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देशद्रोह के मुकदमों पर सरकार को सुप्रीम कोर्ट से मिली राहत

कोर्ट ने कहा, 'कोई व्यक्ति सरकार की आलोचना करता है तो वह देशद्रोह या मानहानि कानून के तहत अपराध नहीं करता।

By Atul GuptaEdited By: Published: Mon, 05 Sep 2016 08:10 PM (IST)Updated: Mon, 05 Sep 2016 08:44 PM (IST)

नई दिल्ली, प्रेट्र । सुप्रीम कोर्ट ने देशद्रोह के मुकदमों को लेकर सोमवार को सरकार को राहत दी है। उसने देशद्रोह के दुरुपयोग संबंधी याचिका पर आदेश देने से इन्कार कर दिया। उसने कहा कि इस संबंध में संविधान पीठ फैसला दे चुकी है। हालांकि कोर्ट ने यह स्पष्ट संदेश भी दिया कि सरकार की आलोचना पर किसी के खिलाफ देशद्रोह या मानहानि का मुकदमा दर्ज नहीं किया जा सकता।

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जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस यूयू ललित की पीठ ने एनजीओ कॉमन कॉज की याचिका पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा, 'कोई व्यक्ति सरकार की आलोचना करता है तो वह देशद्रोह या मानहानि कानून के तहत अपराध नहीं करता। आइपीसी की धारा 124 (ए) (देशद्रोह) लगाने के लिए शीर्ष कोर्ट के पहले के फैसले के खास दिशानिर्देश का पालन करना चाहिए।' पीठ ने इस मामले पर आगे कुछ कहने से मना कर दिया। एनजीओ के वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि देशद्रोह एक गंभीर अपराध है। विरोध का गला घोंटने के लिए इस कानून का खुलकर दुरुपयोग हो रहा है।

इस पर पीठ ने कहा कि हमें देशद्रोह कानून की व्याख्या नहीं करनी है। इस संबंध में 1962 के केदारनाथ सिंह बनाम बिहार सरकार के मामले में पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने फैसला दिया है। कोर्ट ने सभी राज्यों के मुख्य सचिवों और पुलिस महानिदेशकों को देशद्रोह के दुरुपयोग को लेकर कोई आदेश देने से इन्कार कर दिया। साथ ही इस संबंध में एनजीओ की याचिका का निपटारा कर दिया। कोर्ट ने एनजीओ से कहा कि देशद्रोह कानून को लेकर किसी मामले में दुरुपयोग हुआ है तो उसका उल्लेख करते हुए अलग याचिका दाखिल कर सकता है।

एनजीओ ने याचिका में मांग की थी कि पुलिस महानिदेशक को देशद्रोह का मुकदमा दर्ज करने से पहले यह रिपोर्ट देने को कहा जाए कि इससे हिंसा हुई या आरोपी का गड़बड़ी फैलाने का इरादा था। ऐसा नहीं होने पर मुकदमा वापस लेने का निर्देश दिया जाए।

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