Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    पिछड़े वर्गो के लिए नए आयोग के लिए करना होगा इंतजार

    By Rajesh KumarEdited By:
    Updated: Tue, 11 Apr 2017 09:33 PM (IST)

    सोमवार को इसे लोकसभा में पेश किया गया और वहां से यह तुरंत पारित हो गया था।

    पिछड़े वर्गो के लिए नए आयोग के लिए करना होगा इंतजार

    जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। देश के सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े लोगों की सुनवाई के लिए पहली बार संवैधानिक व्यवस्था करने की केंद्र सरकार की कोशिश में फिलहाल समय लगेगा। विपक्ष की मांग के बाद इसे प्रवर समिति में भेज दिया गया और अगले सत्र के पहले सप्ताह के अंतिम दिन तक इसे रिपोर्ट पेश करने को कहा गया है। उसके बाद ही इसे संसद से मंजूरी के लिए पेश किया जाएगा।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    केंद्र सरकार की ओर से राज्य सभा में पेश किया गया 'राष्ट्रीय सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ा वर्ग आयोग' (एनएसईबीसी) के गठन का बिल मंगलवार को पारित नहीं हो सका। सोमवार को इसे लोकसभा में पेश किया गया और वहां से यह तुरंत पारित हो गया था। लेकिन विपक्ष के बहुमत वाली राज्यसभा मे अटक गया।

    केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री थावरचंद गेहलौत ने कहा कि देश के व्यापक हित को ध्यान में रखते हुए सदन को इसे सर्व सम्मति से पारित कर देना चाहिए। उन्होंने कहा कि पिछड़े वर्ग के लोगों की समस्याओं को ध्यान में रखते हुए इस आयोग का तत्काल गठन बहुत जरूरी है। संसदीय कार्य राज्य मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी और मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने भी सदस्यों और सदन से इस संबंध में अनुरोध किया।

    जबकि विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद ने कहा कि यह दूसरा मौका है जब सरकार इस तरह किसी बेहद महत्वपूर्ण बिल को चुपके से ला रही है। यह आज के काम-काज की सूची में भी शामिल नहीं था। इतने अहम विषय पर विचार करने या संशोधन का प्रस्ताव करने के लिए सदन को पर्याप्त समय दिया जाना चाहिए था। लिहाजा इसे प्रवर समिति को भेज दिया गया। अध्यक्ष भाजपा सांसद भूपेंद्र यादव को बनाया गया है। ध्यान रहे कि इससे पहले भी उन्हें आठ अहम विधेयको पर चर्चा के लिए समिति के अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गई थी।

    यह भी पढ़ें: उत्तर प्रदेश पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष राम आसरे विश्वकर्मा का इस्तीफा

    इसी तरह विपक्ष ने मोटर वाहन संशोधन विधेयक को भी राज्य सभा में पेश किए जाने से सरकार को यह कहते हुए रोक दिया कि इसे पहले से तय कार्यक्रम में शामिल नहीं किया गया था।

    नए आयोग का गठन देश में पिछड़े वर्गो की पहचान और उनकी शिकायतों की सुनवाई के लिए मोदी सरकार का एक बड़ा कदम होगा। इसे संवैधानिक दर्जा हासिल होगा। इसके साथ ही पहले से चल रहे राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (एनसीबीसी) को समाप्त कर दिया जाएगा। पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा प्राप्त नहीं है यह केंद्र सरकार के सामाजिक कल्याण और अधिकारिता मंत्रालय के तहत चलने वाला वैधानिक आयोग है। मौजूदा आयोग को 1993 में संसद में पारित कानून के तहत गठित किया गया था।

    नया आयोग राष्ट्रीय अनसूचित जाति आयोग और राष्ट्रीय अनसूचित जनजाति आयोग की तरह संबंधित वर्ग के लोगों की शिकायतों की सुनवाई भी कर सकेगा। संविधान में इसके लिए धारा 338 बी जोड़ी जाएगी। इस आयोग में एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष और तीन सदस्यों का प्रावधान होगा। इसका गठन हो जाने के बाद विभिन्न वर्गों की ओर से पिछड़े वर्ग में शामिल किए जाने की मांग पर भी विचार यही करेगा।

    साथ ही पिछड़ा वर्ग की सूची में किसी खास वर्ग के ज्यादा प्रतिनिधित्व या कम प्रतिनिधित्व पर भी यही सुनवाई करेगा। यह भी तय किया गया है कि आयोग की सिफारिश सामान्य तौर पर सरकार को माननी ही होगी। लंबे समय से आम लोगों की ओर से और साथ ही संसद में जन प्रतिनिधियों की ओर से यह मांग की जा रही थी कि पिछड़े वर्ग के लोगों के लिए एक संवैधानिक आयोग का गठन हो।

    यह भी पढ़ें: पिछड़ा वर्ग को लेकर सत्ता और विपक्ष में भिड़ंत