भारत-पाक सीमा पर घर में रहकर भी क्यों बेघर महसूस कर रहे दर्जनों गांव
जम्मू-कश्मीर सीमा पर हुई तारबंदी बनी गले की फांस। अपने ही घर आने-जाने के लिए लेनी पड़ती है अनुमति।
राजौरी, जेएनएन। जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान से लगती सीमा पर हुई तारबंदी दर्जनों छोटे गांवों के लोगों के लिए परेशानी का सबब बन गई है। लोग अपने घरों में रहकर भी बेघर महसूस कर रहे हैं। इनकी इस परेशानी का कारण भी पाकिस्तान ही है। सीमा पर 2003 में भारत-पाकिस्तान के बीच संघर्ष विराम की घोषणा की गई थी। इसके बाद आतंकियों की घुसपैठ रोकने के लिए सीमा पर कंटीले तार लगाने का कार्य शुरू किया गया, लेकिन तारबंदी शुरू होते ही पाकिस्तानी सेना ने संघर्ष विराम का उल्लंघन करना शुरू कर दिया। तार लगाने के कार्य को रोकने का प्रयास करने लगा। उस समय सरकार और सेना ने तार को सीमा से पीछे लगाने का फैसला किया था।
किसी क्षेत्र में तार जीरो लाइन से कुछ मीटर की दूरी पर है तो कहीं आधा किलोमीटर, एक किलोमीटर, दो किलोमीटर तो कहीं तीन से पांच किलोमीटर दूर लगाए गए हैं। तारबंदी के बाद आतंकियों की घुसपैठ पर तो अंकुश लगा, लेकिन जिन लोगों की जमीन और मकान तार के उस पार आ गए, वे अपने ही देश में रिफ्यूजी बनकर रह गए। तार के उस पार रहने वालों को अपने जमीन पर काम करना हो तो भी अनुमति चाहिए। यही नहीं, अगर घर में कोई मेहमान आता है तो उसकी भी अनुमति लेनी होती है।
हर बार लोगों को अपने घरों में आने-जाने के लिए पहचान पत्र दिखाना पड़ता है। कई बार लोगों की जांच भी की जाती है। तार के उस पार रहने वाले लोग कई बार इसका विरोध भी जता चुके हैं कि उन्हें बिना किसी रकावट के अपने घर और जमीन पर आने-जाने की अनुमति दी जाए। कुछ दिन पहले पाक सेना ने बालाकोट सेक्टर में गोलाबारी शुरू कर दी थी। इस दौरान सीमा से सटे स्कूल में अध्यापक और करीब 20 बच्चे फंस गए थे। अध्यापक और स्थानीय लोग बच्चों को घर तक पहुंचाने का प्रयास करते रहे, लेकिन सीमा पर लगे गेट नहीं खुले, जिस कारण तीन घंटे तक बच्चे स्कूल में फंसे रहे।
तीन दिन पहले भी पुंछ के देगवार सेक्टर में कुछ लोग अपने मवेशी लेकर घर जाने का प्रयास कर रहे थे, लेकिन सेना के जवानों ने गेट नहीं खोले। इसी बीच, पाक सेना ने गोलाबारी शुरू कर दी, जिससे लोगों के कई मवेशी मारे गए। इसके बाद लोगों ने प्रदर्शन भी किया। इतना सब कुछ होने के बावजूद तार को जीरो लाइन पर ले जाने का कोई प्रयास नहीं किया जा रहा है। 45 गांवों के लोग तारबंदी से परेशान तार के उस पार करीब 45 गांव हैं। इन गांवों के लोगों को अपने घर से अगर कहीं जाना हो या फिर स्कूल, कॉलेज के विद्यार्थियों को आना-जाना हो तो तार पर लगे गेट को खुलने का इंतजार करना पड़ता है। कुछ क्षेत्र में सेना ने गेट खोलने और बंद करने का समय भी तय किया है। कुछ क्षेत्र में सेना के जवान पूछताछ के बाद गेट खोल देते हैं।
विशेष पहचानपत्र किसी काम का नहीं
तार के उस पार रहने वालों के लिए प्रशासन ने विशेष पहचानपत्र जारी किए हैं, ताकि उन्हें आने-जाने में कोई परेशानी न हो। इसके बावजूद लोग परेशान हो रहे हैं। लोगों के लिए विशेष पहचानपत्र किसी काम के नहीं हैं। जीरो लाइन पर तार ले जाने की मांग तार के उस पार रहने वाले मोहम्मद इमरान, अब्दुल कयूम व अल्ला दित्ता का कहना है कि कई बार केंद्र सरकार के मंत्रियों, सांसद और सैन्य अधिकारियों से मिलकर तार को जीरो लाइन पर ले जाने की मांग की गई, लेकिन कोई प्रयास नहीं किया जा रहा है। नतीजतन वह अपने ही देश में रिफ्यूजी बनकर रह गए हैं।
पूंछ के सांसद जुगल किशोर शर्मा का कहना है, आम लोगों ने यह मुद्दा उठाया है। इस संबंध में केंद्र सरकार व रक्षा मंत्रालय से बातचीत की जा रही है कि तार को जीरो लाइन पर लगाया जाए।
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