मालिन के मलबे में किसी के जिंदा बचने की उम्मीद नहीं
पुणे जिले में बुधवार को भूस्खलन के कारण मलबे में दब चुके मालिन गांव से अब किसी भी व्यक्ति के जिंदा बचने की उम्मीदें टूटने लगी हैं। हालांकि राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन बल [एनडीआरएफ] के तीन सौ जवान बारिश के बीच जेसीबी एवं पोकलैंड जैसी मशीनों की मदद से राहत एवं बचाव अभियान में जुटे हैं, लेकिन पत्थर एवं मिट्टी की मोटी परत के न
पुणे। पुणे जिले में बुधवार को भूस्खलन के कारण मलबे में दब चुके मालिन गांव से अब किसी भी व्यक्ति के जिंदा बचने की उम्मीदें टूटने लगी हैं। हालांकि राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन बल [एनडीआरएफ] के तीन सौ जवान बारिश के बीच जेसीबी एवं पोकलैंड जैसी मशीनों की मदद से राहत एवं बचाव अभियान में जुटे हैं, लेकिन पत्थर एवं मिट्टी की मोटी परत के नीचे से तीन दिन बाद किसी का जिंदा निकलना चमत्कार ही होगा। इस हादसे में मरने वालों की संख्या अब तक 75 पहुंच चुकी हैं। इनमें 28 महिलाएं व 10 बच्चे शामिल हैं।
एनडीआरएफ के जवान बारिश के बीच मलबे के नीचे दबे मालिन गांव में लोगों की तलाश और उन्हें सुरक्षित निकालने के काम में जुटे हैं। इस बीच, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने प्रत्येक मृतक के परिजन को पांच लाख रूपये की वित्तीय सहायता देने की घोषणा की है। सह्याद्रिपर्वत श्रंखला के पर्वत टूटने से आए पत्थर एवं मिट्टी की परत इतनी मोटी है कि जेसीबी व पोकलैंड जैसी मशीनों से भी मलबा हटाने में मुश्किलें आ रही हैं।
समय बीतने के साथ मलबे में दबे लोगों के जिंदा बचने की उम्मीदें लगातार क्षीण होती जा रही हैं। हालांकि तीन माह के बच्चे के रोने की आवाज सुनकर मलबे में दबे कुछ लोगों को जीवित निकाला गया था। यह बात भी सामने आई है कि हादसे में करीब दो दर्जन स्कूली छात्र भी काल का ग्रास बन गए, जो भूस्खलन वाले दिन गांव में स्थित मंदिर के परिसर में स्थित चबूतरे पर सो रहे थे। इस बीच मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चह्वाण ने हादसे में मारे गए लोगों के परिजनों को मुख्यमंत्री राहत कोष से पांच-पांच लाख के अनुदान का एलान किया है।
केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह गुरुवार को ही प्रधानमंत्री कोष से दो-दो लाख देने की घोषणा कर चुके हैं। वहीं, पर्यावरणविद् और सरकारी विभाग भूस्खलन के कारणों की खोज में जुट गए हैं। बताया जाता है कि पश्चिमी घाटों में गत 20 वर्षो में विकास की गतिविधियां बढ़ने से पहाड़ों व जंगलों को काटने का सिलसिला तेजी से बढ़ा है। जिससे पहाड़ लगातार कमजोर होते जा रहे हैं। इसी का दुष्परिणाम भूस्खलन के रूप में सामने आया है।
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