उपाध्यक्ष के भरोसे कांग्रेस में बदलाव की तैयारियां शुरू
लोकसभा चुनाव में मिली हार के बाद सत्तापक्ष से लेकर सहयोगियों तक के व्यंग्य बाणों से अपमानित हो रही कांग्रेस अब संगठन कसने की तैयारी में है। एंटनी कमेटी की रिपोर्ट आने के साथ ही संगठन में बदलाव की तैयारियां शुरू हो गई हैं।
नई दिल्ली, [सीतेश द्विवेदी]। लोकसभा चुनाव में मिली हार के बाद सत्तापक्ष से लेकर सहयोगियों तक के व्यंग्य बाणों से अपमानित हो रही कांग्रेस अब संगठन कसने की तैयारी में है। एंटनी कमेटी की रिपोर्ट आने के साथ ही संगठन में बदलाव की तैयारियां शुरू हो गई हैं। हालांकि, पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी की नई टीम और पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी के पुराने वफादारों में छिड़ी अघोषित जंग के बीच संगठन में पर्वितन की राह आसान नही है। ऐसे में अंदेशा है कि बदलाव की मुहिम अपने करीबियों को संगठन में फिट करने की जुगत तक सीमित रह जाएगी। संप्रग के दस साल में सरकार तक सीमित कांग्रेस नेतृत्व अब पंगु हुए संगठन को मजबूत बनाने की तैयारी में है। पार्टी में बड़े परिवर्तन का खाका बन चुका है, लेकिन पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी की सहमति के अभाव में इस पर अमल होने में देरी हो रही है। आलोचनाओं और प्रशंसा के बीच राहुल अब भी सब को साथ लेकर चलने में कामयाब नहीं हो पाए हैं।
लोकसभा चुनाव में मिली हार में भले की उनका नाम आ रहा हो, लेकिन अपने गैर-राजनीतिक सलाहकारों की वैज्ञानिक सोच के कायल राहुल को पार्टी की हार में संगठन का सत्ता पर केंद्रित होना नजर आता है। राहुल बदलाव के लिए अभी कुछ और प्रयोगों को आजमाना चाहते हैं। इस बदलाव को पूरा करने के लिए राहुल अब भी अपनी 'कोटरी' के भरोसे हैं। इसी के तहत चुनावों के ठीक बाद विदेश भ्रमण पर गए राहुल ने आते ही अपने पसंद के नेताओं को फिर बड़ी जिम्मेदारियां देनी शुरू कर दी हैं। सूत्रों के मुताबिक राहुल के करीबी माने जाने वाले मोहन प्रकाश और शकील अहमद को चुनाव पूर्व अभयदान मिल गया है। एक और करीबी सीपी जोशी को महाराष्ट्र की चुनाव समिति का अध्यक्ष बनाया जा रहा है। जयराम रमेश का पार्टी महासचिव बनना तय माना जा रहा है।
राहुल के कार्यालय में विधानसभा चुनाव में जाने वाले राज्यों में चुनाव अभियान को लेकर चलने वाली मुहिम का खाका बनना भी शुरू हो गया है। मौके की नजाकत समझ रहीं पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी न सिर्फ कांग्रेस को आगे बढ़कर नेतृत्व देने का प्रयास कर रही हैं, बल्कि वह सबको साथ लेकर वापसी के लिए 'इंदिरा गांधी' जैसा कोई मौका तलाश रही हैं। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से पहले कभी सोनिया के विरोध पर अलग गए राकांपा प्रमुख शरद पवार को पार्टी विलय और कांग्रेस का नेतृत्व करने की सलाह इसी का एक हिस्सा है।
दरअसल, 1977 में इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस की पराजय के बाद 1978 में हुए महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में शरद पवार ने राज्य में सरकार बनाई थी। इसके बाद 1980 में हुए आम चुनावों में कांग्रेस ने शानदार वापसी की थी।
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