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    जम्‍मू-कश्‍मीर का यह गांव कभी था खुशहाल, अब हर घर है 'घायल'

    By Pratibha Kumari Edited By:
    Updated: Sun, 21 May 2017 11:01 AM (IST)

    पाक गोलाबारी से तबाह हो गया है यह पूरा गांव, कोई घर ऐसा नहीं बचा जिस पर गोलाबारी के निशान नहीं हों।

    जम्‍मू-कश्‍मीर का यह गांव कभी था खुशहाल, अब हर घर है 'घायल'

    नौशहरा, गगन कोहली। जम्‍मू-कश्‍मीर स्थित राजौरी जिले के नौशहरा तहसील में भारत-पाक सीमा पर बसा है गांव झंगड़। एक सप्ताह पहले तक यह खुशहाल और आबाद था। मगर सीमा पार बैठे दुश्मन ने इस पर इतने गोले बरसाए कि यह पूरी तरह अब तबाह हो गया। गांव में कोई घर ऐसा नहीं, जिस पर पाक गोलाबारी के निशान न हों। दो स्कूल थे, जो अब बंद हैं। स्कूल की घंटी की आवाज और बच्चों का शोर कहीं खो गया है। पूरा गांव खाली हो चुका है। गांव में इक्का-दुक्का लोग नजर आते हैं, लेकिन वह भी अपने माल-मवेशियों की देखरेख के लिए।

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    गांव में अगर कुछ है तो चारों तरफ पसरा सन्नाटा। वैसे तो सीमा से सटा झंगड़ गांव हर बार पाकिस्तानी गोलीबारी का निशाना बनता रहा है, लेकिन इस बार पाकिस्तान ने भारतीय सैन्य चौकियों से ज्यादा इस गांव में मोर्टार दागे। झंगड़ के निवासी सतनाम सिह, चंद्र प्रकाश, कुलवीर चौधरी ने बताया कि तीन हजार की आबादी वाले इस गांव पर इतनी गोलाबारी पहले कभी नहीं हुई। सभी मकान गोलाबारी में क्षतिग्रस्त हो चुके हैं। गांव में स्थित राधा स्वामी सत्संग घर को भी नुकसान पहुंचा है।

    पाक सेना ने हमारे स्कूलों को भी नहीं छोड़ा। लोग अपने घरों को छोड़ कर बच्चों सहित पलायन कर राहत शिविरों में आ चुके हैं। इससे बच्चों की पढ़ाई पर भी असर पड़ रहा है। गांव में वापस भी नहीं जा सकते। पता नहीं, दुश्मन कब गोलाबारी शुरू कर दे। रात के समय जब हम अपने गांव की ओर देखते हैं तो सभी घरों की बिजली बंद होने से कहना मुश्किल है कि शायद ही यहां कोई गांव भी है।

    गांवों में न कोई दूध खरीदने वाला और न बेचने वाला

    झंगड़, लाम, भवानी, कलसियां, बाबा खोड़ी आदि गांव के लोगों का पेशा दूध उत्पादन है। इन गांव के लोगों ने अपने ही घरों में छोटी--छोटी डेयरी खोल रखी हैं। लोग राजौरी शहर के साथ-साथ अन्य क्षेत्रों में जाकर दूध बेचते हैं। कुछ दूध विक्रेता दूध खरीदने के लिए इन गांवों में भी आते हैं, लेकिन जबसे गोलाबारी हो रही है न तो दूध बाजारों में बिकने गया और न ही कोई खरीदने आया। अधिकतर लोगों के मवेशी तो मारे जा चुके हैं और कई घायल हैं।

    बार-बार बेघर होने से तंग आ चुके हैं

    नौशहरा के सीमांत क्षेत्रों के करीब दो हजार लोग अपने घरों से बेघर होकर राहत शिविरों में रह रहे हैं। पाक गोलाबारी के डर से लोग अपने घरों को जाने को तैयार नहीं हैं। राहत शिविरों में ही लोग खाना बनाते हैं और खाकर वहीं सो जाते है। शिविरों में रह रहे शाम लाल, मुहेंद्र पाल, अशोक कुमार ने कहा कि इससे पहले हम लोग 1947, 1965, 1971 के बाद कारगिल की ल़़डाई में बेघर हुए और कई-कई माह तक अपने घरों से बाहर रहे। हम लोग तंग आ चुके हैं। सरकार कोई ऐसा कदम उठाए कि हमें बार-बार बेघर न होना पड़ें।

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