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मोहन भागवत को आतंकियों की सूची में डालना चाहती थी मनमोहन सरकार: रिपोर्ट

एक अंग्रेजी चैनल ने दावा किया है कि यूपीए सरकार अपने अंतिम दिनों में संघ प्रमुख मोहन भागवत को आतंकवादियों की सूची में डालना चाहती थी।

By Kishor JoshiEdited By: Published: Sat, 15 Jul 2017 09:03 AM (IST)Updated: Sat, 15 Jul 2017 12:05 PM (IST)
मोहन भागवत को आतंकियों की सूची में डालना चाहती थी मनमोहन सरकार: रिपोर्ट
मोहन भागवत को आतंकियों की सूची में डालना चाहती थी मनमोहन सरकार: रिपोर्ट

नई दिल्ली (जेएनएन)। संसद के मानसून सत्र शुरू होने में कुछ ही दिन का समय बचा है लेकिन इससे पहले कांग्रेस की यूपीए सरकार को लेकर एक बड़ा खुलासा हुआ है। एक अंग्रेजी न्यूज चैनल ने दावा किया है कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार संघ प्रमुख मोहन भागवत को आतंकियों की सूची में डालना चाहती थी। चैनल ने अपने पास मौजूद दस्तावेजों का हवाला देते हुए कहा है कि यूपीए सरकार अपने अंतिम दिनों में भागवत को हिंदू आतंकवाद के जाल में फंसाना चाहती थी।  भागवत को 'हिंदू आतंकवाद' के जाल में फंसाने के लिए कांग्रेस की अगुवाई वाली सरकार के मंत्री कोशिश में जुटे थे।

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चैनल के दावों के मुताबिक, अजमेर और मालेगांव में हुई कट्टरपंथी हिंसा के बाद यूपीए सरकार ने देश में हिंदू आतंकवाद का मुद्दा उछाला और एनआईए पर इस बात के लिए दबाव बना रही थी कि भागवत को घेरा जाए। ये अधिकारी यूपीए के मंत्रियों के आदेश पर काम कर रहे थे, जिसमें तत्कालीन गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे भी शामिल थे। अधिकारी भागवत को पूछताछ के लिए हिरासत में लेना चाहते थे।

एनआईए द्वारा बनाई गई फाईल्स की नोटिंग्स के अनुसार जांच आधिकारी और वरिष्ठ पुलिस अधिकारी अभिनव भारत नाम के संगठन की अजमेर और अन्य धमाकों में आरोपित भूमिका के चलते मोहन भागवत से इस मामले में पूछताछ करना चाहते थे। अधिकारियों को सीधे यूपीए के मंत्रियों से आदेश मिल रहे थे और इनमें उस समय के गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे भी शामिल थे जो भागवत को गिरफ्तार कर पूछताछ करवाने की कोशिश में थे।

खबर के अनुसार यूपीए सरकार ने एनआईए पर तब दबाव बढ़ाना शुरू किया जब संदिग्ध हिंदू आतंकी स्वामी असीमानंद ने कारवां मैगजीन को फरवरी 2014 में पंचकुला जेल में रहते हुए दिए इंटरव्यू में हमलों के लिए प्रेरित करने वालों में कथित तौर पर मोहन भागवत का नाम लिया था। इसके बावजूद एनआईए प्रमुख शरद कुमार ने इससे इन्कार करते हुए इंटरव्यू टेप की फॉरेंसिक जांच करवाई और जब कुछ खास सामने नहीं आया तो उन्होंने यूपीए सरकार की बात ना मानते हुए केस खत्म किया।

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