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राहुल को संजय गांधी जैसा बनने की सलाह

कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के सलाहकारों में प्रमुख रहे पार्टी महासचिव दिग्विजय सिंह ने उन्हें अब अपनी नीति बदलने की सलाह दी है। उन्होंने राहुल को अपने चाचा संजय गांधी की तरह बनने को कहा है। दिग्विजय ने कहा कि सत्तर के दशक में जिस प्रकार संजय गांधी के नेतृत्व में पार्टी कार्यकर्ताओं ने जेल जाकर व लाठी-डंडे खाकर जनता पार्टी सरकार का तख्ता पलट किया था, कुछ उसी तरह मोदी सरकार के खिलाफ कार्यकर्ताओं के संघर्ष का नेतृत्व राहुल को करना चाहिए

By Edited By: Published: Thu, 25 Sep 2014 09:53 PM (IST)Updated: Thu, 25 Sep 2014 09:53 PM (IST)
राहुल को संजय गांधी जैसा बनने की सलाह

नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के सलाहकारों में प्रमुख रहे पार्टी महासचिव दिग्विजय सिंह ने उन्हें अब अपनी नीति बदलने की सलाह दी है। उन्होंने राहुल को अपने चाचा संजय गांधी की तरह बनने को कहा है। दिग्विजय ने कहा कि सत्तार के दशक में जिस प्रकार संजय गांधी के नेतृत्व में पार्टी कार्यकर्ताओं ने जेल जाकर व लाठी-डंडे खाकर जनता पार्टी सरकार का तख्ता पलट किया था, कुछ उसी तरह मोदी सरकार के खिलाफ कार्यकर्ताओं के संघर्ष का नेतृत्व राहुल को करना चाहिए। दिग्विजय सिंह मोदी सरकार के 100 दिन पूरे होने पर बुधवार को जंतर-मंतर पर युवा कांग्रेस द्वारा आयोजित आक्रोश रैली को संबोधित कर रहे थे। इस दौरान बैरिकेड तोड़ने पर पुलिसकर्मियों ने लाठियां भी चलाई, जिसमें 12 कार्यकर्ताओं को चोटें आई हैं।

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लोकसभा चुनाव में संप्रग की हार के बाद से पार्टी के भीतर राहुल गांधी की छवि पर सवाल उठने लगे हैं। इस बीच दिग्विजय सिंह ने उन्हें संजय गांधी की छवि अख्तियार करने की सलाह देकर इस सवाल को फिर से हवा दे दी है। पार्टी नसबंदी कार्यक्रम और आपातकाल में तानाशाह जैसे व्यवहारों के कारण संजय गांधी से दूरी बनाकर चलती रही है। जबकि राहुल की छवि को उनके पिता व पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के आस-पास गढ़ा गया है। हालांकि दिग्विजय सिंह ने राहुल गांधी व पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का बचाव करते हुए यह भी कहा कि नेताओं में कोई कमी नहीं थी। सरकार के कार्यक्रम सही थे। कमी कार्यकर्ताओं में रही, जिसके कारण हार मिली। इस पर कार्यकर्ताओं ने शोर मचाकर अपना विरोध जताया।

नहीं आए राहुल गांधी

रैली में राहुल गांधी के भी आने की बात कही गई थी, लेकिन वह नहीं आए। उनके न आने के पीछे जंतर-मंतर पर मात्र डेढ़ हजार कार्यकर्ताओं की मौजूदगी से जोड़कर देखा गया।

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