अभेद नहीं रहा छोटे चौधरी का दुर्ग
बागपत से लोकसभा चुनाव में छोटे चौधरी की दूसरी बार हैट्रिक बनाने की मंशा पर पानी फिरता नजर आ रहा है। चौधरी चरण सिंह की राजनीतिक जमापूंजी में तेजी से हुए रिसाव से कमजोर पड़े अजित सिंह के दुर्ग के ढहने के आसार हैं। जिस बागपत को जाटलैंड की राजधानी कहा जाता है, उसे जिला मुख्यालय कहने में भी शर्म आती है। ध्वस्त बुनियादी ढांचे वाला यह 'कस्बा' साफ पानी तक के लिए तरस रहा है।
बागपत [प्रशांत मिश्र]। बागपत से लोकसभा चुनाव में छोटे चौधरी की दूसरी बार हैट्रिक बनाने की मंशा पर पानी फिरता नजर आ रहा है। चौधरी चरण सिंह की राजनीतिक जमापूंजी में तेजी से हुए रिसाव से कमजोर पड़े अजित सिंह के दुर्ग के ढहने के आसार हैं। जिस बागपत को जाटलैंड की राजधानी कहा जाता है, उसे जिला मुख्यालय कहने में भी शर्म आती है। ध्वस्त बुनियादी ढांचे वाला यह 'कस्बा' साफ पानी तक के लिए तरस रहा है।
पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मोदी फैक्टर साफ नजर आ रहा है। हाल के दंगे ने इस इलाके में अजित सिंह के मुस्लिम-जाट समीकरण को तार-तार कर दिया है। रालोद के समर्थक जाट मत अब हर हाल में छोटे चौधरी के साथ खड़े होने को तैयार नहीं हैं। चौधरी चरण सिंह के जमाने के बुजुर्गो और युवाओं के बीच छोटे चौधरी के समर्थन को लेकर जबर्दस्त टकराव है। क्षेत्र के विकास और रोजगार को लेकर युवा वर्ग खासा नाराज है। उनके रोष के आगे बुजुर्ग भी हाथ खड़े करने लगे हैं, जिसका खामियाजा छोटे चौधरी को उठाना पड़ सकता है।
सिर्फ समीकरणों के सहारे चुनाव जीतकर क्षेत्र के विकास की अनदेखी का हिसाब इस दफा छोटे चौधरी से पूछा जा रहा है। बागपत से बड़ौत के बीच बसे जानीखुर्द गांव के निवासी गजेंद्र सिंह इलाके की दुर्दशा को इंगित कर साफ कहते हैं कि 'इस बार उन्हें चौधराहट बचाने के लाले पड़ेंगे।' बागपत से बड़ौत जाने के लिए सड़क ऐसी है कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का चर्चित जुमला 'सड़क में गढ्डे नहीं, बल्कि गढ्डे में सड़क है' याद आ जाता है। दिल्ली की सीमा से लगा होने के बावजूद इस इलाके में सार्वजनिक वाहनों की आवाजाही नहीं है। बलैनी के नवाब सिंह ने तल्ख लहजे में कहा, चौधरी तो खुलेआम कहा करते हैं कि विकास कराने से कहीं वोट मिलता है। अब उन्हें पता चलेगा कि नहीं भी मिलता है।
भाजपा प्रत्याशी डॉक्टर सत्यपाल सिंह भी चुनाव लड़ने आए तो मुंबई पुलिस कमिश्नर होने के नाते शुरुआत में कुछ रौब जरूर था। मगर सियासत की भाषा उन्होंने बहुत तेजी से सीखी। भले ही नौकरीपेशा होने की वजह से इस इलाके से उनका बहुत वास्ता बहुत नहीं रहा है, लेकिन मोदी लहर के भरोसे उन्होंने अजित सिंह का पसीना निकाल दिया है। वरना तो छोटे चौधरी अपने चुनाव में पहले सिर्फ एक बार आते थे। इस बार उनके बेटे जयंत और पुत्रवधू चारु चौधरी पूरे इलाके में लोगों के हालचाल पूछते घूम रहे हैं। भाजपा प्रत्याशी सत्यपाल सिंह भी स्थानीय खांटी तोमर जाट हैं जिनके 84 गांव हैं। चुनाव के शुरू में सत्यपाल को मुश्किलें जरूर पेश आईं, लेकिन अब जाट वोटों पर अजित सिंह के एकाधिकार को उन्होंने कड़ी चुनौती दी है।
अजित सिंह ने दंगे के समय हिंदू और मुस्लिम दोनों को साधने की रणनीति के तहत चुप्पी साध ली थी। उनके इस राजनीतिक दांव से रालोद के परंपरागत समर्थक मुस्लिम वोट पहले ही दूरी बना चुका है। जाट समुदाय में बहुत नाराजगी है। दंगे की वजह से होने वाले ध्रुवीकरण का सीधा फायदा भाजपा को मिल रहा है, जिससे छोटे चौधरी वाकिफ हैं। तभी वह स्थानीय मुस्लिम नेताओं को समझाने की लगातार कोशिश कर रहे हैं।
बागपत की राजनीति पर नजर रखने वालों के मुताबिक चौधरी अजित सिंह का प्रभाव छपरौली और बड़ौत विधानसभा क्षेत्रों में बहुत है। मगर गाजियाबाद की मोदीनगर और मेरठ की सिवालखास में भाजपा की बढ़त चौधरी को मुश्किल में डाल सकती है। बागपत विधानसभा सीट पर पिछली बार चौधरी को प्रतिद्वंद्वी प्रत्याशी के मुकाबले कम वोट मिले थे। ये समीकरण उनके लिए चिंता का विषय है।
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