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'मेक इन इंडिया' पर सरकार की पहल, अब देशी कागज पर ही छपेंगे नोट

वित्त मंत्री अरुण जेटली ने शनिवार को यहां करेंसी पेपर की मैन्यूफैक्चरिंग के लिए नई प्रोडक्शन लाइन का शुभारंभ किया।

By Sachin BajpaiEdited By: Published: Sat, 30 May 2015 09:39 PM (IST)Updated: Sat, 30 May 2015 09:50 PM (IST)
'मेक इन इंडिया' पर सरकार की पहल, अब देशी कागज पर ही छपेंगे नोट

होशंगाबाद । वित्त मंत्री अरुण जेटली ने शनिवार को यहां करेंसी पेपर की मैन्यूफैक्चरिंग के लिए नई प्रोडक्शन लाइन का शुभारंभ किया। इसे मेक इन इंडिया पहल की दिशा में बढ़ाया गया कदम करार देते हुए जेटली ने कहा कि इससे सुनिश्चित होगा कि अब देशी कागज पर ही बड़े मूल्य के नोटों की छपाई होगी। इस मौके पर प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान मौजूद रहे।

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सुबह 11 बजे वित्त मंत्री ने सिक्योरिटी पेपर मिल यानी एसपीएम में न्यू बैंक नोट पेपर लाइन का शुभारंभ किया। इससे अब देशी कागज पर ही बड़े मूल्य के नोटों की छपाई का काम शुरू हो गया है। एक हजार नोटों के कागज की पहली खेप को जेटली ने हरी झंडी दिखाकर छपाई के लिए नाशिक रवाना किया। इसके बाद उन्होंने इटारसी-होशंगाबाद के बीच स्थित पंवारखेड़ा में प्रदेश के सबसे बड़े लॉजिस्टिक हब का लोकार्पण किया। छह अरब की लागत से बनने वाले हब के पहले चरण का काम पूरा हुआ है। इससे क्षेत्र में कृषि और व्यवसाय के अवसर बढ़ जाएंगे।

एसपीएम में जेटली ने कहा कि यह स्वदेशी, स्वाभिमान और आत्मनिर्भरता की ओर बड़ा कदम है। अभी तक देश की करेंसी के लिए विदेश से कागज आयात करना पड़ता था। अब देशी कागज पर ही नोट छपेंगे। उन्होंने कहा कि इस यूनिट से सालाना छह हजार टन कागज का उत्पादन होगा। यह ईको फ्रेंडली अत्याधुनिक यूनिट है, जिसमें ऑनलाइन मॉनिटरिंग सिस्टम है। जल्द ही मैसूर में 12 हजार टन की क्षमता वाली दो यूनिटें शुरू की जाएंगी। इससे देशी कागज की कुल क्षमता 18 हजार टन हो जाएगी।

होशंगाबाद को चुनने की वजह

होशंगाबाद को कई दशक पहले मोरारजी देसाई ने नोट छपाई के लिए कागज उत्पादन केंद्र के तौर पर चुना था जो तत्कालीन वित्त मंत्री थे और बाद में प्रधानमंत्री बने। हालांकि, यहां से कम मूल्य वाले मुद्रा नोट के लिए कागज का उत्पादन होता रहा है।

जाली नोटों पर लगेगी लगाम

होशंगाबाद और मैसूर में नई सुविधाओं के विकसित होने के बाद देश में पर्याप्त मात्रा में करेंसी प्रिंटिंग पेपर का उत्पादन संभव हो सकेगा। दोनों संयंत्रों से करीब 1,500 करोड़ रुपये विदेशी मुद्रा की बचत होगी। साथ ही इससे विदेश से आयात होने वाले कागज का नकली मुद्रा छापने के लिए अन्यत्र पहुंचने की संभावना भी कम होगी।

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