Move to Jagran APP

लालू के पास अब भी है चारा

भ्रष्टाचार में दोषी ठहराए जाने के बाद दांव पर लगे राजनीतिक भविष्य को बचाने के लिए राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव को अब सिर्फ ऊंची अदालत का ही सहारा है। जब तक हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट उनकी सजा और दोषसिद्धी के फैसले पर रोक नहीं लगाएगा, वह अगला चुनाव नहीं लड़ पाएंगे। लालू प्रसाद दूसरे ऐसे नेता हैं जो अपन

By Edited By: Published: Tue, 01 Oct 2013 03:45 AM (IST)Updated: Tue, 01 Oct 2013 03:46 AM (IST)

नई दिल्ली, [माला दीक्षित]। भ्रष्टाचार में दोषी ठहराए जाने के बाद दांव पर लगे राजनीतिक भविष्य को बचाने के लिए राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव को अब सिर्फ ऊंची अदालत का ही सहारा है। जब तक हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट उनकी सजा और दोषसिद्धी के फैसले पर रोक नहीं लगाएगा, वह अगला चुनाव नहीं लड़ पाएंगे।

loksabha election banner

पढ़ें: लालू पर फैसला: सोशल मीडिया पर मजाकिया अंदाज में प्रतिक्रियाएं

लालू प्रसाद दूसरे ऐसे नेता हैं जो अपनी पार्टी के मुखिया होते हुए अयोग्यता के कानून की जद में आ गए हैं। इंडियन नेशनल लोकदल के अध्यक्ष ओमप्रकाश चौटाला भी भ्रष्टाचार के जुर्म में दोषी ठहराए जाने के कारण अगला चुनाव लड़ने के अयोग्य हो गए हैं। चौटाला आजकल तिहाड़ में सजा काट रहे हैं।

लालू का भविष्य तुला की तरह लटका है। भाजपा सांसद नवजोत सिंह सिद्धू के मामले में फैसला ऊंची अदालत में उनके लिए मददगार हो सकता है लेकिन स्टेट ऑफ तमिलनाडु बनाम जगन्नाथन व केसी सरीन के मामले राह में अड़ंगा डाल सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ वकील मीनाक्षी अरोड़ा कहती हैं कि नवजोत सिंह सिद्धू के मामले से इसकी तुलना नहीं की जा सकती। यह मामला भ्रष्टाचार का है। सिद्धू के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने भी दोनों मामलों की नजीर यही कहते हुए ठुकरा दी थी कि वे मामले भ्रष्टाचार के बारे हैं। यानी भ्रष्टाचार में दोषी होना लालू के लिए मुसीबत बन सकता है।

लालू प्रसाद के मामले में नैतिकता का पेंच फंस सकता है। भ्रष्टाचार नैतिकता के खिलाफ अपराध है। इसमें दोषी ठहराया जाना ही अयोग्यता के लिए काफी है। चाहे सजा सिर्फ जुर्माने की ही हुई हो। कोर्ट ने सिद्धू के उच्च नैतिक मूल्य दर्शाने वाले आचरण को सराहा है। कोर्ट ने कहा है कि सिद्धू चाहते तो तीन महीने के भीतर सजा के खिलाफ अपील दाखिल कर सदस्यता बनाए रखते लेकिन उन्होंने उच्च नैतिक मूल्यों के तहत सजा होते ही सांसदी से इंस्तीफा दे दिया। वह फिर से चुनाव लड़कर जनादेश लेना चाहते हैं। कोर्ट ने इसे नैतिकता के ऊंचे मानदंड की तरह लिया है। सिद्धू और लालू के पहले भी कई ऐसे मामले सुप्रीम कोर्ट के सामने पहुंच चुके हैं, जिनमें किसी का ताज उतर गया तो किसी का पद बहाल रहा। ं

किसी को मिला राज तो किसी का गया ताज

जे.जयललिता : बात 2001 की है। भ्रष्टाचार के जुर्म में सजा होने के कारण जयललिता चुनाव लड़ने के अयोग्य हो गई थीं और उनका नामांकन पत्र निरस्त हो गया था। इसके बावजूद राज्यपाल ने जयललिता को मुख्यमंत्री बना दिया लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने जयललिता को पद से हटा दिया।

वीसी शुक्ला: विद्याचरण शुक्ल को अदालत ने दोषी ठहराया। शुक्ल ने अपील दाखिल की और अपील लंबित होने के दौरान चुनाव लड़ा तथा जीत गए। हाई कोर्ट ने यह कहते हुए उनका चुनाव रद कर दिया कि नामांकन पत्र भरते समय वह अयोग्य थे। शुक्ल सुप्रीम कोर्ट पहुंचे। इस बीच वह बरी भी हो गए। सुप्रीम कोर्ट ने बरी होने के आधार पर न सिर्फ राहत दी बल्कि अयोग्यता समाप्त करने के फैसले को नामांकन पत्र भरने की पूर्व तिथि से लागू किया। यह अपनी तरह का विरला मामला है।

मोबाइल पर ताजा खबरें, फोटो, वीडियो व लाइव स्कोर देखने के लिए जाएं m.jagran.com पर


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.