अब खुलेगा छोटे राज्यों का पिटारा
राजनीतिक माहौल और चुनावी जरूरत ने पृथक तेलंगाना का रास्ता साफ करने के साथ ही विवादों की पोटली भी खोल दी है। कांग्रेस को भले ही एक समस्या हल करने की उम्मीद दिख रही हो, लेकिन छोटे राज्यों का मुद्दा अब उसके लिए बड़ी परेशानी बन सकता है।
नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। राजनीतिक माहौल और चुनावी जरूरत ने पृथक तेलंगाना का रास्ता साफ करने के साथ ही विवादों की पोटली भी खोल दी है। कांग्रेस को भले ही एक समस्या हल करने की उम्मीद दिख रही हो, लेकिन छोटे राज्यों का मुद्दा अब उसके लिए बड़ी परेशानी बन सकता है। तेलंगाना पर मुहर के साथ ही पृथक गोरखालैंड के लिए आंदोलन शुरू हो चुका है। वहीं, विदर्भ और हरित प्रदेश के लिए सरकार के अंदर से ही आवाज उठने लगी है। आधा दर्जन से ज्यादा छोटे राज्यों के लिए पहले से ही आवाजें उठती रहीं हैं।
तेलंगाना गठन के फैसले में इतनी देर के पीछे एक कारण यह भी था कि सरकार को दूसरे राज्यों की ऐसी मांगें डरा रही थीं। राजनीतिक मजबूरी के सामने कांग्रेस ने घुटने टेके तो दलील भी तैयार थी कि तेलंगाना की तुलना दूसरे राज्यों की मांग से नहीं करनी चाहिए। इसके लिए 50 वर्ष से आंदोलन चल रहा था। बहरहाल, आग सरकार के अंदर मौजूद सदस्यों में भी भड़कने लगी है। तेलंगाना का समर्थन करते हुए रालोद अध्यक्ष व केंद्रीय मंत्री अजित सिंह ने कहा, 'हम तो पहले से ही छोटे राज्यों के पक्ष में हैं। हम भी तो हरित प्रदेश चाहते हैं।' कांग्रेस के नागपुर सांसद विलास मुत्तेमवार ने विदर्भ गठन की मांग उठा दी। गोरखालैंड को लेकर दार्जिलिंग उग्र हो गया है। गोरखा जनमुक्ति मोर्चा ने आंदोलन तेज करने का एलान कर दिया है। माकपा महासचिव प्रकाश करात ने कहा कि राजनीतिक कारणों से यह फैसला लिया गया है, जिसके खतरनाक परिणाम होंगे। अब देश के अन्य इलाकों से भी ऐसी मांगें उठेंगी। जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा कि विरोध प्रदर्शनों के बाद अलग राज्य की घोषणा खतरनाक साबित हो सकती है। देश के अन्य हिस्सों में अलग राज्य के लिए आंदोलन करने वालों के लिए यह फैसला प्रोत्साहन का काम करेगा।
करात की आशंका गलत भी नहीं है। देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में भी ऐसी मांगें उठती रही हैं। उत्तर प्रदेश में पूर्ववर्ती मायावती सरकार ने उत्तर प्रदेश को चार छोटे राज्यों में बांटने का प्रस्ताव पारित कर केंद्र को भेजा था। इसके तहत यूपी को पश्मिांचल, पूर्वाचल, अवध और बुंदेलखंड में बांटने की पैरवी की गई थी। कांग्रेस भी नतीजों को समझ रही है। इसीलिए, पार्टी महासचिव व आंध्र प्रदेश के प्रभारी दिग्विजय सिंह ने कहा कि अन्य राज्यों का मामला तेलंगाना से अलग है। यह फैसला लंबी प्रक्रिया के बाद हुआ है।
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