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    बुरहान की मौत के बाद करीब 23 कश्‍मीरी नौजवान बने आतंकी

    By Monika minalEdited By:
    Updated: Thu, 24 Nov 2016 10:16 AM (IST)

    हिजबुल मुजाहिद्दीन आतंकी बुरहान वानी के मारे जाने के बाद कश्‍मीर के नौजवानों ने आतंकवाद की राह पकड़ ली जिसमें से अधिकांश की मौत एक या दो माह के भीतर ही हो गयी।

    श्रीनगर (जेएनएन)। दक्षिण कश्मीर के शोपियां जिला स्थित केल्लार गांव के एक नौजवान, वसीम अहमद खांडे ने हिजबुल मुजाहिद्दीन से जुड़ने के लिए 28 सितंबर को पूर्व विधायक के निजी सुरक्षा अधिकारी से एक राइफल और गोला बारुद के 30 राउंड छीन लिए। इस घटना के मात्र एक माह बाद 5 नवंबर को शोपियां में एनकाउंटर में वह मारा गया। 8 जुलाई को हिजबुल आतंकी बुरहान वानी के मारे जाने के बाद इस क्षेत्र से नौजवानों का जो ग्रुप आतंकवाद की राह पर चला था, खांडे उन्हीं युवाओं में से एक है। आतंकी की मौत के बाद से कश्मीर में तनावपूर्ण हालात हैं और इस स्थिति में अब तक 90 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं और हजारों घायल और अपंग हो गए हैं।

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    इस तनावपूर्ण हालात के दौरान सैंकड़ों नौजवान लापता हो गए और आतंकी संगठनों में शामिल हो गए। इस माह सुरक्षा बलों द्वारा मारे गए स्थानीय आतंकियों में से तीन की पहचान स्थानीय आतंकियों के तौर पर हुई है, ये सब सितंबर अक्टूबर में संगठन से जुड़े थे। शोपियां के सद्दाम हुसैन मीर ने सितंबर में अपना घर छोड़ा था। वांगे के मारे जाने के दो ही दिन बाद मीर भी एक एनकाउंटर में मारा गया। पुलवामा जिले के काकपोरा में, 6 अक्टूबर से लापता 25 वर्षीय रइस अहमद दार लश्कर-ए-तैयबा से जुड़ा था जो 19 नवंबर को एक एनकाउंटर में मारा गया। आतंकवाद से जुड़ने वाले इस कई नौजवान को गिरफ्तार कर वापस लाया गया लेकिन कई एक से दो माह के भीतर ही एनकाउंटर में मारे गए।

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    एसपी वैद ने बताया,’यदि वे हमपर फायरिंग करते हैं तो हमारे पास क्या रास्ता है? हम पहले कोशिश करते हैं कि नौजवान आत्मसमर्पण करें और हम उन्हें गिरफ्तार कर लें, लेकिन यदि वे ऐसा नहीं करते हैं तो हम वापिस फायरिंग करते हैं, तब हमारे पास कोई दूसरा रास्ता नहीं बचता।‘ उन्होंने बताया कि पूरे एक साल में करीब 55 नौजवान आतंकी संगठन से जुड़ गए।

    हुर्रियत के चेयरपर्सन मीरवाइज उमर फारुक ने बताया,’नौजवानों को एसा लगता है कि उन्हें अपनी बात, विचार और आइडिया देने के लिए मंच नहीं है। उनका शिकार किया जा रहा, हत्या हो रही है साथ ही अपाहिज किया जा रहा है और उन्हें डर है कि शांतिपूर्ण वार्ता उन्हें कहीं आगे नहीं ले जाएगी।‘