गुजरात में आर्थिक आधार पर दस फीसद आरक्षण हाईकोर्ट से हुआ रद
गुजरात उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार की उस अधिसूचना को खारिज कर दिया है जिसमें ईबीसी के लिए 10 फीसद कोटा देने का प्रावधान था।
जागरण संवाददाता, अहमदाबाद। अनारक्षित वर्ग के गरीब युवाओं को नौकरियों में दस प्रतिशत आरक्षण देने के गुजरात सरकार के अध्यादेश को गुरुवार को हाई कोर्ट ने रद कर दिया। हाई कोर्ट का यह कदम गुजरात की भाजपा सरकार को झटका देने वाला है, जिसने इस अध्यादेश के जरिये प्रदेश में आरक्षण के लिए चल रहे पटेल आंदोलन को नियंत्रित करने की कोशिश की थी।
गुजरात हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश आर सुभाष रेड्डी और जस्टिस वीएम पंचोली की बेंच ने अध्यादेश को अनुचित और असंवैधानिक करार देते हुए रद किया। यह अध्यादेश बीती एक मई को जारी किया गया था। बेंच ने कहा, सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार 50 प्रतिशत अनारक्षित कोटे को कम नहीं किया जा सकता। गुजरात सरकार ने इसी में से दस प्रतिशत आरक्षण अनारक्षित वर्ग के गरीबों को देने की व्यवस्था की थी। बेंच के अनुसार आर्थिक आधार पर आरक्षण गैरसंवैधानिक है।
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हाई कोर्ट ने इस सिलसिले में 25 सितंबर 1993 के दिए इंदिरा साहनी केस का भी हवाला दिया। सरकार के प्रवक्ता नितिन पटेल ने बताया कि अदालत का फैसला शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश पर लागू नहीं होगा लेकिन सरकारी नौकरियों पर लागू होगा। राज्य सरकार फैसले का अध्ययन कर सुप्रीम कोर्ट में उसके खिलाफ अपील करेगी। गौरतलब है कि राजस्थान गुर्जर आरक्षण संघर्ष समिति के वकील शैलेंद्र सिंह गुर्जर ने इस अध्यादेश पर पहले ही सवाल उठाते हुए उसके अमल होने पर शंका जताई थी।
'मेधावी विद्यार्थियों के हित के लिए सरकार ने यह फैसला किया था लेकिन कांग्रेस के करीबी लोग व संस्थाओं ने अदालत में इसका विरोध कर जनविरोधी कार्य किया है।'
- नितिन पटेल, गुजरात सरकार के प्रवक्ता
'अदालत ने आर्थिक आधार पर दिए 10 फीसद आरक्षण के फैसले को रद कर दिया, जिससे यह साबित होता है कि सरकार जनता को गुमराह कर चुनाव जीतने का प्रयास कर रही थी।'
- हार्दिक पटेल, संयोजक-पाटीदार आरक्षण आंदोलन समिति
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