गंगा सफाई के लिए पीपीपी का सहारा ले सकती है सरकार
गंगा के प्रति स्थानीय निकायों और राज्य सरकारों की उदासीनता के मद्देनजर केंद्र सरकार पतितपावनी को निर्मल बनाने के लिए पीपीपी मॉडल का सहारा ले सकती है। सरकार पीपीपी के माध्यम से सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाने की संभावनाएं तलाश रही है। ऐसा होने पर निजी कंपनियां ही एसटीपी स्थापित और संचालित करेंगी।
नई दिल्ली (हरिकिशन शर्मा)।
गंगा के प्रति स्थानीय निकायों और राज्य सरकारों की उदासीनता के मद्देनजर केंद्र सरकार पतितपावनी को निर्मल बनाने के लिए पीपीपी मॉडल का सहारा ले सकती है। सरकार पीपीपी के माध्यम से सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाने की संभावनाएं तलाश रही है। ऐसा होने पर निजी कंपनियां ही एसटीपी स्थापित और संचालित करेंगी।
सूत्रों के मुताबिक गंगा और उसकी सहायक नदियों पर बसे शहरों से निकलने वाले सीवेज को ट्रीट करने पर लगभग 15,000 करोड़ रुपये का खर्च आयेगा। राज्य सरकारें अगर अपनी ओर से समुचित धनराशि का योगदान नहीं करती हैं तो वैकल्पिक उपाय के रूप में केंद्र पीपीपी के माध्यम से निजी क्षेत्र की मदद लेगा।
सूत्रों ने कहा कि गंगा नदी बेसिन के शहरों के लिए तत्काल ही शहरी नदी प्रबंधन योजनाएं बनाने और शहरी गंदे पानी को ट्रीट करने की जरूरत है। इस गंदे पानी को ट्रीट करके पुन: इस्तेमाल किया जा सकता है। गंगा मंथन कार्यक्रम में इसका सुझाव आया था। इसके अलावा इसी तरह का सुझाव गंगा को अविरल और निर्मल बनाने के लिए सात आइआइटी तथा 10 अन्य शीर्ष संस्थानों द्वारा तैयार की गयी रिपोर्ट में भी दिया गया है।
आइआइटी कानपुर के प्रोफेसर विनोद तारे के नेतृत्व में तैयार की गयी इस रिपोर्ट में यह सिफारिश भी की गयी है कि गंदे जल को साफ करने के बाद उसे उद्योगों को इस्तेमाल के लिए देना चाहिए। इसके साथ ही गंगा बेसिन क्षेत्र में शुद्ध भूमिगत जल की कीमत गंदे पानी को साफ करने की लागत से 50 प्रतिशत अधिक तय करनी चाहिए ताकि जल के पुन: इस्तेमाल को बढ़ावा दिया जा सके।
इस रिपोर्ट का कहना है कि गंगा और उसकी सहायक नदियों के किनारे बसे श्रेणी-1 और श्रेणी-2 के सभी शहरों में सीवेज ट्रीटमेंट की पूरी व्यवस्था होनी चाहिए। सूत्रों ने कहा कि केंद्र ने गंगा की सफाई के लिए धनराशि जुटाने को राज्यों को विशेष उद्देश्यीय कोष (एसपीवी) बनाने को भी कहा है। इसके साथ ही प्रदूषणकारी उद्योगों को प्रदूषण रोकने के उपाय करने को भी कहा गया है।
सूत्रों ने कहा कि शहरी स्थानीय निकाय और राज्य सरकारें गंगा की सफाई के लिए धन का समुचित योगदान करने से कतराते हैं। इसलिए वैकल्पिक व्यवस्था के तौर पर पीपीपी की संभावनाएं तलाशी जा रही हैं। इसके अलावा एसटीपी का परिचालन भी संतोषजनक नहीं होता है।
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