालत ने यहां तक कहा है कि इसका कोई ऐतिहासिक आधार नहीं है।

    जानिए क्या कहा अदालत ने

    - चीन दक्षिणी चीन समंदर की तथाकथित डैश लाइन के अंदर आने वाले संसाधनों पर कोई कानूनी दावा नहीं कर सकता।

    - चीन ने फिलीपींस के स्कारबोरो शाल पर मछली मारने के पारंपरिक अधिकारों में दखल दिया।

    - स्पार्टली आइलैंड के इलाके में 200 नॉटिकल मील के विशेष आर्थिक जोन का अधिकार चीन को नहीं।

    - नकली द्वीप बनाकर चीन ने कोरल रीफ को बेहद नुकसान पहुंचाया।

    - इस इलाके में समुद्री पर्यावरण को ठीक नहीं होने वाला नुकसान पहुंचाया।

    - चीन के गार्ड जहाज़ों ने फिलीपींस के जहाज़ों को भी नुकसान पहुंचाया।

    उधर चीन कह रहा है कि उसका हक दो हज़ार साल पुराना है। वहां से जहाजों के गुज़रने से तो उसे समस्या नहीं लेकिन विवादों का हल देशों के साथ बात करके निकालेगा।

    चीन और अमेरिका के बीच तनाव
    दक्षिणी चीन समंदर पर चीन का विवाद फिलीपींस, ताइवान, वियतनाम, ब्रुनेई और मलेशिया तक से चल रहा है। अमेरिकी उपग्रहों ने इस इलाके में चीन के निर्माण को जब पहली बार पकड़ा तब से ये तनाव बड़ा होता गया है। इस पर चीन और अमेरिका भी आमने-सामने हैं। अमेरिका ने कहा है कि उसकी सेनाएं इलाक़े में अपने सहयोगियों के लिए खड़ी रहेंगी।

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