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    बदायूं कांड: हैवानियत की शिकार किशोरियों की जाति को लेकर भ्रम

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    Updated: Tue, 03 Jun 2014 07:30 AM (IST)

    वैसे तो न पीड़ित की कोई जाति होती है और न दरिंदे की, लेकिन बदायूं के बहुचर्चित सामूहिक दुराचार के बाद हत्या के मामले में पीड़ित की जाति को लेकर भी भ्रम पैदा हो गया है। दरअसल हैवानियत की शिकार किशोरियां मौर्य बिरादरी की थीं, लेकिन मीडिया के एक वर्ग से लेकर कुछ राजनीतिक लोगों ने उसे दलित के रूप में प्रचारित कर दिया। बताते चलें कि यह घटना जिस दातागंज विधानसभा क्षेत्र की है, वहां से बसपा विधायक सिनोद शाक्य उसी बिरादरी से आते हैं जिसकी घटना की शिकार किशोरियां थी

    बदायूं, जासं। वैसे तो न पीड़ित की कोई जाति होती है और न दरिंदे की, लेकिन बदायूं के बहुचर्चित सामूहिक दुराचार के बाद हत्या के मामले में पीड़ित की जाति को लेकर भी भ्रम पैदा हो गया है। दरअसल हैवानियत की शिकार किशोरियां मौर्य बिरादरी की थीं, लेकिन मीडिया के एक वर्ग से लेकर कुछ राजनीतिक लोगों ने उसे दलित के रूप में प्रचारित कर दिया।

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    बताते चलें कि यह घटना जिस दातागंज विधानसभा क्षेत्र की है, वहां से बसपा विधायक सिनोद शाक्य उसी बिरादरी से आते हैं जिसकी घटना की शिकार किशोरियां थीं। शाक्य, मौर्य एक ही बिरादरी मानी जाती है, जो पिछड़े वर्ग में आती है। 26 मई को देर रात करीब तीन बजे जब दोनों किशोरियों की लाश बाग में पेड़ से लटकती हुई मिलीं तो अगले दिन पीड़ित परिवार के परिजनों ने साफ कह दिया कि जब तक इलाका विधायक सिनोद शाक्य नहीं आएंगे, तब तक लाश नहीं उतारी जाएंगी। परिजनों व उनके सगे-संबंधियों की इसी जिद के कारण लाश करीब 13 घंटे बाद नीचे उतारी जा सकी। इसके बाद बसपा ने ही सबसे पहले मामले पर दबाव बनाना शुरू किया। पार्टी के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य से लेकर नसीमुद्दीन भी पहुंच गए। दलित की बात सुनकर ही अनुसूचित जाति जनजाति आयोग के अध्यक्ष पीएल पुनिया के भी आने का कार्यक्रम बना, जो बाद में निरस्त हो गया। इसके बाद खुद बसपा सुप्रीमो मायावती भी पहुंच गई। बिहार की दलित राजनीति से ताल्लुक रखने वाले केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान भी आ गए।

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