आपसी लिखा-पढ़ी से तलाक कानूनन मान्य नहीं
बांबे हाई कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा है कि आपसी लिखा पढ़ी के जरिये तलाक कानूनन मान्य नहीं है। कोर्ट के मुताबिक पति-पत्नी इस आधार पर सहमति से तलाक की मांग नहीं कर सकते। मनोज पंचाल और मितल नाम के इस जोड़े ने हिंदू रीति रिवाज के अनुसार अप्रैल, 2007 में शादी की थी। विचारों में तालमेल के अभाव के चलते दोनों के
मुंबई। बांबे हाई कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा है कि आपसी लिखा पढ़ी के जरिये तलाक कानूनन मान्य नहीं है। कोर्ट के मुताबिक पति-पत्नी इस आधार पर सहमति से तलाक की मांग नहीं कर सकते।
मनोज पंचाल और मितल नाम के इस जोड़े ने हिंदू रीति रिवाज के अनुसार अप्रैल, 2007 में शादी की थी। विचारों में तालमेल के अभाव के चलते दोनों के बीच एक साल के भीतर ही मनमुटाव पैदा हो गया। जून, 2011 में दोनों ने आपसी सहमति से अलग होने का फैसला करने के साथ ही लिखा-पढ़ी में तलाक ले लिया। उस वक्त दोनों को पता नहीं था कि इस तरह का तलाक कानूनन मान्य नहीं है। इसके बाद मनोज और मितल ने दूसरी शादी कर ली। अमेरिका में रह रहे अपने दूसरे पति के पास जाने के लिए मितल ने वीजा के लिए अमेरिकी दूतावास में आवेदन किया, लेकिन उसे वीजा नहीं दिया गया। दूतावास ने मितल से तलाक की डिग्री मांगी, जो उसके पास नहीं थी। इसके बाद उसने अपने पूर्व पति मनोज से संपर्क किया। दोनों ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13(बी) के तहत तलाक के लिए फैमिली कोर्ट में अर्जी लगाई। दोनों ने अदालत से आपसी सहमति से तलाक के लिए अनिवार्य छह महीने की अवधि में छूट देने की भी मांग की, लेकिन कोर्ट ने उनकी याचिका खारिज कर दी। इसके बाद दोनों ने बांबे हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। जस्टिस वीके ताहिलरमानी की अगुआई वाली पीठ ने हाल ही में दिए अपने फैसले में कहा कि कानून की नजर में फैमिली कोर्ट का निर्णय कानून सम्मत नहीं है। फैमिली कोर्ट ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी थी कि लिखा-पढ़ी के आधार पर दोनों की शादी पहले ही टूट चुकी है। इसलिए दोनों की ओर से हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 (बी) के तहत दायर अर्जी स्वीकार करने योग्य नहीं है।
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