कारवां से निकलेगी अविरल धारा
स्वामी विवेकानंद का ये कथन कि कुल की भलाई के लिए गांव छोड़ दो, गांव की भलाई के लिए कुल छोड़ दो और जरूरत पड़े तो माटी की भलाई के लिए सब कुछ छोड़ दो। ऐसा ही जज्बा गंगा जागरण यात्रा के पहुंचने पर पहले स्वतंत्रता संग्राम में बहुआयामी भूमिका निभाने वाली सरजमीं रायबरेली पर देखने को मिला।
कानपुर (राजीव द्विवेदी) : स्वामी विवेकानंद का ये कथन कि कुल की भलाई के लिए गांव छोड़ दो, गांव की भलाई के लिए कुल छोड़ दो और जरूरत पड़े तो माटी की भलाई के लिए सब कुछ छोड़ दो। ऐसा ही जज्बा गंगा जागरण यात्रा के पहुंचने पर पहले स्वतंत्रता संग्राम में बहुआयामी भूमिका निभाने वाली सरजमीं रायबरेली पर देखने को मिला। स्वागत के दौरान बूढ़ी धमनियों में दौड़ते खून में दिखे उबाल और उछाल मारते युवा जोश ने अहसास कराया कि थेम्स की सफाई के लिए इंग्लैंड में हुई नदी क्रांति की तरह ही अब देश की जीवनरेखा गंगा को बचाने के लिए गंगा मित्रों ने पहल कर दी है। इन सबके बीच चेहरों पर ये मलाल भी था कि जिस जमीं ने देश को दो-दो प्रधानमंत्री दिए वहां विकास की गंगा तो खूब बही, पर गोमुख से रायबरेली तक के सफर में मिले घावों के कारण मोक्षदायिनी की उखड़ती सांसों का ख्याल किसी ने नहीं किया।
उत्तर वाहिनी गंगा के सानिध्य में आबाद लालगंज में गंगा जागरण यात्रा के दृश्यमान होते ही शुरू हुए हर-हर गंगे के उद्धघोष में मां की दारुण दशा का दर्द भी प्रतिध्वनित हो रहा था। निराला, जायसी व महावीर प्रसाद द्विवेदी की काव्य सूचनाओं की माटी में जब जागो तभी सबेरा के साथ कर्तव्य बोध भी हिलोरें मार रहा था। कर्तव्य बोध इस बात का कि अब न चेते तो बाद की पीढि़यां माफ न करेंगी। गंगा जागरण यात्रा के रथ पर रखे गंगोत्री के जल कलश को नमन करने की होड़ को देखकर तो यही प्रतीत हो रहा था कि जैसे सभी ने ठान लिया हो कि बस अब बहुत हुआ। दोपहर में शूरवीर राणा बेनी माधव की धरा पर यात्रा पहुंची तो उम्र और धर्म के बंधन तोड़ जुटे गंगा मित्रों में भगीरथी की अविरलता, निर्मलता की फिक्र थी। यात्रा के पहुंचने से पहले ही शहर के राजघाट पर गंगा मित्र जुट चुके थे। हर कोई मां गंगा को आत्मसात करने को बेताब था।
राजघाट से आगे बढ़ी यात्रा गंगा मित्रों के हुजूम के बीच रुकती, अटकती डीएम चौराहा, अस्पताल गेट, दीवानी गेट, कोतवाली रोड, घंटा रोड, हाथी पार्क से गुजरती है। शहर में यात्रा जहां से भी गुजरी अपने पीछे मां पतित पावनी की हुई दुर्दशा के प्रति फिक्र छोड़ गई। दोपहर बाद यात्रा 1921 के जलियावाला बाग जैसी घटनाओं की पुनरावृत्ति की नजीर बने मुंशीगंज पहुंची। यात्रा यहां रुकी तो शहीद हुए किसानों को नमन करने वालों ने मूक भाव से मां गंगा को विषाक्त अपशिष्ट से मुक्त कराने का संकल्प लिया।
यात्रा जिले के अपने अंतिम पड़ाव चौदहवीं शताब्दी के राजा डल की नगरी डलमऊ की ओर बढ़ती है तो प्रसिद्ध लोकोक्ति डलमऊ नगर बसे नौरंगा, ऊपर कोट तरे बहे गंगा भी जेहन में कौंधती है। यात्रा वीर भूमि को प्रणाम कर भगीरथी के तट पहुंचती है तो सनातन धर्मपीठ बड़ा मठ के संतों का आशीष मिला। मठ के पीठाधीश्वर स्वामी देवेन्द्रानंद गिरी की मौजूदगी में मोक्षदायिनी की स्तुति के बाद गंगा जागरण यात्रा अपने अगले पड़ाव फतेहपुर की यशोभूमि की ओर रवाना हो गई।
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