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    जन्म से विचित्र बीमारी की शिकार है यह बच्ची, जानकर हैरान रह जाएंगे

    हर्लीक्वीन एचथियोसिस नाम की दुर्लभ बीमारी से ग्रस्त भारत में जन्म लेने वाला यह पहला बच्चा है। इस अल्पविकसित नवजात के शरीर पर त्वचा नाम की चीज ही नहीं है।

    By Sanjeev TiwariEdited By: Sanjeev TiwariUpdated: Sat, 11 Jun 2016 11:05 PM (IST)
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    नागपुर (महाराष्ट्र), आइएएनएस। एक दुर्लभ आनुवांशिक बीमारी से ग्रस्त बच्ची ने महाराष्ट्र के नासिक में जन्म लिया है। हर्लीक्वीन एचथियोसिस नाम की दुर्लभ बीमारी से ग्रस्त भारत में जन्म लेने वाला यह पहला बच्चा है। इस अल्पविकसित नवजात के शरीर पर त्वचा नाम की चीज ही नहीं है। बच्ची नेत्रहीन है और उसके जीवित रहने के आसार भी कम ही हैं।

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    नासिक के लता मंगेशकर अस्पताल में शुक्रवार को देर रात 12.45 पर जन्मी बच्ची का जन्म डॉ. प्राची दीक्षित ने कराया। यह बच्ची वाडी के किसान दंपती की पहली संतान है। बच्ची को आइसीयू में रखा गया है और उसकी देखभाल में डॉक्टरों का एक पैनल लगा हुआ है। बच्ची की शरीर बहुत ही विकृत दिखता है। चूंकि त्वचा न होने के कारण उसके सारे आंतरिक अंग झलक रहे हैं। इससे उसके शरीर के तापमान को सामान्य रखना भी मुश्किल हो रहा है। उसके शरीर में हथेली, उंगलियां और पैर के पंजे विकसित ही नहीं हुए हैं। उसके चेहरे में भी आंख की जगह दो लाल रंग के फाहे नजर आते हैं। उसकी नाक की जगह पर सांस लेने के लिए सिर्फ दो छेद हैं और चेहरे पर कान है ही नहीं।

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    शिशु विशेषज्ञ डॉ. यशा ए बनैट का कहना है कि यह देश का पहला हर्लीक्वीन बेबी है। ऐसे बच्चों की त्वचा होती भी है तो उसमें दरारें होती हैं। और वह बड़ी आसानी से रोगों की चपेट में आ जाते हैं। प्रख्यात शिशु विशेषज्ञ डॉ. अविनाश बनैट ने बताया कि ऐसा एक मामला 2014 में छत्तीसगढ़ के बस्तर में आया था। लेकिन उसे चिकित्सकीय आधार पर इस बीमारी का शिकार साबित नहीं किया जा सका था। इसके अलावा, पूरे विश्व के इतिहास में वर्ष 1750 से अब तक ऐसे रोग से पीडि़त बच्चों के जन्म लेने की करीब दर्जन भर घटनाएं ही हुई हैं।

    ऐसा पहला बच्चा अमेरिका के साउथ कैरोलीना में अप्रैल 1750 में जन्मा था। ऐसा ही एक बच्चे नुसरत शाहीन को 1984 में पाकिस्तान महिला ने जन्मा था। उस महिला के चारों बच्चों को यही बीमारी थी और उन सभी की जल्दी ही मौत हो गई थी। ऐसा ही एक बच्चा वर्ष 2013 में दक्षिण अफ्रीका में जन्मा था। उसके भी बचने की उम्मीद काफी कम थी लेकिन वह फिर भी अपेक्षा से अधिक जी गया था।