माल्या को लाना मुश्किल, ब्रिटेन सरकार नहीं करेगी निष्कासित
ब्रिटेन ने कहा है कि वह शराब कारोबारी विजय माल्या को निर्वासित नहीं कर सकता है बल्कि भारत के प्रत्यपर्ण के अनुरोध पर विचार कर सकता है। ...और पढ़ें

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। अब यह साफ हो गया है कि बैंकों को अरबों रुपये का चूना लगा कर ब्रिटेन जा चुके उद्योगपति विजय माल्या को वापस स्वदेश लाना आसान नहीं होगा। ब्रिटेन सरकार ने इस बारे में भारत सरकार को बता दिया है कि वह सिर्फ इस आधार पर माल्या को ब्रिटेन से निष्कासित नहीं कर सकती कि उसके पासपोर्ट को यहां रद्द कर दिया गया है।
ब्रिटेन ने वैसे मामले की गंभीरता को समझने की बात भी कहा है और भारत को सलाह दी है कि उसे कानूनी तौर पर माल्या को वहां से प्रत्यर्पित कराने की कोशिश करनी चाहिए। जानकारों की मानें तो ब्रिटेन की मौजूदा कानून के मुताबिक माल्या के खिलाफ जो मामले भारत में दायर किये गये हैं उसके तहत वहां से प्रत्यर्पण कराना भी टेढ़ी खीर है।
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विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप के मुताबिक कि ब्रिटेन सरकार की तरफ से यह बताया गया है कि किसी भी व्यक्ति के लिए ब्रिटेन में रहने के लिए वैध पासपोर्ट का नहीं होना जरुरी नहीं है। अहम बात यह है कि जिस समय व्यक्ति ब्रिटेन में प्रवेश करता है उस समय उसके पास वैद्य पासपोर्ट का होना जरुरी है। हालांकि ब्रिटेन सरकार ने इस बात को स्वीकार किया है कि जो आरोप लगाये गये हैं वे काफी गंभीर है और इस मामले में वह भारत सरकार की मदद करने को तैयार है। इस संदर्भ में भारत सरकार को यह सुझाव दिया गया है कि वह प्रत्यर्पण के लिए द्विपक्षीय कानूनी सहयोग के लिए आवेदन भेजे।
वित्त मंत्री अरूण जेटली ने राज्य सभा में बताया कि अब सरकार को माल्या के प्रत्यर्पण की प्रक्रिया शुरु करनी होगी। ब्रिटेन ने यह बताया है कि पासपोर्ट रद्द होने से अपने आप ही प्रत्यर्पण की प्रक्रिया नहीं शुरु हो जाती है बल्कि इसकी अलग से प्रक्रिया शुरु करनी पड़ती है। उन्होंने यह भी बताया कि सरकारी बैंक माल्या पर बकाये कर्ज को वसूलने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। लेकिन जानकारों की मुताबिक यह आसान नहीं होगा। माल्या के भारत नहीं आने से उनसे और उनकी बंद कंपनी किंगफिशर एयरलाइंस से बकाये कर्ज की राशि वसूलने की प्रक्रिया और दुरुह हो जाएगी।
इन पर सरकारी बैंकों का 9200 करोड़ रुपये बकाया है। यही नहीं ईडी में जो मामला चल रहा है अब उसमें भी कुछ प्रगति होने की संभावना नहीं है क्योंकि इसमें माल्या का उपस्थित होना बेहद जरुरी है। माल्या कुछ हफ्ते पहले तक यह कहते रहे हैं कि वह मई, 2016 में भारत आएंगे लेकिन जब से उनका पासपोर्ट रद्द किया गया है उसके बाद से उनकी तरफ से इस बारे में कुछ भी नहीं कहा जा रहा है।
भारत सरकार ने पिछले महीने मनी लॉड्रिंग से जुड़े एक मामले में उद्योगपति विजय माल्या के पासपोर्ट को रद्द कर दिया था और ब्रिटेन सरकार को यह आग्रह किया था कि वह माल्या को निर्वासित करे। माल्या के पासपोर्ट को रद्द करने का प्रस्ताव प्रवर्तन निदेशालय ने एक मामले की सुनवाई में बार बार नोटिस भेजने के बावजूद उनके पेश नहीं होने की वजह से किया था। इसे विदेश मंत्रालय ने स्वीकार कर लिया था। लेकिन अब ब्रिटेन सरकार की तरफ से सूचना मिलने के बाद माल्या को भारत लाने की राह मुश्किल होती दिख रही है।
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माल्या पर भारतीय बैंकों के 9000 करोड़ रुपये से अधिक का कर्ज है। देश छोड़ने के बाद माल्या को मनी लांड्रिंग के आरोप में ईडी द्वारा तीन समन जारी किए गए थे जिन्हें उन्होंने अनदेखा कर दिया था। तभी से कोर्ट ने उनके खिलाफ गैर-जमानती वार्ंट भी जारी कर रखा है। इस शराब कारोबारी के वकीलों को यह चिंता है कि यदि माल्या स्वदेश लौटते हैं तो उन्हें एयरपोर्ट से सीधे दिल्ली के तिहाड़ जेल भेजा जा सकता है।
जानिए क्या है यूके आर्टिकल 9, जो माल्या को डिपोर्ट करने में बढ़ा रहा हैं मुश्किलें
ब्रिटेन ने विजय माल्या को भारत डिपोर्ट करने से इनकार कर दिया है। साथ ही एक्सट्राडिशन की अर्जी (प्रर्त्यपण) पर फिर से सोचने को कहा है। दरअसल, ब्रिटेन के साथ एक्सट्राडीशन ट्रीटी का आर्टिकल-9 भारत के लिए मुश्किलें बढ़ा सकता है।
जानिए क्या है आर्टिकल-9?
- ब्रिटेन के साथ एक्सट्राडीशन ट्रीटी का आर्टिकल 9 आरोपियों को बचने के कई मौके प्रदान करता है।
- आर्टिकल 9 के तहत अगर आरोपी यह अर्जी लगाता है कि उसपर नस्ल, धर्म, नागरिकता या राजनीतिक विचारधाराओं के आधार पर मुकदमा चलाया जा रहा है, तो उसका एक्सट्राडीशन रुक सकता है।
- आर्टिकल 9 के तहत आरोपी को उसकी राष्ट्रीयता या राजनीतिक विचारधाराओं के लिए डिटेन या नजरबंद नहीं कर सकते।
- आर्टिकल 9 के तहत छोटे अपराध के लिए एक्सट्राडीशन की अपील में देरी भी आरोपी को फायदा दे सकती है।
- यूके का मानवाधिकार अधिनियम वहां के नागरिकों के 15 मौलिक स्वतंत्रताओं की रक्षा करता है।
- यूके से किसी को निर्वासित तभी किया जा सकता है जब संबंधित देश में आरोपी के मानव अधिकारों का उल्लंघन नहीं हो रहा हो।

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