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    सुप्रीम कोर्ट को सरकार ने सौंपे 627 काले कुबेरों के नाम

    By manoj yadavEdited By:
    Updated: Thu, 30 Oct 2014 01:14 AM (IST)

    सुप्रीम कोर्ट की फटकार पड़ने के बाद केंद्र सरकार ने विदेशों में कालाधन जमा करने वाले काले कुबेरों की सूची सुप्रीम कोर्ट को सौंप दी, जिसमें 627 लोगों का शामिल है। सरकार ने काले कुबेरों की सूची सीलबंद लिफाफे में सौंपी है। सरकार ने कोर्ट को तीन लिफाफे सौंपे हैं। पहले लिफाफे में संधि के बारे में जानकारी दी गई है और दूसरे-तीसरे लिफाफे में काले कुबेरों की सूची है।

    नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के कड़े तेवर के बाद भी काले धन का मामला जहां का तहां दिख रहा है। सुप्रीम कोर्ट के कहे अनुसार सरकार ने बुधवार को काले धन के 627 खातेदारों के नामों की सूची उसे सौंप दी। सुप्रीम कोर्ट ने नाम उजागर करने के बजाय इस सूची को जस का तस काले धन की जांच कर रहे विशेष जांच दल (एसआइटी) के हवाले करने का आदेश दिया। कोर्ट ने एसआइटी से मामले की कानूनों के मुताबिक जांच कर नवंबर के अंत तक रिपोर्ट देने को कहा है। एसआइटी के पास यह सूची पहले से ही थी। इसकी पुष्टि जांच दल के प्रमुख जस्टिस एमबी शाह ने भी की। उन्होंने कहा कि हम घूम-फिर कर वहीं खड़े हैं। ये नाम तो हमारे पास पहले से ही हैं। उन्होंने यह भी कहा कि मुझे नहीं लगता कि सरकार किसी को बचाने की कोशिश कर रही है।

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    बुधवार को मुख्य न्यायाधीश एचएल दत्तू की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ के सामने अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने तीन सीलबंद लिफाफे सौंपे। कोर्ट ने कहा कि लिफाफे को सिर्फ एसआइटी के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष ही खोलेंगे। मामले की अगली सुनवाई तीन दिसंबर को होगी।

    इस मामले में आम आदमी पाटी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने भी अर्जी के जरिए कुछ तथ्य बताने की कोशिश की थी, लेकिन कोर्ट ने कहा कि वे उनकी बात अगली तारीख पर सुनेंगे।

    सरकार की दलील

    -लगभग आधे खाताधारक भारतीय नागरिक हैं और इनपर आयकर कानूनों के तहत मुकदमा चलाया जा सकता है। बाकी लोग अनिवासी भारतीय हैं।

    -सूची में 2006 तक का ब्योरा है। कुछ लोगों ने खाता होने की बात खुद स्वीकार कर ली है और वे टैक्स भी चुका रहे हैं।

    -आयकर कानून में बदलाव किया गया है। अब कर चोरी की किसी घटना के 16 साल बाद तक अभियोग चलाया जा सकता है। पहले यह अवधि छह साल थी।

    -सुप्रीम कोर्ट यदि नामों को देखना चाहता है, तो इससे सरकार को कोई समस्या नहीं है। जांच एसआइटी या किसी दूसरी एजेंसी से करवाने पर भी सरकार को कोई आपत्ति नहीं है।

    अदालत का फैसला

    -यह सारा मामला सरकार की ओर अर्जी दाखिल करने से खड़ा हुआ है। वरना कोर्ट ने तो कालेधन की जांच के लिए एसआइटी बना दी है और उसे एसआइटी पर भरोसा है।

    -एसआइटी के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत न्यायाधीश हैं। उन्हें मामले की समझ है। सरकार ये सारी समस्याएं उनके सामने रख सकती है।

    -सरकार की ओर से अदालत के पिछले आदेश में बदलाव की मांग वाली अर्जी पर जोर न दिये जाने के चलते अर्जी खारिज।

    -सरकार और याचिकाकर्ता राम जेठमलानी को एसआइटी के समक्ष अपनी बात रखने की इजाजत।

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