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    मुआवजे के फर्जी दावों पर रोक के लिए बदलेगा रेलवे एक्ट

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    Updated: Wed, 06 Aug 2014 09:38 PM (IST)

    रेल हादसों के नाम पर मुआवजे के फर्जी दावों से परेशान सरकार इन पर अंकुश लगाने के लिए रेलवे एक्ट में संशोधन करने जा रही है। बताते चलें कि फर्जी दावों की वजह से रेलवे को हर साल करोड़ों का चूना लगता है। वर्ष 2012-13 के दौरान रेलवे ने 320 करोड़ का मुआवजा अदा किया। माना जाता है कि इसमें से पा

    नई दिल्ली [संजय सिंह]। रेल हादसों के नाम पर मुआवजे के फर्जी दावों से परेशान सरकार इन पर अंकुश लगाने के लिए रेलवे एक्ट में संशोधन करने जा रही है। बताते चलें कि फर्जी दावों की वजह से रेलवे को हर साल करोड़ों का चूना लगता है। वर्ष 2012-13 के दौरान रेलवे ने 320 करोड़ का मुआवजा अदा किया। माना जाता है कि इसमें से पांचवां हिस्सा फर्जी दावेदारों की जेब में गया है। लिहाजा रेलवे एक्ट, 1989 में संशोधन को जरूरी माना गया है।

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    मौजूदा प्रावधानों के तहत केवल उस जोनल रेलवे को रेलवे दावा अधिकरण के समक्ष पक्षकार बनाया जाता है जिसके तहत आने वाले स्टेशन से यात्रा प्रारंभ या खत्म की गई होती है। भले ही दुर्घटना का स्थान कोई भी हो। इससे फर्जी दावों को बढ़ावा मिलता है क्योंकि ऐसे दावेदार हादसे को किसी ऐसी जगह पर हुआ दिखाते हैं जो किसी तीसरे जोन में होती है। चूंकि उक्त जोन पक्षकार नहीं होता, लिहाजा दावे की सच्चाई जानना मुश्किल होता है। रेलवे एक्ट की इस कमजोरी का फायदा उठाकर फर्जी दावेदार हर साल रेलवे से करोड़ों रुपये का मुआवजा वसूलने में कामयाब रहते हैं। इसे रोकने के लिए रेलवे एक्ट की धारा 109 में संशोधन कर दुर्घटना के स्थान वाले जोन को पक्षकार बनाने का प्रावधान किया जाएगा, ताकि वह अपनी जांच के जरिए साबित कर सके कि दावेदार द्वारा बताए गए तथ्य सही हैं या गलत।

    इसके अलावा एक्ट की धारा 123 में भी संशोधन का प्रस्ताव है। इसमें 'दुर्भाग्यपूर्ण घटना' की परिभाषा में 'यात्री ट्रेन से दुर्घटनावश गिरने' को भी शामिल किया जाएगा। रेलवे का मानना है कि ट्रेन से गिरने के ज्यादातर मामले यात्रियों की असावधानी, लापरवाही या दुस्साहस के चलते होते हैं। परंतु रेलवे को मुआवजे का भुगतान करना पड़ता है। इसलिए धारा 123 के उपबंध (एए) में संशोधन कर 'दुर्घटनावश गिरने' की एक पृथक श्रेणी शामिल की जाएगी। ताकि स्पष्ट हो सके कि मामले में रेलवे की गलती है या नहीं। संशोधन के तहत मौजूदा धारा 124-ए के साथ एक नई धारा 124-बी जोड़ने का भी प्रस्ताव है। इसके जरिये 'ट्रेन से गिरने' के मामलों में यह देखा किया जाएगा कि ऐसा रेलवे के किसी गलत कार्य, लापरवाही या खामी की वजह से हुआ है या नहीं। यात्री के आत्महत्या के प्रयास, खुद को चोट पहुंचाने, अपने आपराधिक कृत्य, लापरवाही या नशे में होने की बात साबित होने पर रेलवे मुआवजा देने को बाध्य नहीं होगा।

    इन संशोधनों के जरिये रेलवे का इरादा ऐसे मामलों पर अंकुश लगाने का है जिनमें एक ही हादसे के लिए अलग-अलग जोनों में मुआवजे का दावा किया जाता है। इससे रेलवे का पैसा तो बचेगा ही, सही दावे सामने आने से निपटान प्रक्रिया में भी तेजी आएगी।

    किस दुर्घटना पर कितना मुआवजा

    मौत-चार लाख रुपये

    एक हाथ/पैर से विकलांग-चार लाख रुपये

    दृष्टिहीनता-चार लाख रुपये

    चेहरा विकृत होना-चार लाख रुपये

    पूर्ण बहरा होना-चार लाख रुपये

    एक हाथ से विकलांग-3.60 लाख रुपये

    चार अंगुलियों का नुकसान-2 लाख रुपये

    एक अंगूठा न रहना-1.20 लाख रुपये

    फैक्चर-40 से 80 हजार रुपये

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