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    Karwa Chauth: मौत को राह बदलने पर किया मजबूर, अपनी किडनी दे बचायी पति की जान

    By Monika MinalEdited By:
    Updated: Sun, 08 Oct 2017 10:16 AM (IST)

    पति के दोनों गुर्दे फेल हो चुके थे लेकिन पत्‍नी ने अपना गुर्दा देकर पति की जान बचायी। -25 सितंबर को गुजरात के नाडियाड में उनका सफलता पूर्वक ट्रांसप्लांट हुआ।

    Karwa Chauth: मौत को राह बदलने पर किया मजबूर, अपनी किडनी दे बचायी पति की जान

    कोरबा (विकास पांडेय)। वर-वधु जब फेरों के दौरान अग्नि के समक्ष सात वचन लेते हैं, तो पत्नी का एक वचन यह भी होता है कि जब कभी मृत्यु देवता आएं तो मौत को पहले उसका सामना करना होगा। पति की जान मुश्किल में देख यही कसम निभाते हुए एक पत्नी ने खुद को आगे कर मौत को भी अपना रास्ता बदलने मजबूर कर दिया। कोरबा में पदस्थ एक आरक्षक की दोनों किडनी फेल हो चुकी थी। पत्नी ने बिना देर किए किडनी देने का फैसला कर अपना वादा निभाया। खास बात यह है कि अपने जन्मदिन पर ही पति को गुर्दा भेंटकर नया जीवन दिया।

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    एनटीपीसी कॉलोनी में रहने वाले मुकेश सिंह ठाकुर दर्री थाने में आरक्षक के पद पर कार्यरत हैं। 28 फरवरी 2008 को उनकी शादी मीनाक्षी से हुई थी। वह पत्नी, दो बच्चों में पुत्र धैर्य (7) व बेटी मनस्वी (4) के साथ रह रहे थे। तीन साल पहले जब मुकेश पुलिस ट्रेनिंग स्कूल में थे, उन्हें अचानक बुखार आया और वे बीमार हो गए। डेढ़ साल पहले चिकित्सकों ने मर्ज का पता लगाते हुए किडनी ट्रांसप्लांट की जरूरत बताई। 9 साल के दाम्पत्य जीवन में यह मुश्किल मौका था। मुकेश का ब्लड ग्रुप ए-पॉजिटिव था, जबकि मीनाक्षी का ओ-पॉजिटिव और जब चिकित्सकों ने बताया कि वह भी अपनी किडनी दे सकती है, तो उसे जीने की नई उम्मीद मिल गई। मीनाक्षी ने अपनी किडनी देने का फैसला कर लिया और पिछले माह 25 सितंबर को अपने 29वें जन्मदिन पर उन्होंने मुकेश को अपनी एक किडनी डोनेट कर दी। दोनों बिल्कुल स्वस्थ हैं।

    मैं उनकी अर्धागिनी, वही दिया जो उनका था

    शरीर का अंग पति को देकर अपने 29वें जन्मदिन को अविस्मरणीय बनाने वाली मीनाक्षी ने कहा- उन्होंने वही किया जो हर सुहागन का धर्म और अधिकार है। मैं उनकी अर्धागिनी हूं, इसलिए वही समर्पित किया, जो उनका था। आरक्षक मुकेश सिंह ठाकुर का सफल ऑपरेशन 25 सितंबर को गुजरात के मूलजीबाई पटेल यूरोलॉजी हॉस्पिटल नाडियाड में हुआ।

    दरकिनार हुए अपने, सबसे आखिर में मिला हक

    चिकित्सा नियमों के अनुसार सबसे पहले मरीज को किडनी देने के लिए सबसे पहला मौका भाई, उसके बाद बहन, फिर माता-पिता को दिया जाता है। जब किसी वजह से वे नहीं दे पाएं, तब कहीं जाकर पत्नी को किडनी देने का अधिकार मिल पाता है।

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