Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    मंजूर नहीं दागी जनप्रतिनिधि

    By Edited By:
    Updated: Thu, 05 Sep 2013 05:53 AM (IST)

    आपराधिक मामले में सजा होते ही जनप्रतिनिधियों की सांसदी और विधायकी छीनने के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट अडिग है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की पुनर्विचार ...और पढ़ें

    Hero Image

    जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। आपराधिक मामले में सजा होते ही जनप्रतिनिधियों की सांसदी और विधायकी छीनने के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट अडिग है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की पुनर्विचार याचिका खारिज करते हुए अदालत से दोषी करार सांसदों-विधायकों को अयोग्य ठहराने वाले अपने फैसले पर एक बार फिर मुहर लगा दी है। हालांकि कोर्ट जेल से चुनाव लड़ने पर रोक लगाने के फैसले पर पुनर्विचार को राजी हो गया है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    वैसे राजनीति का अपराधीकरण रोकने के सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का कोई ज्यादा मतलब नहीं रह जाता। क्योंकि दागियों को बचाने में एड़ी-चोटी से जुटी सरकार पहले ही सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को पलटने वाला कानून संसद में पेश कर चुकी है। सभी दलों में बनी सहमति से राज्यसभा से विधेयक पास हो चुका है और लोकसभा से पास होने में भी कोई अड़चन नजर नहीं आ रही।

    सुप्रीम कोर्ट ने गत 10 जुलाई को दो महत्वपूर्ण फैसले सुनाए थे। एक के तहत अदालत से दोषी करार और दो साल से ज्यादा की सजा पाए सांसदों और विधायकों को अयोग्य ठहराया गया था। जबकि दूसरे में जेल या पुलिस हिरासत से चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी गई थी। केंद्र सरकार ने दोनों फैसलों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिकाएं दाखिल की थीं। बुधवार को इन पर सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति एके पटनायक व न्यायमूर्ति सुधांशु ज्योति मुखोपाध्याय की पीठ ने दोषी करार सांसदों-विधायकों को अयोग्य ठहराने वाले फैसले पर पुनर्विचार से इन्कार कर दिया। कोर्ट ने केंद्र सरकार की पुनर्विचार याचिका खारिज करते हुए कहा कि उनका फैसला बिल्कुल सही और सुविचारित है। उस पर पुन: विचार की जरूरत नहीं है। पीठ ने फैसले के खिलाफ सरकार द्वारा लाए जा रहे विधेयक की ओर इशारा करते हुए कहा कि सरकार ने भी उनके फैसले को स्वीकार किया है, तभी तो नया कानून ला रही है। कोर्ट ने व्यंग्यात्मक लहजे में कहा, अब क्या दिक्कत है? सरकार कानून में दोबारा वही उपबंध ला रही है। संसद को कानून बनाने का अधिकार है। कोर्ट सिर्फ उसकी व्याख्या करता है। कोर्ट ने संसद में लंबित विधेयक को रिकार्ड पर लेने की सरकार की मांग ठुकरा दी और कहा कि विधेयक अभी संसद में चर्चा का विषय है, हो सकता है कि बाद में कोई उसे इसी कोर्ट में चुनौती दे दे।

    पीठ ने जेल से चुनाव लड़ने पर रोक लगाने के फैसले की तरफदारी करते हुए कहा कि उन्होंने सिर्फ कानूनी उपबंधों की व्याख्या की है। कोई भी मतदाता सवाल कर सकता है कि ये कैसा कानून है, जिसमें मतदान करने पर रोक है और चुनाव लड़ने पर नहीं। कोर्ट ने टिप्पणियां जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 62 की अपनी व्याख्या को सही ठहराते हुए कीं। हालांकि बाद में पीठ, संविधान के अनुच्छेद 102 में सदन का सदस्य बने रहने और चुनाव लड़ने की अयोग्यता के प्रावधानों पर गौर करने के बाद जेल से चुनाव लड़ने पर रोक लगाने वाले अपने फैसले पर पुनर्विचार के लिए राजी हो गई। उसने सरकार की याचिका पर मुख्य चुनाव आयुक्त, बिहार सरकार व एनजीओ जनचौकीदार को जवाब दाखिल करने के लिए नोटिस जारी किया। मामले में अगली सुनवाई 23 अक्टूबर को होगी। एक एनजीओ एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक 162 सांसदों और 1460 विधायक के खिलाफ आपराधिक मुकदमे चल रहे हैं।

    तीखी टिप्पणी

    'कोर्ट ने जो कानून में लिखा है, सिर्फ उसी की व्याख्या की है। कानून में ही भ्रम की स्थिति है। कानून बहुत हल्के ढंग से लिखा गया है। यह विशेष कानून था। इसे गंभीरता से बनाया जाना चाहिए था।' -जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 62(5) पर सुप्रीम कोर्ट

    मोबाइल पर ताजा खबरें, फोटो, वीडियो व लाइव स्कोर देखने के लिए जाएं m.jagran.com पर