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    'चुनाव आया तो याद आईं गांव की सड़कें'

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    Updated: Mon, 17 Feb 2014 12:10 PM (IST)

    लोकसभा चुनाव को देख केंद्र की संप्रग सरकार को गांव की सड़कें याद आने लगी हैं। तभी तो सालों से लंबित पड़ी नौ राज्यों के नक्सल प्रभावित 27 जिलों की सड़कों के कानूनी पचड़े को सुलझाने की कोशिश शुरू हो गई है। सख्त नियमों और नक्सलियों की धमकी से डरे ठेकेदार काम कराने को तैयार नहीं है।

    नई दिल्ली, [सुरेंद्र प्रसाद सिंह]। लोकसभा चुनाव को देख केंद्र की संप्रग सरकार को गांव की सड़कें याद आने लगी हैं। तभी तो सालों से लंबित पड़ी नौ राज्यों के नक्सल प्रभावित 27 जिलों की सड़कों के कानूनी पचड़े को सुलझाने की कोशिश शुरू हो गई है। सख्त नियमों और नक्सलियों की धमकी से डरे ठेकेदार काम कराने को तैयार नहीं है। लेकिन अब चुनावी लाभ लेने के लिए केंद्र ने मानकों में ढील दे दी है, लेकिन कुछ ही दिनों में चुनाव आचार संहिता के लग जाने से सड़कें बनाना फिलहाल संभव नहीं हो सकेगा।

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    पढ़ें: नक्सल प्रभावित इलाके का नेटवर्क मजबूत होगा

    नक्सल प्रभावित गैर कांग्रेसी राज्य बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश, ओड़िशा, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश समेत नौ राज्यों के दो दर्जन से अधिक जिलों में ग्रामीण सड़कों का निर्माण कार्य सालों से ठप है। इन जिलों में गंभीर नक्सल समस्या के चलते सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में सड़कों के निर्माण के लिए कोई ठेकेदार नहीं मिलने से काम शुरू ही नहीं हो पाया है।

    ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने इन राज्यों के मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखकर गंभीर चिंता जताई है। जयराम ने कहा है कि सड़कों के न बनने से क्षेत्र का विकास पूरी तरह ठप है। राज्य सरकारों की उदासीनता से हालात और खराब हुए हैं। ठेकेदारों को पर्याप्त सुरक्षा मुहैया कराने में नाकाम होने की वजह से हालात खराब हैं। राज्य सरकारों के आग्रह के बाद केंद्र ने अब जाकर प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना [पीएमजीएसवाई] के मानकों में ढील दी है।

    इससे लंबित पड़ी इन ग्रामीण सड़कों के निर्माण की राह आसान हो गई है। लेकिन यह ढील उन्हीं सड़कों के लिए होगी, जिनका टेंडर कम से कम दो बार होने के बावजूद ठेकेदार न मिले हों। राज्यों को किसी ठेका कंपनी को काम सौंपने का अधिकार होगा।